का जमाना आ गयो भाया
, जोलहवा के त सामते आ गइल । जेके देखS , जेहर देखS ओहर एकही गो अवजिए सुनाता ..... बेच्चारा
बेबात पिसाइल जात बा । कइल धइल केकर बा ई करम
आ जान पर केकरे बन आइल । रमेसर
काका पांडे बाबा के पान के दुकानी पर ठाढ़ होते बड़बड़ाए लगने । देखS न , बाबा एगो सोझबक मनई
के ओही के संघतिया सभे अइसन फंसवले बाड़न कि बेचारा न घर के बाचल न घाट के । अपने
कूल्हि मिल के सब हजम क गइलें सन आ ओह बेचारा के मोकदमों मे फँसा दीहलें सन । एक त
अइसहीं ब्योपार मे लागल घाटा से आज ले ना उबर पइले बा बेचारा , ओह पर मोकदमा के
मार आउर ओहू मे हार । फेर त सरकारो आपन ओही पर ज़ोर देखा रहल बा , सुनली ह कि पेनाल्टी
लगा देले बा । उहो थोड़ मोड़ नइखे , पाता चलल ह कि करोड़न मे बा । ओकर त कई गो पुहुत
मर खप जाई तबों ना भर पाई । कबों कबों त इहे बुझाला कि कानूनों के डंडा कमजोरे मनई
बदे बनल ह । दमगर लोगिन के दुवरे कानूनों दरबारे लगावेला । एक गो ना , कई गो अइसन परतोख
भेंटा जाई । लोग बाग हजारन करोड़ हजम क के माजा मार रहल बाड़े , उनकर न त कन्ना
छुटल ना भूसी । पांडे बाबा के ना रहि गइल त पूछ बइठले, केकरा बारे मे कहि
रहल बानी रमेसर बाबू , हई लीं , पान घुलाईं।
अरे दादा रे दादा , रउवा के अबले ना
बुझाइल , रमसरना के बारे मे त कह रहल बानी बेचारा पढ़ल लिखल सोझबक मनई राछसन के
बीचे पता ना कवने मुहुरत मे जा के अझुरा गइल । अइसन अझुराइल , अइसन अझुराइल कि केहरों के ना बाचल । साँचो आजु के लोग त
गिद्ध बा गिद्ध भा कुकुर नोच नोच के बेचारा के खा गइलन सन । लाज सरम से त ओहनी के
कवनों सरोकारों नइखे । उ कुल्हि त गिद्ध भा कुकुरो से गयल गुजरल बाड़े सन । अइसना
लोगन के बारे मे देख सुन के घिन बरेला ।
सुनी , रमेसर बाबू , आजु के जमाना सीधई के
नइखे । सोझ – सरीफ़ के लोग बाग बउराह आ
बकलोल बूझेला । ओकरे सहियो बात के कतहु सुनवाई ना होखेला । सुनलही होखब ----“अबरे के मेहरी , भर गाँव के भावज”
लागेले । सभे चिकारी करेला का छोट – का बड़ । चिकारी त चिकारी मोका मिले त कुछहू
करे खाति तइयार रहेला । आउर त आउर ओकर आपन कहाए वाला लोगवा ओही के बाउर
बुझेला । अइसना मे बेचारे के घरहूँ वाला
लो ओकरे के बाउर बुझे लागेला आउर अइसनो लो उपदेश देवे लागेला , जेकर ककहरों से
कबों भेंट ना होखे । बेगर मुंहों वाला लो ताना
मार जाला । सदियन से इहे चलल आवत ता, अगहूँ इहे चलत रही । गोसाईं बाबा कहि गइल बाड़ें –
“समरथ को नहीं दोष गोसाईं”
मतलब दोष खालि कमजोरवने मे हेरल जाला
आउर दंड विधानों खाली गरीबने खाति बनल बा । एगो गरीब के कवनों दोष देखाए भर के देर
बा , पुलिस – परसासन चाक चउबन्द देखाए लागेला । कानूनों के टंगरी मे ज़ोर
हो जाला । जवने कानून के दमगरन के देखते लकवा मार देला ।
पांडे बाबा जानतानी , रमेसर कक्का बोलने , एह हालत मे मनई
बउझका जाला आउर आपन दिमागी संतुलन बिलवा देवेला । पता ना , कइसे बेचारा रमसरना
कुल्हि सहत आउर झेलत होखी । छिन छिन बदलत मन मे अपना के संभारल एगो लमहर तपस्ये ह ।
भगवान ओकरा ई कुल्हि सहे के तागत देसु । बिसवास के अरथी त पता ना कबे ई दुनिया छोड़
के जा चुकल बा । अब त इहे लागेला कि दादा बाबा लोग के जमनवे नीमन रहे , कबों हेतना केकरो
के सोचे के ना पड़त रहे । एक दोसरा ला एक दोसरे के मन मे नेह छोह रहे आ दुवरा पर
जगहों रहे । अब त लोग थरिया के रोटी आ आँखी के सुरमों चोरा के भा छीन के ले भागे
के फिराक मे हरमेसा रहेला । नीयत आउर आदमीयत के दियरी अब टिम टिमातों बा कि ना , शोध के विषय बन चुकल बा । रिसता नाता से
लोग अलाव जला चुकल बाड़ें । केकरो लग्गे केहु खाति जरिकों फुरसत नइखे । आज त लोग
घरहीं मे एक दोसरा के देखल ना चाहत बाड़े । भाई – भाई से , बहिन बहिन से , भाई बहिन से एतना
दूर हो चुकल बाड़े कि सोच के डर लागे लगेला ।
छोटुवा ढेर देरी से पांडे बाबा आउर रमेसर
कक्का के बात सुनत रहे , बाकि ओकरा कुछों ना बुझाइल । कवने बात के लेके इ
दूनों जने हेतना लमहर बतकही कइलस ह लो । बाकि छोटुवा इ जरूर सोच लीहलस कि अपना
जिनगी मे उ सोझबक मनई त नहिये बनी , भलही कुछों बन जाउ । एह दुनिया मे जिए खाति
दोसरा के धोखा दीहल चलन बन गइल बा , जेहर देखी सगरों एही जहर के बाढ़ लउकत करेला
।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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