का जमाना आ गयो भाया , आजु मनई के मत मरा गइल बा ,देखत देखत आ
सुनत सुनत । केकरा के नीमन बुझे आ केकरा के बाउर ,ई पहिचान कइल सरल नइखे ।
पनामा पेपर से लेके पैराडाइज़ पेपर के कहनी मे मगज घुमरी घूम रहल बा । आम मनई
कनफुजिया गइल बा । 3 बरीस मे 6 करोड़ से 16 सौ करोड़ के खेला कइसे हो सकेला , इ सोझवें लउकत बा । ओहु पर
परदा डालेला महारथी लोग लाग गइल बा । केकर कहवाँ आ कवन कनेक्सन कइसे जुड़ल बा , एकरा परिभाषित कइल सरल
नइखे । ई-कामर्ष के खेला से ब्योपार के बेवस्था के सांस उखड़े लागल बा । केतना जाने
के खटिया खाड़ हो गइल बा , शोध के विषय बा । कहिया केकर बिस्तरा गोल हो जाई , कहल ना जा सकेला । ब्योपारी सभे
बिखियाइल बाड़े काहे कि उनके सोझवे उनका दुनिया उजाड़ हो रहल बा । ओहू लोगन के अब
तुलसी बाबा के इयाद सता रहल बा ।
नोटबंदी से जी एस टी के खेला मे सभके अझुरा के कुछ लो कबड्डी खेल
रहल बाड़े । जी एस टी के पोर्टल थउस रहल बा , कुछ दिन मे केकर का रेकड़ बा , बिला जाई , भा बिला गइल होई , फेर त पेनाल्टी – पेनाल्टी
के खेला शुरू हो जाई । फेर केकरे हाथे कटोरा लागी आ केकरे हाथे केतली , जांच बइठावल जाई नु ।
जेकरा मलाई चापे के बा , उ त चापिए रहल बा , रउवा झूलल करीं झुलुवा
कबों एह डारी , कबों ओह डारी । रउवा हाथे भेंटाई कुछुवो ना । भगवाने सोझ होखिहें त खाली
थरिया भा कटोरा भेंटाई । अनही लोग खुस होके आँख मून के खाली कसोरा मे से करियवा
जामुन अबले हेर रहल बा, हेरते रही । बिलइया करियवा जामुन के उजरका रसगुल्ला बना के
हजम क गइल । उलट फेर के चकरी कब घूम जाई , कुछों पता नइखे । 28 कब
18 हो जाई , लगावल पूजी पर के कुंडली मार के बइठ , कहल ना जा सके ।
अबहियों ले मुंगेरीलाल के हसीन सपना कुछ लोग देख रहल बा , ओह लोग के कब सपना टूटी भा
कब जागी लो , पता नइखे । केतना जाने लालीपाप चूस रहल बाड़ें , कबले चूसत रहिहें , उनहूँ लोग के पता नइखे ।
बेराइटी ढेर बा , कतों डिजिटल , कतों स्किल , कतों मेड इन त कतों स्वच्छ भारत मिशन के लालीपाप । कवनों
उठा लेही , सवाद एक्के बा । बाद मे डंठल लेके डोलही के परी उहो जी एस टी के संगे , मने देके । एकरो मे मेझरा
आ झोल – झाल के ठेकान नइखे । अजुवों स्किल इंडिया के नाँव पर मुड़िए गीनल – गिनावल जा रहल
बा ।
रार – मनुहार मे मयभा महतारी के छोहा के लोर पोछे ला धउरल आ बिलाई
के हज के तइयारी लेखा बुझात बाटे । जब दाता त्राण देवेला उतारू हो जाला त परजा
परतोखो ला कोना – अतरा हेरे लागेला । मने जिनगी जुलुम ना जवाल मे अझुरा के
चकरघिन्नी बनि जाले । फेर जनता अपना पसन्न पर हाथ मले के परि जाला , एह घरी इहवाँ इहे हो रहल
बा । जवने आस के मसाल जलल , उ आस ओही मसाल मे जरि गइल भा मसाले बिला गइल । लागत बा ओकरो
ला खोझहरिया बोलावे के परी ।
नन्हका लइकवन के लेमनचूस लेखा भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची वाली
बतिया बनि के रह गइल बा । झूठिया के झांसा के झोल मे हेतना समय बीत गइल, बाकि अभियो लोग झांसा देवे
से बाज नइखे आवत । तबों सोझवा भोजपुरिया मनई ओकरे मे भुला के अझुराइल रहेला । इ
खेला सन 64 से चल रहल बा , आगे कबले चलत रही ,पता नइखे । घरवों मे कुछ जना अइसन
बाड़े जे हवाई हल्ला काटे मे जी जान से लगल बाड़े । उहो जमीन से चार बित्ता उप्पर
होके । अइसन लोगन के दरकिनार करत जंतर मंतर से लेके अब देस के कोना कोना से
भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची के बात उठि रहल बा , सरकार के अब जगह देवहीं के परी । उमेद बा कि इ
कदम एह सरकार के संजीवनी के काम कर जाय । नाही त अब इहे कहल जा सकेला , गइल भइसिया पानी मे ।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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