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Tuesday, May 8, 2018

खेलब न खेलय देब , खेलवे बिगारब


का जमाना आ गयो भाया , सभे लँगड़ी मारे आला खेल मे अझुरा के रह गइल बा । का राजा आ का रंक , जेहर देखीं ओहर अब इहे खेल चल रहल बा । सोरी से लेके फुनुगी तक ,गोड़े से लेके मुड़ी तक सभ एही मे सउनाइल बा । कतहूँ चैन नइखे बाचल । कोना से अंतरा ले सभ घेराइल बा , ओही मे पिसाइलो बा , गेहूँ के संगे घुन लेखा । एह रेलम पेल मे बिकसवा ना जाने केहर डहर भुला गइल बा । सभसे बेसी उहे खोजाइयो रहल बा । कुछ जाना जे तनि रेंगरियाय गइल रहे ओकरा एगो नवकी बेमारी घेर लेले बा । उनके एकही धुन सिरे चढ़ के बोल रहल बिया , केहु दोसर न रेंगरियाय जाव । जइसहीं लोग जुग जुगाए लगने एगो नवा वाइरस लिया के छोड़ दियाइल बा , रहा लोग एही मे अझुराइल । ना एकरा से बहरा अइबा लोग , रेंगरिअइबा सभे । अइसन बेमारी के समाज जनित बेमारी कहल जाला । एहमे जवन चोट लागेले ,बड़ा बुझाले बाकि “देहिं भा दिल के चोट, चेहरा पे ना लउके के चाही इहे मंतर लेके लोग जुझत रहेला ।
      हे सरकार रउवा त बुझाता झोंक के परतोख देवे लायक ना छोड़ेम, ओकरो से आगे जाये के जोगाड़ मे बानी । अपने झुग्गी से महल मे पहुँच गइनी आ ओकरा के जायज बना लेहनी , परजा के झुग्गियों लायक नइखे छोड़ल चाहत । सुनले रहलीं कि अंग्रेज़वा लगान असूले मे माहिर रहलें , बाकि रउवा त ओहनियों के बाप निकलनी । चूल्हा चुहानी तक रउवा ताक झाँक क रहल बानी , मने चाहत का बानी, साँसो लिहलका पर टेकस असूलब का ? एक जाना त आलू के फैक्टरी लगावत बाड़ें , रउवा हावा के फैक्टरी लगा देही आउर उहो हावा मे । रउवा किरपा से छोट आ माझिल लोग करिहाँय पकड़िए लीहले बाड़े, कुछे दिन मे थउंस जइहें, राउर इहे चाहतों बाड़ी । फेर रउवा जनता के लास पर महल बनाई भा बुलेट ट्रेन चलाई ।
      पुरुब से पच्छिम भा उत्तर से दाखिन तकले त्राहि त्राहि हो रहल बा , कतों मनई कटात बाड़े, कतो किसान आ मजूर । कबों चीन धमकावत बा त कबों पाकिस्तान ,देस के त सभे अबरे के मेहरी बूझ लेले बा, रउवा आपन चेहरा आ फिगर बना रहल बानी , केकरे बदे ? जब मूले ना बाची त सूद केकरा से असूलब आउर केकरे खातिर । जान बूझ के अनजान बनल त नीमन ना नु कहाई । जे एन यू  भा बी एच यू के काहे दुर्दसा करावत बानी । जेकरा के एह देस आउर एकरे इजत के खियाल नइखे , ओकरा के ओकर औकात बतावल जरूरी होला, एक बेरी इलाज त शुरू करी, फेर देखी कइसे सभ जय जय ना करी । जे आउर जहवाँ खेल बिगारे के खेला फनले बा, उ सभे डहर ध लीही। जरूरत त ओहनी के चहेट के पोछियवला के बा ।
      एह देस मे एगो आउर गैंग हवे, जवने के एकही गो काम ह , नीमन के बाउर बतावल । उ गैंग कबों अवार्ड वापसी करेला त कबों आस्था पर चोट करेला । बुद्धिजीवी कहाए वाला ई गैंग सामाजिक समरसता नोकसान चहुंपावत रहेला । देश के परंपरा के मज़ाक बनावे के फेरा मे अपने मज़ाक बनवा लेवेला । कबों – कबों जानवर के ब्योहारों करे मे शरम ना करे । कुल मिलाके एह गैंग के एक्के काम ह – खेलब न खेले देब , खेलवे बिगारब 

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी     

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