का जमाना आ गयो भाया , सभे
लँगड़ी मारे आला खेल मे अझुरा के रह गइल बा । का राजा आ का रंक , जेहर देखीं ओहर अब इहे खेल चल रहल बा । सोरी से लेके फुनुगी तक ,गोड़े से लेके मुड़ी तक सभ एही मे सउनाइल बा । कतहूँ चैन नइखे बाचल । कोना
से अंतरा ले सभ घेराइल बा , ओही मे पिसाइलो बा , गेहूँ के संगे घुन लेखा । एह रेलम पेल मे बिकसवा ना जाने केहर डहर भुला
गइल बा । सभसे बेसी उहे खोजाइयो रहल बा । कुछ जाना जे तनि रेंगरियाय गइल रहे ओकरा
एगो नवकी बेमारी घेर लेले बा । उनके एकही धुन सिरे चढ़ के बोल रहल बिया , केहु दोसर न रेंगरियाय जाव । जइसहीं लोग जुग जुगाए लगने एगो नवा वाइरस
लिया के छोड़ दियाइल बा , रहा लोग एही मे अझुराइल । ना एकरा
से बहरा अइबा लोग , रेंगरिअइबा सभे । अइसन बेमारी के समाज
जनित बेमारी कहल जाला । एहमे जवन चोट लागेले ,बड़ा बुझाले
बाकि “देहिं भा दिल के
चोट, चेहरा पे ना लउके के चाही” इहे मंतर लेके लोग
जुझत रहेला ।
हे सरकार रउवा
त बुझाता झोंक के परतोख देवे लायक ना छोड़ेम, ओकरो से आगे जाये के जोगाड़ मे बानी । अपने
झुग्गी से महल मे पहुँच गइनी आ ओकरा के जायज बना लेहनी ,
परजा के झुग्गियों लायक नइखे छोड़ल चाहत । सुनले रहलीं कि अंग्रेज़वा लगान असूले मे
माहिर रहलें , बाकि रउवा त ओहनियों के बाप निकलनी । चूल्हा
चुहानी तक रउवा ताक झाँक क रहल बानी , मने चाहत का बानी, साँसो लिहलका पर टेकस असूलब का ? एक जाना त आलू के
फैक्टरी लगावत बाड़ें , रउवा हावा के फैक्टरी लगा देही आउर
उहो हावा मे । रउवा किरपा से छोट आ माझिल लोग करिहाँय पकड़िए लीहले बाड़े, कुछे दिन मे थउंस जइहें, राउर इहे चाहतों बाड़ी । फेर
रउवा जनता के लास पर महल बनाई भा बुलेट ट्रेन चलाई ।
पुरुब से
पच्छिम भा उत्तर से दाखिन तकले त्राहि त्राहि हो रहल बा , कतों
मनई कटात बाड़े, कतो किसान आ मजूर । कबों चीन धमकावत बा त
कबों पाकिस्तान ,देस के त सभे अबरे के मेहरी बूझ लेले बा, रउवा आपन चेहरा आ फिगर बना रहल बानी , केकरे बदे ? जब मूले ना बाची त सूद केकरा से असूलब आउर केकरे खातिर । जान बूझ के
अनजान बनल त नीमन ना नु कहाई । जे एन यू
भा बी एच यू के काहे दुर्दसा करावत बानी । जेकरा के एह देस आउर एकरे इजत के
खियाल नइखे , ओकरा के ओकर औकात बतावल जरूरी होला, एक बेरी इलाज त शुरू करी, फेर देखी कइसे सभ जय जय
ना करी । जे आउर जहवाँ खेल बिगारे के खेला फनले बा, उ सभे
डहर ध लीही। जरूरत त ओहनी के चहेट के पोछियवला के बा ।
एह देस मे एगो
आउर गैंग हवे, जवने के एकही गो काम ह , नीमन के बाउर
बतावल । उ गैंग कबों अवार्ड वापसी करेला त कबों आस्था पर चोट करेला । बुद्धिजीवी
कहाए वाला ई गैंग सामाजिक समरसता नोकसान चहुंपावत रहेला । देश के परंपरा के मज़ाक
बनावे के फेरा मे अपने मज़ाक बनवा लेवेला । कबों – कबों जानवर के ब्योहारों करे मे
शरम ना करे । कुल मिलाके एह गैंग के एक्के काम ह – खेलब न खेले देब , खेलवे बिगारब ।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी