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Tuesday, May 8, 2018

का चाही --- का मिल रहल बा ?


का जमाना आ गयो भाया, संस्कार आ इंसानियत बुझता देश छोड़ कतौ पराय गइल बाटे । अब त भोरे भोरे अखबारो देखे मे डर लागता । रोजे 2-4 गो कवनो न कवनो अइसन खबर देखा जात बाड़ी सन , जवने से रोवाँ झरझरा जाता । आँख लोरा जात बा । आजु के समाज से घिन होखे लागत बा । बिसवास के बात साँचो बेमानी हो गइल बाटे । का माई , का बाबू , का हित – नात केकरो पर बिसवास करे जोग ना रह गइल बा । जवने समाज मे जब अपने माई-बाबू जब अपने बिटिया के अस्मत के सौदा करे लागल बा, त दोसरा पर कइसन बिसवास ? जहवाँ महतारी लोग अपने अपने बेटी – बहू के इज्जत खाति जान दे देत रहे, उहवों आज कुछो कहे लायक बाचल नइखे । समाज हर दिन गरत मे जा रहल बा । केहरो असरा के कवनो किरिन नइखे देखात । समाज , देश , राजनीति , राजनेता सभे आदमियत भुला गइल बाड़े । का राजा , का परजा केकरा के दोष दीहल जाव । मनई आज खाली आ खाली पइसा के भूख से बेकल बा , ओकरा खाति कुछों करे मे, केतनों गरत मे गिरे मे ओकरा कवनो शरम नइखे । राजनीति करे वाला लोग त अंगरेजन के नीति पर चल रहल बाटें , “बाटों और राज करो” आ सभे के अझुरा के राखे मे उनके उनकर राजनीति के दोकान चलत देखात बा । उ लोग इहे करे मे दिन रात लागल बा । जात - पात , धरम के लड़ाई अपने चरम पर बा । 

            समाज आउर मनई के सोच केतना गिर चुकल बा , एकरा कहे ,सुने मे शरम लगता । एह सब खाति अलग अलग लोग अलग अलग तरह से परिभाषा गढ़ रहल बाड़ें । बाकि खाली परिभाषा गढ़ लिहले से भा एकर दोष केहू दोसरा पर लगा दीहले से त समाज के ई बुराई दूर ना होखी । आजू के जरूरत ई बाटे कि समाज से , देश से ई बुराई दूर होखों । समाज के ई भाग अपना के मजबूर ना सुरक्षित महसूस करे । बेगर मेहरारून के ई सृष्टि के कल्पनों ना कइल जा सकेले । अइसना मे सभ्य आ सुरक्षित समाज के बात बेमानी बा । वेदकाल से विआह के बेरा एगो असीस दियात रहे , जवन वेद मे लिखलो बा –

“दशाश्याम पुत्राना देहि,पति मेकमेकादशम कुधि”

      जवन लइकी अपने जिनगी मे अपने संतान के संगही अपने खनिहार के माई के भूमिका मे आवे असीस के संगे आपन जिनगी शुरू करेले, ओकरा प्रति समाज काहें एतना निष्ठुर हो जाला , सोच के विषय बा । ओह आधी आबादी के संगे समाज एतना निरदई हो गइल बा, ओकरे सम्मान के एतना बाउर बना रहल बा , जवने से आज पूरा समाज के मुड़ी नीचे हो गइल बा । कठुआ मे जवन कुछ भइल भा उन्नाव मे  - चिंता के बात त ई बा कि एह तरह के कुकरम आ जघिन अपराध के कुछ लोग आ मीडिया के एगो खास हिस्सा साम्प्रदायिक रंग देवे में लागल बा। आपन राजनीतिक रोटी सेंके मे लोग समाज के कवने ओरी लेके जा रहल बा, उहो लोग के एकर पता नइखे । अब त हमरा संस्कृत के ई उक्ति गलत बुझाले –

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”

      इहाँ त देवता लोग के झाँको ना आवत बा । इहाँ त “रमन्ते सर्वत्र राक्षसा” देखाई दे रहल बाड़े । आज कतौ केहू महिला लोग खाति सनमान भूलियो के देखावत होखी कि ना , सोचे के पड़ी ।

      समाज मे कई गो विचार धारा हरमेसा रहेनी सन, अजुवों बा । समाज क रूप काहें भइल, ई विचार के जोग बात बाटे । समय समय विमर्श होत रहे के चाही, उ हो रहल बा । नारी आंदोलन , नारी मुक्ति , नारी विमर्श अइसन कइगों नांव हो सकेला भा होबो करी । बाकि एह सब के मतलब सब अपना हिसाब से लगावत आ रहल बा , अपना हिसाब से परिभाषों गढ़ले बा भा अजुवों गढ़ रहल बा । कवनो एगो कारन ना दीहल जा सकेला एह स्थिति खाति । ढेर कारन बाटे जवन आज समाज के एह स्थिति मे लिया के छोड़ देले बा । आधुनिकता, स्वतन्त्रता , मुक्ति , फिलिम, टीवी,खुलापन, एकाकी परिवार, धन लिप्सा , भोग के प्रवित्ति , अवसाद आउर बहुत कुछ सभे के सोचे के मजबूर क रहल बा ।

            कबों-कबों त ई लागेला कि समाज मे फेर से आदिम प्रवृत्ति काहें ? कहीं ई कुल्हि अनुशासन के कमी के कारन त नइखे ? बाकि अनुशासन के मतलब इहाँ केकरो बंधुवा बना के राखे से नइखे । इहाँ अनुशासन के मतलब सामाजिक ताना – बाना के हिसाब से चलला के बा । का अब एकरो के माने मे कवनो समस्या बा ? मानवतावादी लोगन के हो सकेला बाकि होखे के चाही का ? नारी मुक्ति के संचालकन के हो सकेला बाकि होखे के चाही का ? हमरा अभिओ ले ना बुझाइल कि नारी के मुक्ति केकरा से , पिता से , पुत्र से भा पति से ? कई गो विचारक लोग नारी मुक्ति के मतलब ई बतावेला कि नारी के अपने मन आ देह पर नारी के ही अधिकार होखे के चाही । ठीक ह , होखे के चाही बाकि कहीं ई सोच नारी सत्ता भा पुरुष सत्ता के विनाश के ओरी समाज के ढकेले के कवनो जोजना त नइखे ? कवनो दोसर सभ्यता भारतीय सभ्यता मे जहर त बिखेरे मे ना लगल बा ? कवनो स्वतन्त्रता के मतलब ई होला कि ओहसे दोसरा के स्वतन्त्रता प्रभावित न होखे । बाकि इहाँ सभे के खाली अपने स्वतन्त्रता से मतलब बा, जवना के नीमन त ना कहल जा सकेला ।

      हमरा त ई लागेला कि आज जरूरत ई बा कि पहिले के तरे जइसे कवनो गाँव मे केकरो घरे केहू के लइकी के बिआह होखे, उ ओह गाँव के सभेके बेटी आ बहिन के बिआह बुझाव । सभे एक्के ऊर्जा से ओकरा के निभावे मे लाग जाय । चच्चा , कक्का , दद्दा नीयर नाता जात धरम से परे रहल । गाँव के लइकी भर भर गाँव के बहिन, बेटी रहस । मतलब ई कि समाज के ओही ताना बाना के फेर से जियावे के आज जरूरत बुझात बाटे । एक घरे के बुढ़वा के डर गाँव भर मानत रहे , आँखि मे सरम रहे । कवनो घरे के बड़ केहू के लइका भा लइकी के बाउर होत देख ना सके, ओकरा समझावे , डांटे , फटकारे से ना झिझके । अपनत्व के पराकाष्ठा के सब बुझे आ निभावे । कवनो बिअहुता लइकी के गाँव मे ओकरे नइहर से केहू आ जाव, त ओह लइकी के उ अपने बाप – भाई नीयर प्रिय लागे । नेह छोह के ओही गठरी के आजो पहिले से जादा जरूरत बा । दादा – दादी भा नाना – नानी वाले संस्कार के जरूरत बा । कहे के मतलब ई कि फेर से सौ दुख सहलों पड़े , त ओकरा के भुला के फेर से संयुक्त परिवार के जरूरत बा । आज नाही त काल्ह एकरा के अपनावही मे समाज के भला बा ।   

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी  
          
       

कउवा से कबेलवे चलाक


का जमाना आ गयो भाया , पहिले त अंडा चूजा के सीख देत रहे बाकि अब त बापे के सीख देवे लागल बिया । तकनीक के जमाना नु बा , केनियों आड़ा तिरछा देखि के धार फूटि रहल बिया । चाहे ओकरा से गाँव तबाह होखे भा देश । पानी के रेला त रेला ह , ओकरा के केकरो पहिचान नइखे । जब पानी के फुफुकारत धार चल देवेले त ओहमे बड़ बड़ पेड़ , पहाड़ , गाँव – गिराव सभे के अपने लय मे नाधि देले । मनई से लेके जीव - जंत तक तबाह हो जालें , बाकि गिद्धन के मउज हो जाला । महीनन के छुधा तिरपित करे के जोगाड़ हो जाला । इहे दुनिया ह , एक के दुख दोसरा ला सुख हो जाला ।

      आज बिहनही  से मन बउवाइल ह , केकरा नीमन मानी आ केकरा के बाउर । सभे गिरोह बना नटई फार रहल बा । जवन बाप अपने बेतवा खाति आपन भविष्य दाँव पर लगा दहलेस , उहे बेतवा बाप के ककहरा पढ़ा रहल बा । जवने काम से बाजार के कमर टूट गइल ओकरा के गेमचेंजर बता रहल बा । सोझवा मनई के लूटे के रोज एगो नाया जोगाड़ जोड़ रहल बा । अबहिन ले लो अच्छा दिन जोहत बाड़े , अब केहु क़हत बा कि अर्थब्यवस्था मे सुधार आ रहल बा । बाकि राउर समाचार पत्र देखीं , जी डी पी गिर रहल बा । चुहानी के समान महँग हो गइल आ लोग कह रहल बा कि जी एस टी खुसिहाली लेके आई । अपने दिन से पुछे पराये दिल के हाल , किसान मरि रहल बाड़े , गरीब आउर गरीब भइल जात बाड़े , भूखे मरे के नउबत आ गइल बा । नेता लो अबो चुग्गा दाल रहल बा ।

      असल मे हवाई लो के हाथ मे जमीन से जुड़ल काम जब आ जाला , अइसने कुछ देखे के मिलेला । अरे एक बेरी बजार मे आईं आ देखीं कि लो का क रहल बा , फेर बुझा जाई । 20 बटे 20 के वातानुकूलित कमरा मे बइठ के बकैती मति झारीं । बिकास –विकास सुनि सुनि के कान पाक गइल । विकास त लउकल बाकि नेतन आ उनके अपनन के दुवारे । पूरे क पूरा खानदान तिरपित । एगो जगहा आउर विकास लउकल , बाबा लोगन के दुवरे । ई कुल्हि देखि के तुलसी बाबा के चौपाई मन परि गइल –

कोउ नृप होय हमे का हानी , चेरी छोड़ कब होबे रानी ।

 गरीबन ला ई बतिया पहिलहूँ  साँच रहे , अजुवों साँच बा । एकहु गो नीमन बात त देखात , कुल्हि गुड़ गोबर , एकही मे एक सउनात , सड़त - गलत , बहत – बिलात छिछिया रहल बा ।
 कबों – कबों त ई लगेला कि चोरन के बस्ती मे खजाना रखाइल, चौकीदार ओही बस्ती के , राम भला करिहें । कवनो नदी मे एगो मंगर आ जाला , त लोग ओमे नहाइल छोड़ देला । इहाँ त मछरी लेखा मंगर बाड़े सन । हर बात ला जज़िया कर लगा लगा के सरकार आपन भलही खजाना भर के खुस होले बाकि 2019 अब ढेर दूर नइखे । अंकड़ के बोल के बिलाए मे ढेर देर ना लागेला । हमरा त बुझात बा –

जब नाश मनुज पर छाता है , पहले विवेक मर जाता है ।

      कहीं इहे त ना साँच होए जा रहल बा । विकास त भइया बिकसित के हो रहल बा । 1 बरीस मे उद्योगपतिन के धन दूना – तीना , 5 बरीस मे नेतन के धन 10 गुना आ जे 10 बरीस डाइबरी क रहल बा , उ आजों डाइबरे बा । कौशल विकास के टरेनिंग मने गोइठा मे घीव सोखावल , बन्हा उद्घाटन के पहिलही बहा गइल , देखीं जा विकास भा सत्यानाश । इहे कुल्हि सोचत रहनी ह कि एही मे लइकई मे सुनल एगो बात मन परि गइल ह ।  जब इया हमनी इस्कुले जाये के बेरा कहें कि ए बचवा बचि के जईहा । त हम बोल देही , ईया से कि हमरा के मालूम ह , रोज रोज एकही बात । तब खिसिया के ईया कहस – देखा न दुलहिन , अब त “कउवा से कबेलवे चलाक” हो गइल बाड़े सन ।

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

               

खेलब न खेलय देब , खेलवे बिगारब


का जमाना आ गयो भाया , सभे लँगड़ी मारे आला खेल मे अझुरा के रह गइल बा । का राजा आ का रंक , जेहर देखीं ओहर अब इहे खेल चल रहल बा । सोरी से लेके फुनुगी तक ,गोड़े से लेके मुड़ी तक सभ एही मे सउनाइल बा । कतहूँ चैन नइखे बाचल । कोना से अंतरा ले सभ घेराइल बा , ओही मे पिसाइलो बा , गेहूँ के संगे घुन लेखा । एह रेलम पेल मे बिकसवा ना जाने केहर डहर भुला गइल बा । सभसे बेसी उहे खोजाइयो रहल बा । कुछ जाना जे तनि रेंगरियाय गइल रहे ओकरा एगो नवकी बेमारी घेर लेले बा । उनके एकही धुन सिरे चढ़ के बोल रहल बिया , केहु दोसर न रेंगरियाय जाव । जइसहीं लोग जुग जुगाए लगने एगो नवा वाइरस लिया के छोड़ दियाइल बा , रहा लोग एही मे अझुराइल । ना एकरा से बहरा अइबा लोग , रेंगरिअइबा सभे । अइसन बेमारी के समाज जनित बेमारी कहल जाला । एहमे जवन चोट लागेले ,बड़ा बुझाले बाकि “देहिं भा दिल के चोट, चेहरा पे ना लउके के चाही इहे मंतर लेके लोग जुझत रहेला ।
      हे सरकार रउवा त बुझाता झोंक के परतोख देवे लायक ना छोड़ेम, ओकरो से आगे जाये के जोगाड़ मे बानी । अपने झुग्गी से महल मे पहुँच गइनी आ ओकरा के जायज बना लेहनी , परजा के झुग्गियों लायक नइखे छोड़ल चाहत । सुनले रहलीं कि अंग्रेज़वा लगान असूले मे माहिर रहलें , बाकि रउवा त ओहनियों के बाप निकलनी । चूल्हा चुहानी तक रउवा ताक झाँक क रहल बानी , मने चाहत का बानी, साँसो लिहलका पर टेकस असूलब का ? एक जाना त आलू के फैक्टरी लगावत बाड़ें , रउवा हावा के फैक्टरी लगा देही आउर उहो हावा मे । रउवा किरपा से छोट आ माझिल लोग करिहाँय पकड़िए लीहले बाड़े, कुछे दिन मे थउंस जइहें, राउर इहे चाहतों बाड़ी । फेर रउवा जनता के लास पर महल बनाई भा बुलेट ट्रेन चलाई ।
      पुरुब से पच्छिम भा उत्तर से दाखिन तकले त्राहि त्राहि हो रहल बा , कतों मनई कटात बाड़े, कतो किसान आ मजूर । कबों चीन धमकावत बा त कबों पाकिस्तान ,देस के त सभे अबरे के मेहरी बूझ लेले बा, रउवा आपन चेहरा आ फिगर बना रहल बानी , केकरे बदे ? जब मूले ना बाची त सूद केकरा से असूलब आउर केकरे खातिर । जान बूझ के अनजान बनल त नीमन ना नु कहाई । जे एन यू  भा बी एच यू के काहे दुर्दसा करावत बानी । जेकरा के एह देस आउर एकरे इजत के खियाल नइखे , ओकरा के ओकर औकात बतावल जरूरी होला, एक बेरी इलाज त शुरू करी, फेर देखी कइसे सभ जय जय ना करी । जे आउर जहवाँ खेल बिगारे के खेला फनले बा, उ सभे डहर ध लीही। जरूरत त ओहनी के चहेट के पोछियवला के बा ।
      एह देस मे एगो आउर गैंग हवे, जवने के एकही गो काम ह , नीमन के बाउर बतावल । उ गैंग कबों अवार्ड वापसी करेला त कबों आस्था पर चोट करेला । बुद्धिजीवी कहाए वाला ई गैंग सामाजिक समरसता नोकसान चहुंपावत रहेला । देश के परंपरा के मज़ाक बनावे के फेरा मे अपने मज़ाक बनवा लेवेला । कबों – कबों जानवर के ब्योहारों करे मे शरम ना करे । कुल मिलाके एह गैंग के एक्के काम ह – खेलब न खेले देब , खेलवे बिगारब 

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी     

खेत खइलस गदहा .... मार खाई .......?


का जमाना आ गयो भाया , जोलहवा के त सामते आ गइल । जेके देखS , जेहर देखS ओहर एकही गो अवजिए सुनाता ..... बेच्चारा बेबात पिसाइल जात बा । कइल धइल केकर बा ई करम  आ जान पर केकरे बन आइल ।  रमेसर काका पांडे बाबा के पान के दुकानी पर ठाढ़ होते बड़बड़ाए लगने । देखS, बाबा एगो सोझबक मनई के ओही के संघतिया सभे अइसन फंसवले बाड़न कि बेचारा न घर के बाचल न घाट के । अपने कूल्हि मिल के सब हजम क गइलें सन आ ओह बेचारा के मोकदमों मे फँसा दीहलें सन । एक त अइसहीं ब्योपार मे लागल घाटा से आज ले ना उबर पइले बा बेचारा , ओह पर मोकदमा के मार आउर ओहू मे हार । फेर त सरकारो आपन ओही पर ज़ोर देखा रहल बा , सुनली ह कि पेनाल्टी लगा देले बा । उहो थोड़ मोड़ नइखे , पाता चलल ह कि करोड़न मे बा । ओकर त कई गो पुहुत मर खप जाई तबों ना भर पाई । कबों कबों त इहे बुझाला कि कानूनों के डंडा कमजोरे मनई बदे बनल ह । दमगर लोगिन के दुवरे कानूनों दरबारे लगावेला । एक गो ना , कई गो अइसन परतोख भेंटा जाई । लोग बाग हजारन करोड़ हजम क के माजा मार रहल बाड़े , उनकर न त कन्ना छुटल ना भूसी । पांडे बाबा के ना रहि गइल त पूछ बइठले, केकरा बारे मे कहि रहल बानी रमेसर बाबू , हई लीं , पान घुलाईं।
      अरे दादा रे दादा , रउवा के अबले ना बुझाइल , रमसरना के बारे मे त कह रहल बानी बेचारा पढ़ल लिखल सोझबक मनई राछसन के बीचे पता ना कवने मुहुरत मे जा के अझुरा गइल । अइसन अझुराइल , अइसन अझुराइल  कि केहरों के ना बाचल । साँचो आजु के लोग त गिद्ध बा गिद्ध भा कुकुर नोच नोच के बेचारा के खा गइलन सन । लाज सरम से त ओहनी के कवनों सरोकारों नइखे । उ कुल्हि त गिद्ध भा कुकुरो से गयल गुजरल बाड़े सन । अइसना लोगन के बारे मे देख सुन के घिन बरेला ।

      सुनी , रमेसर बाबू , आजु के जमाना सीधई के नइखे ।  सोझ – सरीफ़ के लोग बाग बउराह आ बकलोल बूझेला । ओकरे सहियो बात के कतहु सुनवाई ना होखेला ।   सुनलही होखब ----“अबरे के मेहरी , भर गाँव के भावज” लागेले । सभे चिकारी करेला का छोट – का बड़ । चिकारी त चिकारी मोका मिले त कुछहू करे खाति     तइयार रहेला ।  आउर त आउर ओकर आपन कहाए वाला लोगवा ओही के बाउर बुझेला । अइसना  मे बेचारे के घरहूँ वाला लो ओकरे के बाउर बुझे लागेला आउर अइसनो लो उपदेश देवे लागेला , जेकर ककहरों से कबों भेंट ना होखे  । बेगर मुंहों वाला लो ताना मार जाला । सदियन से इहे चलल आवत ता, अगहूँ इहे चलत रही । गोसाईं बाबा कहि गइल बाड़ें –

“समरथ को नहीं दोष गोसाईं”
            मतलब दोष खालि कमजोरवने मे हेरल जाला आउर दंड विधानों खाली गरीबने खाति बनल बा । एगो गरीब के कवनों दोष देखाए भर के देर बा , पुलिस – परसासन चाक चउबन्द देखाए लागेला । कानूनों के टंगरी मे ज़ोर हो जाला । जवने कानून के दमगरन के देखते लकवा मार देला ।  

      पांडे बाबा जानतानी , रमेसर कक्का बोलने , एह हालत मे मनई बउझका जाला आउर आपन दिमागी संतुलन बिलवा देवेला । पता ना , कइसे बेचारा रमसरना कुल्हि सहत आउर झेलत होखी । छिन छिन बदलत मन मे अपना के संभारल एगो लमहर तपस्ये ह । भगवान ओकरा ई कुल्हि सहे के तागत देसु । बिसवास के अरथी त पता ना कबे ई दुनिया छोड़ के जा चुकल बा । अब त इहे लागेला कि दादा बाबा लोग के जमनवे नीमन रहे , कबों हेतना केकरो के सोचे के ना पड़त रहे । एक दोसरा ला एक दोसरे के मन मे नेह छोह रहे आ दुवरा पर जगहों रहे । अब त लोग थरिया के रोटी आ आँखी के सुरमों चोरा के भा छीन के ले भागे के फिराक मे हरमेसा रहेला । नीयत आउर आदमीयत के दियरी अब टिम टिमातों  बा कि ना , शोध के विषय बन चुकल बा । रिसता नाता से लोग अलाव जला चुकल बाड़ें । केकरो लग्गे केहु खाति जरिकों फुरसत नइखे । आज त लोग घरहीं मे एक दोसरा के देखल ना चाहत बाड़े । भाई – भाई से , बहिन बहिन से , भाई बहिन से एतना दूर हो चुकल बाड़े कि सोच के डर लागे लगेला ।  
            
      छोटुवा ढेर देरी से पांडे बाबा आउर रमेसर कक्का के बात सुनत रहे , बाकि ओकरा कुछों ना बुझाइल । कवने बात के लेके इ दूनों जने हेतना लमहर बतकही कइलस ह लो । बाकि छोटुवा इ जरूर सोच लीहलस कि अपना जिनगी मे उ सोझबक मनई त नहिये बनी , भलही कुछों बन जाउ । एह दुनिया मे जिए खाति दोसरा के धोखा दीहल चलन बन गइल बा , जेहर देखी सगरों एही जहर के बाढ़ लउकत करेला ।    


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

केकर बिस्तरा गोल हो होई


का जमाना आ गयो भाया ,जु मनई के मत मरा गइल बा ,देखत देखत आ  सुनत सुनत । केकरा के नीमन बुझे आ केकरा के बाउर ,ई पहिचान कइल सरल नइखे । पनामा पेपर से लेके पैराडाइज़ पेपर के कहनी मे मगज घुमरी घूम रहल बा । आम मनई कनफुजिया गइल बा । 3 बरीस मे 6 करोड़ से 16 सौ करोड़ के खेला कइसे हो सकेला , इ सोझवें लउकत बा । ओहु पर परदा डालेला महारथी लोग लाग गइल बा । केकर कहवाँ आ कवन कनेक्सन कइसे जुड़ल बा , एकरा परिभाषित कइल सरल नइखे । ई-कामर्ष के खेला से ब्योपार के बेवस्था के सांस उखड़े लागल बा । केतना जाने के खटिया खाड़ हो गइल बा , शोध के विषय बा । कहिया केकर बिस्तरा गोल हो जाई , कहल ना जा सकेला । ब्योपारी सभे बिखियाइल बाड़े काहे कि उनके सोझवे उनका दुनिया उजाड़ हो रहल बा । ओहू लोगन के अब तुलसी बाबा के इयाद सता रहल बा ।

      नोटबंदी से जी एस टी के खेला मे सभके अझुरा के कुछ लो कबड्डी खेल रहल बाड़े । जी एस टी के पोर्टल थउस रहल बा , कुछ दिन मे केकर का रेकड़ बा , बिला जाई , भा बिला गइल होई , फेर त पेनाल्टी – पेनाल्टी के खेला शुरू हो जाई । फेर केकरे हाथे कटोरा लागी आ केकरे हाथे केतली , जांच बइठावल जाई नु । जेकरा मलाई चापे के बा , उ त  चापिए रहल बा , रउवा झूलल करीं झुलुवा कबों एह डारी , कबों ओह डारी । रउवा हाथे भेंटाई कुछुवो ना । भगवाने सोझ होखिहें त खाली थरिया भा कटोरा भेंटाई । अनही लोग खुस होके आँख मून के खाली कसोरा मे से करियवा जामुन अबले हेर रहल बा, हेरते रही । बिलइया करियवा जामुन के उजरका रसगुल्ला बना के हजम क गइल । उलट फेर के चकरी कब घूम जाई , कुछों पता नइखे । 28 कब 18 हो जाई , लगावल पूजी पर के कुंडली मार के बइठ , कहल ना जा सके ।   

      अबहियों ले मुंगेरीलाल के हसीन सपना कुछ लोग देख रहल बा , ओह लोग के कब सपना टूटी भा कब जागी लो , पता नइखे । केतना जाने लालीपाप चूस रहल बाड़ें , कबले चूसत रहिहें , उनहूँ लोग के पता नइखे । बेराइटी ढेर बा , कतों डिजिटल , कतों स्किल , कतों मेड इन त कतों स्वच्छ भारत मिशन के लालीपाप । कवनों उठा लेही , सवाद एक्के बा । बाद मे डंठल लेके डोलही के परी उहो जी एस टी के संगे , मने देके । एकरो मे मेझरा आ झोल – झाल के ठेकान नइखे । अजुवों स्किल इंडिया के नाँव पर मुड़िए गीनल – गिनावल जा रहल बा ।

      रार – मनुहार मे मयभा महतारी के छोहा के लोर पोछे ला धउरल आ बिलाई के हज के तइयारी लेखा बुझात बाटे । जब दाता त्राण देवेला उतारू हो जाला त परजा परतोखो ला कोना – अतरा हेरे लागेला । मने जिनगी जुलुम ना जवाल मे अझुरा के चकरघिन्नी बनि जाले । फेर जनता अपना पसन्न पर हाथ मले के परि जाला , एह घरी इहवाँ इहे हो रहल बा । जवने आस के मसाल जलल , उ आस ओही मसाल मे जरि गइल भा मसाले बिला गइल । लागत बा ओकरो ला खोझहरिया बोलावे के परी ।

      नन्हका लइकवन के लेमनचूस लेखा भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची वाली बतिया बनि के रह गइल बा । झूठिया के झांसा के झोल मे हेतना समय बीत गइल, बाकि अभियो लोग झांसा देवे से बाज नइखे आवत । तबों सोझवा भोजपुरिया मनई ओकरे मे भुला के अझुराइल रहेला । इ खेला सन 64 से चल रहल बा , आगे कबले चलत रही ,पता नइखे । घरवों मे कुछ जना अइसन बाड़े जे हवाई हल्ला काटे मे जी जान से लगल बाड़े । उहो जमीन से चार बित्ता उप्पर होके । अइसन लोगन के दरकिनार करत  जंतर मंतर से लेके अब देस के कोना कोना से भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची के बात उठि रहल बा , सरकार के अब जगह देवहीं के परी । उमेद बा कि इ कदम एह सरकार के संजीवनी के काम कर जाय । नाही त अब इहे कहल जा सकेला , गइल भइसिया पानी मे । 


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी                    

आखिर कब तलक ?


                      एक बा एक ढेरे मच्छर भनभनाये लागल बाडन सन . लागत बा केनियो ले दावत के बुलहटा आ गइल बा . भा कवनो कार परोजन के तिथि नागिचा आ गइल बा ,ना त कनियो हीरो हिरोइन लोगन के तमाशा शुरू होवे वाला होई , एही से एहानियो  के दिमाग में खुजली उठ गइल . मीठ खून एहानियो के ढेर नीमन लागेला . गाँव गिराव वाला मनई के खून चूसे में एहानियो  महारथी बाड़े सन . ७० साल से खून चूस चूस के लोढ़ा नीयन चरबी चढ़ल बाटे . चाय पीये खाति त टेबुलो ना हेरेलन सन . तोंद त कुंडा लेखा निकल गइल बा . बुझाता कुल्ही माल एही में ठुंसले बाडन सन . एह्निन के हजमवो खराब नइखे होखत . ससुरा चित्रगुपुत से बुझाता नम्बर बढ़वा के आइल बाडन सन . अइसन क़उआ झमार कबों कबों देखाला .
                  कल्हियें ‘बडकुवो’ बिनबिनात रहलें , कुछ चुनाव उनाव के बात करत रहलें . अच्छा त  इ बात बा . तब्बे न कुल्ही डाली हिलत डुलत बाड़ी सन . कूद फांद मचल होई , मौसम आवे वाला बा , बुझाता मानसूनो के टाइम नागिचा गईल बा . फेरु त जेनी से ढेर बचाव के जुगाड़ होई , ओनिये रेलम-पेल त मचबे करी . आजकाल जमाना इनहने लोगन क ह भाय. हमा सुमा त कवनो गिनतियो में ना हईं जा। हथजोरिया त देखावटे में करेलन , मने मन गरियावते होखिहें . 'ए भइया इ लोकतंत्रवा त आन्हर, गूंग, बहीर कुल्हे नु बा’ फेर का होखी . हमनिए मुअत पहिलवों रहली ह , अगवों रहब जा . करिया , उज्जर , पीयर कुल्ही  रंग वाला बेंग टरटराये लागल  बाडन सन , बूंदा  बाँदी के आसार एहनी के बुझाये लागल बा . जाने कवन कवन खिंचड़ी पकावे के इन्तिजामो होखे लागल . काल्ह भगेलू बाबा कहत रहने कि बचवा एहनी के फेरु भोजपुरी वाला पकवान पकावे के जोगाड़ में बाड़े सन . अरे उहे , जवन आठवीं अनुसूची के बात  हो रहल बा , सबसे बेसी भोजपुरी के नांव पर लुटबो कईलन स , सबसे बेसी लंगड़ियों एहनिये के मरलन स. सांसद अउरी विधायक जेतना इहंवा से जीत के जाने स , कबों संसद भा विधान सभा में बकारे ना खुले , बुझाला जईसे कि एहनी के जीभे लोढ़ा जाले ,कि बुद्धिये मरा जाले . इ कुल सुनत सुनत मुड़ी पिराये लागल , त  हमहूँ कहनी कि सुना ए भगेलू बाबा , इ कुल्ही हमनी के बोक्का बुझेलन सन , हमनी के अपनन में लड़ा लड़ा के मजा लेत बाड़े सन , कबों जात पांत त कबों धरम त  कबों कुछ आउर . हमनी के ओही में पेरात रही ला जा .
                     हम्मे त कबों कबों इ बुझाला कि भोजपुरिया क्षेत्र के जेतना पढ़ल लिखल लोग बा , उ ना चाहे कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल कर लीहल जाव . सुनत जानत ,पढ़त  लिखत अब ले हम इहे देख रहल बानी ,हिंदी के सबसे जियादा विद्वान लोग भोजपुरिये क्षेत्र के बा , उ लोग सबसे बेसी बिरोध करेला . इ लोग मौसी के माई  बनावे में लागल बा . इ त बुडबकहिये  नु कहाई , माई आउर मौसी दू गो होनी ,आउर  दुनो के आपन अलगा महत्व भी  होला बाकि दुनो एक  ना हो सकेलीं. कुछ दिन पहिले हम आगरा में  एकर बनगियो अपने आँखी देख लेनी , एगो हिंदी के प्रकांड विद्वान जे केन्द्रीय हिंदी संस्थान के मुखिया हउवन , उ  आपन बतकही भोजपुरी में शुरू कईलन , आउर सीधे सीधे भोजपुरी के बिरोध में बोलने .तब्बे हमें इ बुझाइल कि जब घरही विभीषण गोड तोड़ के बईठल बाटें, त दुशमन के का जरुरत बा .
                        का कहल जाव दोकानो ढेरी मनी खुलल बाड़ी सन ,सभका के आपन धंधो चलावे के बा. अइसन लोग एक दोसरा के लंगड़ी मारे में अझुराईल रहेला . सही दिशा में जवन उर्जा लागे के चाही , उ ना लग पावे . ऐसना में परिणाम का होखी , कहल ना जा सके , दिखाई दे रहल बा .भाषा मान्यता आन्दोलन के चलत केतना दिन हो गयल , अभी ले कुछहु ना भयल . पता ना का डर बा , एहन लोगन के कान पर जूं नइखे रेंगत .जे लोग भोजपुरी के खा के कहाँ से कहाँ पहुँच गयल ,उहो लोग कान में रुई डाल के चुप लगवले बा . न कवनो मुहीम ना कवनो मांग उठा रहल बा . जवने भाषा के बोले वाला २०-२५ करोड़ लोग होखे , उ भाषा अइसे सिसक रहल होखे ,बहुत कम देखे के मिलेला . जरुरत त इ कहत बा ,ए नेता लोग के संगे भी उहे होखो अब , जवन आज तक इ लोग भोजपुरिया जनता के संगे क रहल बा . ए लोगन के भी अब ठेंगा देखावहिं के परी . मारीशस आउर नेपाल जईसन देश पहिलही राजभाषा घोषित कर चुकल बाड़े. लेकिन भोजपुरी के जहां जनम भईल उहवें एकरा रेघरियावे के पड़ रहल बा .सांच के भी सांच साबित करे खातिर अब संघरस करे के पड़ रहल बा . सोच के विषय बन चुकल बा ,जरुरत एकरा कार्य रूप में परिणित करे के बा .   

 
·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी