एक बा
एक ढेरे मच्छर भनभनाये लागल बाडन सन . लागत बा केनियो ले दावत के बुलहटा आ गइल बा
. भा कवनो कार परोजन के तिथि नागिचा आ गइल बा ,ना त कनियो हीरो हिरोइन लोगन के तमाशा
शुरू होवे वाला होई , एही से एहानियो के
दिमाग में खुजली उठ गइल . मीठ खून एहानियो के ढेर नीमन लागेला . गाँव गिराव वाला
मनई के खून चूसे में एहानियो महारथी बाड़े
सन . ७० साल से खून चूस चूस के लोढ़ा नीयन चरबी चढ़ल बाटे . चाय पीये खाति त टेबुलो
ना हेरेलन सन . तोंद त कुंडा लेखा निकल गइल बा . बुझाता कुल्ही माल एही में ठुंसले
बाडन सन . एह्निन के हजमवो खराब नइखे होखत . ससुरा चित्रगुपुत से बुझाता नम्बर
बढ़वा के आइल बाडन सन . अइसन क़उआ झमार कबों कबों देखाला .
कल्हियें ‘बडकुवो’ बिनबिनात रहलें , कुछ चुनाव उनाव के
बात करत रहलें . अच्छा त इ बात बा . तब्बे
न कुल्ही डाली हिलत डुलत बाड़ी सन . कूद फांद मचल होई , मौसम आवे वाला बा , बुझाता
मानसूनो के टाइम नागिचा गईल बा . फेरु त जेनी से ढेर बचाव के जुगाड़ होई , ओनिये
रेलम-पेल त मचबे करी . आजकाल जमाना इनहने लोगन क ह भाय. हमा सुमा त कवनो गिनतियो में
ना हईं जा। हथजोरिया त देखावटे में करेलन , मने मन गरियावते होखिहें . 'ए भइया इ लोकतंत्रवा त आन्हर, गूंग, बहीर कुल्हे नु बा’ फेर का होखी .
हमनिए मुअत पहिलवों रहली ह , अगवों रहब जा . करिया , उज्जर , पीयर कुल्ही रंग वाला बेंग टरटराये लागल बाडन सन , बूंदा बाँदी के आसार एहनी के बुझाये लागल बा . जाने
कवन कवन खिंचड़ी पकावे के इन्तिजामो होखे लागल . काल्ह भगेलू बाबा कहत रहने कि बचवा
एहनी के फेरु भोजपुरी वाला पकवान पकावे के जोगाड़ में बाड़े सन . अरे उहे , जवन
आठवीं अनुसूची के बात हो रहल बा , सबसे
बेसी भोजपुरी के नांव पर लुटबो कईलन स , सबसे बेसी लंगड़ियों एहनिये के मरलन स.
सांसद अउरी विधायक जेतना इहंवा से जीत के जाने स , कबों संसद भा विधान सभा में
बकारे ना खुले , बुझाला जईसे कि एहनी के जीभे लोढ़ा जाले ,कि बुद्धिये मरा जाले . इ
कुल सुनत सुनत मुड़ी पिराये लागल , त हमहूँ
कहनी कि सुना ए भगेलू बाबा , इ कुल्ही हमनी के बोक्का बुझेलन सन , हमनी के अपनन
में लड़ा लड़ा के मजा लेत बाड़े सन , कबों जात पांत त कबों धरम त कबों कुछ आउर . हमनी के ओही में पेरात रही ला
जा .
हम्मे त कबों कबों इ बुझाला कि भोजपुरिया क्षेत्र के जेतना पढ़ल लिखल लोग बा
, उ ना चाहे कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल कर लीहल जाव . सुनत जानत
,पढ़त लिखत अब ले हम इहे देख रहल बानी ,हिंदी
के सबसे जियादा विद्वान लोग भोजपुरिये क्षेत्र के बा , उ लोग सबसे बेसी बिरोध
करेला . इ लोग मौसी के माई बनावे में लागल
बा . इ त बुडबकहिये नु कहाई , माई आउर
मौसी दू गो होनी ,आउर दुनो के आपन अलगा
महत्व भी होला बाकि दुनो एक ना हो सकेलीं. कुछ दिन पहिले हम आगरा में एकर बनगियो अपने आँखी देख लेनी , एगो हिंदी के
प्रकांड विद्वान जे केन्द्रीय हिंदी संस्थान के मुखिया हउवन , उ आपन बतकही भोजपुरी में शुरू कईलन , आउर सीधे
सीधे भोजपुरी के बिरोध में बोलने .तब्बे हमें इ बुझाइल कि जब घरही विभीषण गोड तोड़
के बईठल बाटें, त दुशमन के का जरुरत बा .
का कहल जाव दोकानो ढेरी
मनी खुलल बाड़ी सन ,सभका के आपन धंधो चलावे के बा. अइसन लोग एक दोसरा के लंगड़ी मारे
में अझुराईल रहेला . सही दिशा में जवन उर्जा लागे के चाही , उ ना लग पावे . ऐसना
में परिणाम का होखी , कहल ना जा सके , दिखाई दे रहल बा .भाषा मान्यता आन्दोलन के
चलत केतना दिन हो गयल , अभी ले कुछहु ना भयल . पता ना का डर बा , एहन लोगन के कान
पर जूं नइखे रेंगत .जे लोग भोजपुरी के खा के कहाँ से कहाँ पहुँच गयल ,उहो लोग कान
में रुई डाल के चुप लगवले बा . न कवनो मुहीम ना कवनो मांग उठा रहल बा . जवने भाषा
के बोले वाला २०-२५ करोड़ लोग होखे , उ भाषा अइसे सिसक रहल होखे ,बहुत कम देखे के
मिलेला . जरुरत त इ कहत बा ,ए नेता लोग के संगे भी उहे होखो अब , जवन आज तक इ लोग
भोजपुरिया जनता के संगे क रहल बा . ए लोगन के भी अब ठेंगा देखावहिं के परी .
मारीशस आउर नेपाल जईसन देश पहिलही राजभाषा घोषित कर चुकल बाड़े. लेकिन भोजपुरी के
जहां जनम भईल उहवें एकरा रेघरियावे के पड़ रहल बा .सांच के भी सांच साबित करे खातिर
अब संघरस करे के पड़ रहल बा . सोच के विषय बन चुकल बा ,जरुरत एकरा कार्य रूप में
परिणित करे के बा .
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जयशंकर प्रसाद
द्विवेदी
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