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Tuesday, May 8, 2018

खेलब न खेलय देब , खेलवे बिगारब


का जमाना आ गयो भाया , सभे लँगड़ी मारे आला खेल मे अझुरा के रह गइल बा । का राजा आ का रंक , जेहर देखीं ओहर अब इहे खेल चल रहल बा । सोरी से लेके फुनुगी तक ,गोड़े से लेके मुड़ी तक सभ एही मे सउनाइल बा । कतहूँ चैन नइखे बाचल । कोना से अंतरा ले सभ घेराइल बा , ओही मे पिसाइलो बा , गेहूँ के संगे घुन लेखा । एह रेलम पेल मे बिकसवा ना जाने केहर डहर भुला गइल बा । सभसे बेसी उहे खोजाइयो रहल बा । कुछ जाना जे तनि रेंगरियाय गइल रहे ओकरा एगो नवकी बेमारी घेर लेले बा । उनके एकही धुन सिरे चढ़ के बोल रहल बिया , केहु दोसर न रेंगरियाय जाव । जइसहीं लोग जुग जुगाए लगने एगो नवा वाइरस लिया के छोड़ दियाइल बा , रहा लोग एही मे अझुराइल । ना एकरा से बहरा अइबा लोग , रेंगरिअइबा सभे । अइसन बेमारी के समाज जनित बेमारी कहल जाला । एहमे जवन चोट लागेले ,बड़ा बुझाले बाकि “देहिं भा दिल के चोट, चेहरा पे ना लउके के चाही इहे मंतर लेके लोग जुझत रहेला ।
      हे सरकार रउवा त बुझाता झोंक के परतोख देवे लायक ना छोड़ेम, ओकरो से आगे जाये के जोगाड़ मे बानी । अपने झुग्गी से महल मे पहुँच गइनी आ ओकरा के जायज बना लेहनी , परजा के झुग्गियों लायक नइखे छोड़ल चाहत । सुनले रहलीं कि अंग्रेज़वा लगान असूले मे माहिर रहलें , बाकि रउवा त ओहनियों के बाप निकलनी । चूल्हा चुहानी तक रउवा ताक झाँक क रहल बानी , मने चाहत का बानी, साँसो लिहलका पर टेकस असूलब का ? एक जाना त आलू के फैक्टरी लगावत बाड़ें , रउवा हावा के फैक्टरी लगा देही आउर उहो हावा मे । रउवा किरपा से छोट आ माझिल लोग करिहाँय पकड़िए लीहले बाड़े, कुछे दिन मे थउंस जइहें, राउर इहे चाहतों बाड़ी । फेर रउवा जनता के लास पर महल बनाई भा बुलेट ट्रेन चलाई ।
      पुरुब से पच्छिम भा उत्तर से दाखिन तकले त्राहि त्राहि हो रहल बा , कतों मनई कटात बाड़े, कतो किसान आ मजूर । कबों चीन धमकावत बा त कबों पाकिस्तान ,देस के त सभे अबरे के मेहरी बूझ लेले बा, रउवा आपन चेहरा आ फिगर बना रहल बानी , केकरे बदे ? जब मूले ना बाची त सूद केकरा से असूलब आउर केकरे खातिर । जान बूझ के अनजान बनल त नीमन ना नु कहाई । जे एन यू  भा बी एच यू के काहे दुर्दसा करावत बानी । जेकरा के एह देस आउर एकरे इजत के खियाल नइखे , ओकरा के ओकर औकात बतावल जरूरी होला, एक बेरी इलाज त शुरू करी, फेर देखी कइसे सभ जय जय ना करी । जे आउर जहवाँ खेल बिगारे के खेला फनले बा, उ सभे डहर ध लीही। जरूरत त ओहनी के चहेट के पोछियवला के बा ।
      एह देस मे एगो आउर गैंग हवे, जवने के एकही गो काम ह , नीमन के बाउर बतावल । उ गैंग कबों अवार्ड वापसी करेला त कबों आस्था पर चोट करेला । बुद्धिजीवी कहाए वाला ई गैंग सामाजिक समरसता नोकसान चहुंपावत रहेला । देश के परंपरा के मज़ाक बनावे के फेरा मे अपने मज़ाक बनवा लेवेला । कबों – कबों जानवर के ब्योहारों करे मे शरम ना करे । कुल मिलाके एह गैंग के एक्के काम ह – खेलब न खेले देब , खेलवे बिगारब 

·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी     

खेत खइलस गदहा .... मार खाई .......?


का जमाना आ गयो भाया , जोलहवा के त सामते आ गइल । जेके देखS , जेहर देखS ओहर एकही गो अवजिए सुनाता ..... बेच्चारा बेबात पिसाइल जात बा । कइल धइल केकर बा ई करम  आ जान पर केकरे बन आइल ।  रमेसर काका पांडे बाबा के पान के दुकानी पर ठाढ़ होते बड़बड़ाए लगने । देखS, बाबा एगो सोझबक मनई के ओही के संघतिया सभे अइसन फंसवले बाड़न कि बेचारा न घर के बाचल न घाट के । अपने कूल्हि मिल के सब हजम क गइलें सन आ ओह बेचारा के मोकदमों मे फँसा दीहलें सन । एक त अइसहीं ब्योपार मे लागल घाटा से आज ले ना उबर पइले बा बेचारा , ओह पर मोकदमा के मार आउर ओहू मे हार । फेर त सरकारो आपन ओही पर ज़ोर देखा रहल बा , सुनली ह कि पेनाल्टी लगा देले बा । उहो थोड़ मोड़ नइखे , पाता चलल ह कि करोड़न मे बा । ओकर त कई गो पुहुत मर खप जाई तबों ना भर पाई । कबों कबों त इहे बुझाला कि कानूनों के डंडा कमजोरे मनई बदे बनल ह । दमगर लोगिन के दुवरे कानूनों दरबारे लगावेला । एक गो ना , कई गो अइसन परतोख भेंटा जाई । लोग बाग हजारन करोड़ हजम क के माजा मार रहल बाड़े , उनकर न त कन्ना छुटल ना भूसी । पांडे बाबा के ना रहि गइल त पूछ बइठले, केकरा बारे मे कहि रहल बानी रमेसर बाबू , हई लीं , पान घुलाईं।
      अरे दादा रे दादा , रउवा के अबले ना बुझाइल , रमसरना के बारे मे त कह रहल बानी बेचारा पढ़ल लिखल सोझबक मनई राछसन के बीचे पता ना कवने मुहुरत मे जा के अझुरा गइल । अइसन अझुराइल , अइसन अझुराइल  कि केहरों के ना बाचल । साँचो आजु के लोग त गिद्ध बा गिद्ध भा कुकुर नोच नोच के बेचारा के खा गइलन सन । लाज सरम से त ओहनी के कवनों सरोकारों नइखे । उ कुल्हि त गिद्ध भा कुकुरो से गयल गुजरल बाड़े सन । अइसना लोगन के बारे मे देख सुन के घिन बरेला ।

      सुनी , रमेसर बाबू , आजु के जमाना सीधई के नइखे ।  सोझ – सरीफ़ के लोग बाग बउराह आ बकलोल बूझेला । ओकरे सहियो बात के कतहु सुनवाई ना होखेला ।   सुनलही होखब ----“अबरे के मेहरी , भर गाँव के भावज” लागेले । सभे चिकारी करेला का छोट – का बड़ । चिकारी त चिकारी मोका मिले त कुछहू करे खाति     तइयार रहेला ।  आउर त आउर ओकर आपन कहाए वाला लोगवा ओही के बाउर बुझेला । अइसना  मे बेचारे के घरहूँ वाला लो ओकरे के बाउर बुझे लागेला आउर अइसनो लो उपदेश देवे लागेला , जेकर ककहरों से कबों भेंट ना होखे  । बेगर मुंहों वाला लो ताना मार जाला । सदियन से इहे चलल आवत ता, अगहूँ इहे चलत रही । गोसाईं बाबा कहि गइल बाड़ें –

“समरथ को नहीं दोष गोसाईं”
            मतलब दोष खालि कमजोरवने मे हेरल जाला आउर दंड विधानों खाली गरीबने खाति बनल बा । एगो गरीब के कवनों दोष देखाए भर के देर बा , पुलिस – परसासन चाक चउबन्द देखाए लागेला । कानूनों के टंगरी मे ज़ोर हो जाला । जवने कानून के दमगरन के देखते लकवा मार देला ।  

      पांडे बाबा जानतानी , रमेसर कक्का बोलने , एह हालत मे मनई बउझका जाला आउर आपन दिमागी संतुलन बिलवा देवेला । पता ना , कइसे बेचारा रमसरना कुल्हि सहत आउर झेलत होखी । छिन छिन बदलत मन मे अपना के संभारल एगो लमहर तपस्ये ह । भगवान ओकरा ई कुल्हि सहे के तागत देसु । बिसवास के अरथी त पता ना कबे ई दुनिया छोड़ के जा चुकल बा । अब त इहे लागेला कि दादा बाबा लोग के जमनवे नीमन रहे , कबों हेतना केकरो के सोचे के ना पड़त रहे । एक दोसरा ला एक दोसरे के मन मे नेह छोह रहे आ दुवरा पर जगहों रहे । अब त लोग थरिया के रोटी आ आँखी के सुरमों चोरा के भा छीन के ले भागे के फिराक मे हरमेसा रहेला । नीयत आउर आदमीयत के दियरी अब टिम टिमातों  बा कि ना , शोध के विषय बन चुकल बा । रिसता नाता से लोग अलाव जला चुकल बाड़ें । केकरो लग्गे केहु खाति जरिकों फुरसत नइखे । आज त लोग घरहीं मे एक दोसरा के देखल ना चाहत बाड़े । भाई – भाई से , बहिन बहिन से , भाई बहिन से एतना दूर हो चुकल बाड़े कि सोच के डर लागे लगेला ।  
            
      छोटुवा ढेर देरी से पांडे बाबा आउर रमेसर कक्का के बात सुनत रहे , बाकि ओकरा कुछों ना बुझाइल । कवने बात के लेके इ दूनों जने हेतना लमहर बतकही कइलस ह लो । बाकि छोटुवा इ जरूर सोच लीहलस कि अपना जिनगी मे उ सोझबक मनई त नहिये बनी , भलही कुछों बन जाउ । एह दुनिया मे जिए खाति दोसरा के धोखा दीहल चलन बन गइल बा , जेहर देखी सगरों एही जहर के बाढ़ लउकत करेला ।    


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

केकर बिस्तरा गोल हो होई


का जमाना आ गयो भाया ,जु मनई के मत मरा गइल बा ,देखत देखत आ  सुनत सुनत । केकरा के नीमन बुझे आ केकरा के बाउर ,ई पहिचान कइल सरल नइखे । पनामा पेपर से लेके पैराडाइज़ पेपर के कहनी मे मगज घुमरी घूम रहल बा । आम मनई कनफुजिया गइल बा । 3 बरीस मे 6 करोड़ से 16 सौ करोड़ के खेला कइसे हो सकेला , इ सोझवें लउकत बा । ओहु पर परदा डालेला महारथी लोग लाग गइल बा । केकर कहवाँ आ कवन कनेक्सन कइसे जुड़ल बा , एकरा परिभाषित कइल सरल नइखे । ई-कामर्ष के खेला से ब्योपार के बेवस्था के सांस उखड़े लागल बा । केतना जाने के खटिया खाड़ हो गइल बा , शोध के विषय बा । कहिया केकर बिस्तरा गोल हो जाई , कहल ना जा सकेला । ब्योपारी सभे बिखियाइल बाड़े काहे कि उनके सोझवे उनका दुनिया उजाड़ हो रहल बा । ओहू लोगन के अब तुलसी बाबा के इयाद सता रहल बा ।

      नोटबंदी से जी एस टी के खेला मे सभके अझुरा के कुछ लो कबड्डी खेल रहल बाड़े । जी एस टी के पोर्टल थउस रहल बा , कुछ दिन मे केकर का रेकड़ बा , बिला जाई , भा बिला गइल होई , फेर त पेनाल्टी – पेनाल्टी के खेला शुरू हो जाई । फेर केकरे हाथे कटोरा लागी आ केकरे हाथे केतली , जांच बइठावल जाई नु । जेकरा मलाई चापे के बा , उ त  चापिए रहल बा , रउवा झूलल करीं झुलुवा कबों एह डारी , कबों ओह डारी । रउवा हाथे भेंटाई कुछुवो ना । भगवाने सोझ होखिहें त खाली थरिया भा कटोरा भेंटाई । अनही लोग खुस होके आँख मून के खाली कसोरा मे से करियवा जामुन अबले हेर रहल बा, हेरते रही । बिलइया करियवा जामुन के उजरका रसगुल्ला बना के हजम क गइल । उलट फेर के चकरी कब घूम जाई , कुछों पता नइखे । 28 कब 18 हो जाई , लगावल पूजी पर के कुंडली मार के बइठ , कहल ना जा सके ।   

      अबहियों ले मुंगेरीलाल के हसीन सपना कुछ लोग देख रहल बा , ओह लोग के कब सपना टूटी भा कब जागी लो , पता नइखे । केतना जाने लालीपाप चूस रहल बाड़ें , कबले चूसत रहिहें , उनहूँ लोग के पता नइखे । बेराइटी ढेर बा , कतों डिजिटल , कतों स्किल , कतों मेड इन त कतों स्वच्छ भारत मिशन के लालीपाप । कवनों उठा लेही , सवाद एक्के बा । बाद मे डंठल लेके डोलही के परी उहो जी एस टी के संगे , मने देके । एकरो मे मेझरा आ झोल – झाल के ठेकान नइखे । अजुवों स्किल इंडिया के नाँव पर मुड़िए गीनल – गिनावल जा रहल बा ।

      रार – मनुहार मे मयभा महतारी के छोहा के लोर पोछे ला धउरल आ बिलाई के हज के तइयारी लेखा बुझात बाटे । जब दाता त्राण देवेला उतारू हो जाला त परजा परतोखो ला कोना – अतरा हेरे लागेला । मने जिनगी जुलुम ना जवाल मे अझुरा के चकरघिन्नी बनि जाले । फेर जनता अपना पसन्न पर हाथ मले के परि जाला , एह घरी इहवाँ इहे हो रहल बा । जवने आस के मसाल जलल , उ आस ओही मसाल मे जरि गइल भा मसाले बिला गइल । लागत बा ओकरो ला खोझहरिया बोलावे के परी ।

      नन्हका लइकवन के लेमनचूस लेखा भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची वाली बतिया बनि के रह गइल बा । झूठिया के झांसा के झोल मे हेतना समय बीत गइल, बाकि अभियो लोग झांसा देवे से बाज नइखे आवत । तबों सोझवा भोजपुरिया मनई ओकरे मे भुला के अझुराइल रहेला । इ खेला सन 64 से चल रहल बा , आगे कबले चलत रही ,पता नइखे । घरवों मे कुछ जना अइसन बाड़े जे हवाई हल्ला काटे मे जी जान से लगल बाड़े । उहो जमीन से चार बित्ता उप्पर होके । अइसन लोगन के दरकिनार करत  जंतर मंतर से लेके अब देस के कोना कोना से भोजपुरी भाषा के आठवीं अनुसूची के बात उठि रहल बा , सरकार के अब जगह देवहीं के परी । उमेद बा कि इ कदम एह सरकार के संजीवनी के काम कर जाय । नाही त अब इहे कहल जा सकेला , गइल भइसिया पानी मे । 


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी                    

आखिर कब तलक ?


                      एक बा एक ढेरे मच्छर भनभनाये लागल बाडन सन . लागत बा केनियो ले दावत के बुलहटा आ गइल बा . भा कवनो कार परोजन के तिथि नागिचा आ गइल बा ,ना त कनियो हीरो हिरोइन लोगन के तमाशा शुरू होवे वाला होई , एही से एहानियो  के दिमाग में खुजली उठ गइल . मीठ खून एहानियो के ढेर नीमन लागेला . गाँव गिराव वाला मनई के खून चूसे में एहानियो  महारथी बाड़े सन . ७० साल से खून चूस चूस के लोढ़ा नीयन चरबी चढ़ल बाटे . चाय पीये खाति त टेबुलो ना हेरेलन सन . तोंद त कुंडा लेखा निकल गइल बा . बुझाता कुल्ही माल एही में ठुंसले बाडन सन . एह्निन के हजमवो खराब नइखे होखत . ससुरा चित्रगुपुत से बुझाता नम्बर बढ़वा के आइल बाडन सन . अइसन क़उआ झमार कबों कबों देखाला .
                  कल्हियें ‘बडकुवो’ बिनबिनात रहलें , कुछ चुनाव उनाव के बात करत रहलें . अच्छा त  इ बात बा . तब्बे न कुल्ही डाली हिलत डुलत बाड़ी सन . कूद फांद मचल होई , मौसम आवे वाला बा , बुझाता मानसूनो के टाइम नागिचा गईल बा . फेरु त जेनी से ढेर बचाव के जुगाड़ होई , ओनिये रेलम-पेल त मचबे करी . आजकाल जमाना इनहने लोगन क ह भाय. हमा सुमा त कवनो गिनतियो में ना हईं जा। हथजोरिया त देखावटे में करेलन , मने मन गरियावते होखिहें . 'ए भइया इ लोकतंत्रवा त आन्हर, गूंग, बहीर कुल्हे नु बा’ फेर का होखी . हमनिए मुअत पहिलवों रहली ह , अगवों रहब जा . करिया , उज्जर , पीयर कुल्ही  रंग वाला बेंग टरटराये लागल  बाडन सन , बूंदा  बाँदी के आसार एहनी के बुझाये लागल बा . जाने कवन कवन खिंचड़ी पकावे के इन्तिजामो होखे लागल . काल्ह भगेलू बाबा कहत रहने कि बचवा एहनी के फेरु भोजपुरी वाला पकवान पकावे के जोगाड़ में बाड़े सन . अरे उहे , जवन आठवीं अनुसूची के बात  हो रहल बा , सबसे बेसी भोजपुरी के नांव पर लुटबो कईलन स , सबसे बेसी लंगड़ियों एहनिये के मरलन स. सांसद अउरी विधायक जेतना इहंवा से जीत के जाने स , कबों संसद भा विधान सभा में बकारे ना खुले , बुझाला जईसे कि एहनी के जीभे लोढ़ा जाले ,कि बुद्धिये मरा जाले . इ कुल सुनत सुनत मुड़ी पिराये लागल , त  हमहूँ कहनी कि सुना ए भगेलू बाबा , इ कुल्ही हमनी के बोक्का बुझेलन सन , हमनी के अपनन में लड़ा लड़ा के मजा लेत बाड़े सन , कबों जात पांत त कबों धरम त  कबों कुछ आउर . हमनी के ओही में पेरात रही ला जा .
                     हम्मे त कबों कबों इ बुझाला कि भोजपुरिया क्षेत्र के जेतना पढ़ल लिखल लोग बा , उ ना चाहे कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल कर लीहल जाव . सुनत जानत ,पढ़त  लिखत अब ले हम इहे देख रहल बानी ,हिंदी के सबसे जियादा विद्वान लोग भोजपुरिये क्षेत्र के बा , उ लोग सबसे बेसी बिरोध करेला . इ लोग मौसी के माई  बनावे में लागल बा . इ त बुडबकहिये  नु कहाई , माई आउर मौसी दू गो होनी ,आउर  दुनो के आपन अलगा महत्व भी  होला बाकि दुनो एक  ना हो सकेलीं. कुछ दिन पहिले हम आगरा में  एकर बनगियो अपने आँखी देख लेनी , एगो हिंदी के प्रकांड विद्वान जे केन्द्रीय हिंदी संस्थान के मुखिया हउवन , उ  आपन बतकही भोजपुरी में शुरू कईलन , आउर सीधे सीधे भोजपुरी के बिरोध में बोलने .तब्बे हमें इ बुझाइल कि जब घरही विभीषण गोड तोड़ के बईठल बाटें, त दुशमन के का जरुरत बा .
                        का कहल जाव दोकानो ढेरी मनी खुलल बाड़ी सन ,सभका के आपन धंधो चलावे के बा. अइसन लोग एक दोसरा के लंगड़ी मारे में अझुराईल रहेला . सही दिशा में जवन उर्जा लागे के चाही , उ ना लग पावे . ऐसना में परिणाम का होखी , कहल ना जा सके , दिखाई दे रहल बा .भाषा मान्यता आन्दोलन के चलत केतना दिन हो गयल , अभी ले कुछहु ना भयल . पता ना का डर बा , एहन लोगन के कान पर जूं नइखे रेंगत .जे लोग भोजपुरी के खा के कहाँ से कहाँ पहुँच गयल ,उहो लोग कान में रुई डाल के चुप लगवले बा . न कवनो मुहीम ना कवनो मांग उठा रहल बा . जवने भाषा के बोले वाला २०-२५ करोड़ लोग होखे , उ भाषा अइसे सिसक रहल होखे ,बहुत कम देखे के मिलेला . जरुरत त इ कहत बा ,ए नेता लोग के संगे भी उहे होखो अब , जवन आज तक इ लोग भोजपुरिया जनता के संगे क रहल बा . ए लोगन के भी अब ठेंगा देखावहिं के परी . मारीशस आउर नेपाल जईसन देश पहिलही राजभाषा घोषित कर चुकल बाड़े. लेकिन भोजपुरी के जहां जनम भईल उहवें एकरा रेघरियावे के पड़ रहल बा .सांच के भी सांच साबित करे खातिर अब संघरस करे के पड़ रहल बा . सोच के विषय बन चुकल बा ,जरुरत एकरा कार्य रूप में परिणित करे के बा .   

 
·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

अथक लड़ाई आउर धीरज के परीक्षा लेत भोजपुरी भाषा


अपना देश भारत मे हिन्दी के बाद सबसे जियादा लोगिन के मातृभाषा भोजपुरी कई दशक से अपने अस्तित्व के लड़ाई लड़ रहल बिया । चालीस के दशक से जवने भाषा के मान्यता के आवाज उठ रहल बा आउर ओकरे अस्तित्व के अनदेखी हो रहल बा , उहो एगो मिशाले बा । भोजपुरी भाषा के जनम आउर ओकर इतिहास 1000 बरिस से ढेर पुराना ह । एकर समय समय पर प्रमान सरकार के दीहल जा चुकल बा , बाकि हर बेरी कवनो कवनो बहाना से मान्यता के बाधित कइल गइल बा । कबों केहु बोली बा , केहु ब्याकरण नइखे , गद्य नाही बा , किताब नइखे लिखाइल आदि - आदि कहके भाषा के विकास के रसता मे काँटा बोवे के काम कइलस । ई कुल्हि करे वाला लोग भोजपुरिए बा , केहू दोसर नइखे । अबहियों कुछ लोगिन के मरोड़ उठत बा उहो हिन्दी के नाँव पर । उ लोगिन के हिसाब से भोजपुरी के जदि संविधान के आठवीं अनुसूची मे सामिल कर दिहल जाई , त हिन्दी कमजोर हो जाई । हमरे आज तक नाही बुझाइल कि अब तलक ई लोग हिन्दी के चबात रहने ह का , काहें नाही हिन्दी के मजगुती देवे खाति काम कइलन । कादों मुफुत के मलाई चाभत – चाभत चरबिया गइल बा लोग भा कुंभकरनी नीन मे आजु ले रहल ह लोग ।

       भोजपुरी भाषा के साहित्य गहिराहे बले भरल पूरल बा । ब्याकरण , गद्य , कविता, कहानी , लघुकथा , व्यंग , शोध आलेख , लोक संगीत के संगे आउर बहुत कुछ बा जवना के कुछ तथाकथित लोग अनदेखी क रहल बा । आजु ले जेतना साहित्यिक काम भोजपुरी मे भइल बा उ कुल्हि लोग अपनही कइले बा , बिना कवनो सरकारी सहजोग के । ई काम आजों चल रहल बा , अनवरत चल रहल बा । अगहु चलत रही , अबाध चलत रही बाकि अब अपने भाषा के अनदेखी के बिरोध होखी , सम्मान के मांग होखी , अधिकार के मांग होखी । जवन अब हो रहल बा । भोजपुरी के ढेर पत्र पत्रिका निकल रहल बानी सन । सरकार से कर्मठ भोजपुरिया लोग अपने माई भाषा के सनमान खाति तन मन धन से जूझ रहल बा, भाषा बिरोधियन के उनुकर जगह बता रहल बा । बिना जनले , पढ़ले जवन लोग आजु ले बेमतलब के कुछहू बोलत रहल ह , ओकरो अब ककहरा पढ़ावल जा रहल बा । राष्ट्रीय स्तर पर अब भोजपुरी भाषा के मान्यता के आंदोलन ज़ोर पकड़ रहल बा ।   

       अब त सरकारो के जागहीं के परी , काहें कि लोकसभा आउर राज्य सभा मे मांग उठे लागल बा । कुछ  राज्य सरकार भोजपुरी के मान्यता खाति केंद्र से निहोरा कर चुकल बानी स , कुछ करे खाति तइयार हो रहल बानी स । पढ़ल लिखल लोग के शरम दूर हो रहल बा , अब उहो बेझिझक भोजपुरी बोल रहल बा , लिख रहल बा । दिन पर दिन संख्या बढ़ रहल बा , एकरा के सोसल मीडिया पर देखल जा सकेला । समाज मे ढेर लोग बा जेकरे दिन मे ना लउकत , ओहनियों के रसता देखावल जा रहल बा । भोजपुरी मे कई गो वेव पोर्टल शुरू हो चुकल बा आउर आए दिन शुरू हो रहल बा । नवहा भोजपुरी से जुड़ रहल बाड़ें , जवन भोजपुरी भाषा खाति ढेर शुभ बा । उत्तर प्रदेश मे नवगठित सरकार क्षेत्रीय भाषा के लेके पहिले दिन से जागरूक बा , ओकरे खाति दिशा निर्देश जारी हो चुकल बा । अब जबले केंद्र सरकार भोजपुरी भाषा के संविधान के आठवीं अनुसूची मे सामिल ना कर देही , ई आंदोलन दिनो दिन तेज होत रही ।     


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी