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Friday, March 12, 2021

खेला होबे कि खेला खतम.....?

 

का जमाना आ गयो भाया, एह घरी अलग-अलग जगह पर अलग-अलग 'खेला होबे' के कहानी चल रहल बा। बाडर पर एगो अलगे खिस्सा नधाइल बा। किसान के माने मतलब लोग अइसन बना देले बा कि सभे के मन अउजा गइल बा। लोगन के बुझाते नइखे कि असली किसान के बा आ के नइखे। सोचनिहार लोग कई फाँक में बंटा गइल बा। कुछ लोग जायज आ नाजायज के पहाड़ा पढ़ रहल बा। देश के मान-सनमान ताख पर राख़ के कुछ लोग आपन-आपन दोकान खोल के भोंपू बजा रहल बा। कुछ लोग उहाँ अइसनो बा जे सोझा लउकत चिजुइयन का ओर से आँख घुमा के ओकरा उपस्थिति के नकारे में जरिकों हिचकिचात नइखे। तीन गो कानून के लेके जतने मुँह ओतने बात। कुछ लोग ओकरा बाउर बता रहल बा आ कुछ लोग नीमन। सभे अपने नजरिया के सही ठहरा रहल बा। 'ठेका पर खेती', ई त कवनो नई बात नइखे। पहिलहुं होत रहे आ  अजुवो हो रहल बा। बाकि केहु के जमीन ठेका वाला कब्जिया लेले होखे, अइसन त आजु ले ना सुनाइल।    

            काल्हु तक जे एह तीनों कानूनन के नीमन बतावत ना थाकत रहे आ ओकरा के अपना बाबूजी के इच्छा के सनमान मानत रहे आ भोंपू पर आपन चउकठा चमकावत रहे,अब सुल्फा मारके अलगे राग गावत देखात बा। सब त सब मनरखनों आपन भकोल बोल बोल रहल बा। बुझात त इहो बा कि 2022 के तइयारी में केहुवो कवनो कोर-कसर नइखे छोड़ल चाहत। इहवाँ बबवा आपन लठ्ठ में तेल लगा के तइयार बइठल बा कि लोग कुछों गड़बड़ करो आ बबवा आपन लठ्ठ फेरो। बन्न-बुन्न वाला खेला एही से उत्तर प्रदेश में ना भइल। लाल किला वाला खेला का चलते हरियरकी टोपी वाले के पुक्का फार के रोवे के पड़ गइल।फेर त महँग-महँग गाड़ी वाला किसान लोग हरियरकी टोपी वाला के चारु ओर घूरियाए लागल। हरियरकी टोपी वाला के दोकान चल निकलल। नेता-परेता आ रंग-रंग के भोंपू वाला लोग उहाँ चहुंपे लागल। फेर उ एगो पंचइती के नया खेला शुरू क देलस।

            एह घरी 'खेला होबे'  ढेर मसहूर हो रहल बा। ढेर लोग एकरा में लागल बा। खूबे रेकाड बज रहल बा। लइका, बूढ़, जवान सभे एह घरी इहे गा रहल बा। बाकि कवन 'खेला होबे' ई केकरो पता नइखे। रैली से रैला तक, गली से मोहल्ला तक, गाँव से शहर तक, जिला से प्रदेश तक आ प्रदेश से देश तक  इहे चल रहल बा। चलन में त एह घरी 'जय श्री राम' जरिको कम नइखे। दूनों में एगो बरियार अंतर बा। 'खेला होबे' के कुछ लो छाती चाकर क के बोलता, त कुछ लो चुटकी लेता बाकि 'जय श्री राम' बोलला पर कुछ लोगन के मिरचाई लाग जात बा। बउवाय- बउवाय के लोग आपन कपारे क बार नोचे लागता। कुछ लो त इहो कहता कि 'जय श्री राम' इहवाँ ना बोलाई त फेर कहवाँ बोलाई। खिसिआई के अइसनका लोग इहो कहि देता कि हमनी के पाकिस्तान में ना नु बोले जाएम। खैर रउवो सभे जानतानी कि उहवाँ बोललो ना जा सकेला। बड़का बाबा त मुस्कियात कहलें कि बुझाता कुछ लोगन के खेला खतम होखे वाला बा। 

             मनरखना 'खेला होबे''खेला खतम' का बीच में अझुराइल बा। एगो चलन में त इहो बा कि मनरखना के पितिआउत भाई त दोसरा के का 'पहिरे के चाही' भा केकरा से 'मिले के चाही' एह दूनों काम ला अपना दोकान से  साटिक-फिटिक बाँटे के जोगाड़ जोड़ रहल बाड़ें।कोरोना काल के बाद ढेर लोगन के दोकान बन्न हो चुकल बा भा बन्न होखे वाला बा,अइसना में साइड बिजनेस कइल गलत ना कहाई, बाकि बूड़े के चानस ढेर लउकता। ई जनला का बाद मनरखना अपने  पितिआउत भाई से कुछ रिसिआइल बुझाता। बाकि डरे बोल नइखे पावत। अब डर ई कि मनराखन के बेगर सुल्फो फूंकले लोग इहे कहेला कि लागता कि डोज़ मार के आवता। बेचारे के हाल अबरे के मेहरी भर गाँव के भउजी लेखा हो गइल बा।

            भुंवरी काकी मनरखना के कुछ काम-धाम जोग बनावल चाहत बानी बाकि जोगाड़े नइखे लागत। अब काकी के, के समझाओ कि हर काम अपना समय पर नीक लागेला आ मोका रोज-रोज ना मिलेला। एही बीचे कुछ लो भुंवरी काकी के टँगरी खींचे में लाग गइल बा। ई उ लोग बा जेकरा के आजु ले भुंवरी काकी आपन बूझत रहल बिया। मोटा भाई के डंडा आ बड़का बबवा के मंतर के आगे  भुंवरी काकी के खोपड़िया चकरघिन्नी लेखा घूमे लागल बा। ई सब समय के चक्करे नु कहल जाई कि भुंवरी काकी के घुरहु-सोमारू सभे गियान दे रहल बा, ई देखि के मनरखनों के मन करुआइन हो गइल बा। बाकि डर के मारे मनरखना बेचारा अपने माई से कुछ पूछ भा कहियो ना पावेला, का पता काल्हु के माई कुछ आउरो ना छीन ले। मने खेला होबे त इहों बा बाकि अलहदा। खेला होबे आ खेला खतम के फेरा में सभे औंजाइल बा, बाकि करो त का करो आ जनता ई दूनों देखि के चवनिया मुस्की मार रहल बा। अब त रउवो मुस्किआईं , हम चलनी अपना राहे।

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता 

Saturday, February 20, 2021

गोबरउरा के जनम छोड़ावल जाव

 

बोल बतियाय के

मंच माइक सजाय के

माला पहिर, पहिराय के

अपना के बीजी देखावल जाव

गोबरउरा के जनम छोड़ावल जाव।

 

कतनों फइलाव देखाय के

बानी पहरूवा, ई जनाय के

कुछ भीड़-भाड़ जुटाय के

तेवहार लेखा मनावल जाव

गोबरउरा के जनम छोड़ावल जाव।

 

गिनती पहाड़ा पढ़ाय के

कवनो अंक बताय के

जरि मनी चिचिआय के

आपन चेहरा चमकावल जाव

गोबरउरा के जनम छोड़ावल जाव।

 

कुछ खाय नहाय के

कुछ गाय-बजाय के

कुछ नचनियों नचवाय के

लोगिन के बहकावल जाव

गोबरउरा के जनम छोड़ावल जाव।

 

·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 

 

Friday, January 29, 2021

अबरे के मेहरी, भर गाँव के भउजी

 का जमाना आ गयो भाया, कोरोनवाँ आइल त आइल संगही बरियार बेरोजगारी,लूट-खसोट,गिरहकटई चोरी-चकारी इसन अपने संघतियनों के घलुहा में लेके आ गइल बा। एकही के निभावल भारी बुझात रहल , अब घलुहा के कइसे निपटाओ मनई। ई ना त बुझे लायक बाति बा, न बुझाते बा। बुझइयो जाव त एकरा से पार कइसे पावल जाव,कवनों रसते नइखे।ढेर लोग भर भर के फेंक रहल बा आ मनई लपेटे में लागल बा। केकरा पर बिसवास करो आ केकरा पर ना करो, एकर निरनय लीहल आसान नइखे। इहाँ त चोरो आ घघोटो वाला खेला के संगे 'मारे बरियरा रोवहूँ न दे' वाला खेला चल रहल बा। जेके देखा उहे अब त अबरे के मेहरी बुझ लेले बा। जेकरे में कवनों गूदा नइखे उहो आँख देखा रहल बा। आंखे देखावे तक बाति रहत, तबों गलीमत रहित, इहाँ त कूदब-फानब मचवले बा आ चोरन क सरदार सुर्ती के संगे ताल ठोंक रहल बा। आउर त आउर जेकरा घरे दाना नइखे उहो दानी बने के ढोंग रचा रहल बा। रउवा त जनते बानी कि जब सुर्तियो के ढेर ठोंक दियाला बरियार झाँक चढ़ि जाले आ छींक शुरू हो जाले। जब ढेर छींक आवे लागेले त मनई बउराय जाला आ अकबकाये लागेला। अइसना में दोसरो के चिजुईयन के आपन बतावे लागेला। जेहर-जेहर ओकर दीठी जाले कुल्हि ओकरे बुझाये लागेला। इहे हाल एह घरी चोरन के सरदार के भइल बुझाता।चारों-ओरी 'इहो हमार', 'इहो हमार' के हुहकारा मचवले बा। दरोगा जी कतनों आँखि तरेरत बाड़न बाकि ओकरा पर कवनों असरे नइखे होत।

       सरदरवा के मउसियाउर भाई मने मनराखन अनही बिलबिला आ बउवा रहल बाड़ें। रोटी के हक निभावे के फेरा में आपनों जमीन गवें-गवें गवाँ रहल बाड़े। बाकि जे सुल्फा के बिना भरपूर डोज़ के बेगर बहरे ना निकसत उ बिना डबल डोज़ के बोली कइसे ? एह घरी मनराखन खूब बोल रहल बाड़ें, मतलब बुझीं, काहें? रंगीला चाचा काल्हु पान कचरत क़हत रहलें कि जेकर पचासा पार हो गइल होखे आ हरदी से भेंट ना होखे, बउवाई ना त का करी? रंगीला चाचा के अनुभव के सभे दाद देवेला बाकि मनराखन के माई के बुझाय तब नु। बाते बात में चाचा बोल पड़ले कि ई मनरखना के हर बाति के सबूत चाहेला, इहे हाल रहल त कहिओ अपने माइयो से सबूत माँगे लागी।

       एहनी सभन के हाल देखत-देखत मोटा भाई के पेट फूले लागल त उ बाबा लगे पहुंचले। उनुका आवत देखि बाबा मोछिए में मुसकियाये लगलें। ई बाति मोटा भाई के खोपड़ियों के घूमा देहलस बाकि मोटा भाई शांत होके बाबा  के उपदेस लेवे के फेरा में उहाँ पहुंचल रहलें। आखिर मोटा भाई मुसुकी के राज बाबा से पुछे के हिमत जुटा के पुछे ला मुँह खोललें, बाबा उनुके चुप करावत बस अतने कहलें, 'बेटा तेल देखो आ तेल की धार देखो' विश्राम के मुद्रा में चल गइलें। तब बाबा के एगो चेला मोटा भाई के कान में फुसफुसा के बोलल, भाई! बाबा आपन वाला कुल्हि काम दरोगा जी के अर्हा देले बाड़ें। एही से दरोगवा गुर्रा-गुर्रा के सभे धमका रहल बा आ बाबा मुस्किया रहल बाड़ें।

       अइसहूँ एह घरी सावन चलत बा,कुछ लोगन के अनही हरियरी देखाले, बुझाता मनराखनों के कतौ हरियरी लउके लागल बा।बाकि बाबा त बाबा हउवें, हरियरियो पर कीटनाशक छिड़कवा देले बाड़ें कादों, एही से उनुका मुसुकी गहिराह लउकत बा। बाकि जवन चोरन के सरदार बा नु ओकर आदत सौ सौ जुत्ते खाय तमासा घुस के देखे वाली बीमारी के शिकार हउवे, कतनों लतियावल जाई, बाकि आदत ना नु छूटी।बाबा ओकर नाक छेदे में लाग गइल बाड़ें, अब त विना नत्थी पहिरवले माने वाला नइखे। जवन एकाध गो आउर सरदरवा के चेला-चाटी चूँ-चपड़ कर रहल बाड़ें, ओहनी के कनेठी बाबा कब लगा दिहे,केहू के पता नइखे। अइसहूँ बाबा एह घरी मोछ-दाढ़ी पर हाथ फेर रहल बाड़ें, कब ओह चेलन-चपाटन पर हाथ फेर दीहें,पता नइखे। बाकि बेगर हाथ फेरले बाबा माने वाला नइखे। हम त ओह शुभ घरी के बाट जोह रहल बानी, उवों देखत रहीं, नीमने होखी।

-जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

                   

कउवा कान ले भागल बाकि केकर-----?

 का जमाना आ गयो भाया,बेगर जनले बुझले ढ़ेर लोग कउवा का पाछे दउड़ लगा रहल बा।ओह लोगन के केहु कहि देले बा कि तहार कान कउवा ले गइल। कुछ लोगन के ई एगो खेला बुझा रहल बा, एही से सगरे देश के खेला के मैदान बूझि के मनमरजी के खेल मनमरजी वाला लोग खेल रहल बाटे। आधा-तीहा मन से त केहुओ नइखे खेलत, सभे पूरा मन लगा के खेल रहल बाटे। गीता-कुरान के गियान में बूड़त-उतिरात लोगन के बस हाय-धुन खेलवे लउकत बाटे। कुछ लोग कुछ आउर तरह के खेला में लागल बाटे, हर नीमन खेला के बिगारे वाला खेला। खेला त खेला होला, कुछ लोग अपना हिसाब से ओकर परिभाषा गढ़े वाला खेल खेले में अझुराइल बाटे। कुछ लो ओह लोगन के अझुरावे वाला खेलवो खेल रहल बाटे। मने किसिम-किसिम के खेला पूरा दम-खम का संगे खेलल जा रहल बाटे। एह कुल्हि खेलवन के खेले वाला लो खेलाड़ियो खुदही बाटे, आ अंपायरो खुदही बनल बाटे। देखनिहार लो कबों खेला त कबों एक-दोसरा के सूरत निहार रहल बाटे।

            अलगा-अलगा गोल वाला लो एकही खेला के अलगा-अलगा ढंग से खेल रहल बाटे। खेला हो रहल बाटे, त हल्ला-हंगामा होखबे करी, कुछ लो गुत्थम-गुत्था होखबे करिहें, आ बात बढला पर कुछ फुकबो-तापब करबे करिहें, आखिर ओकरा बेगर उनुका खेलाड़ी कही के। एही से कुछ लो अपना के खेलाड़ी सिद्ध करे में लागल बाटे। अलगा-अलगा गोल वालन के तुर्रा ई कि उहे एह खेला से अस्मत बचा रहल बाड़ें। दिन आ समय बदल-बदल के एक्के खेला उहो अपना गोल के खेलाड़ियन के बहका-बहका के खेलवा रहल बाटे लो आ दोसरा गोल के लंगड़ी मारे में कवनो कोर-कसर नइखे छोड़त। हर गोल वाला लो अपना खाति दू-चार गो तीमारदारो रखले बाटे,जे रात-दिन तीमारदारी में लागल बाटे। हर गोल के मेठ लो तीमारदारन के दिल-दिमाग के अपना हिसाब बना के रखले बाटे। उहो लो नून के हक अदा करे में कवनो कोर-कसर नइखे उठा राखत। उनुका एह काम से देश जरे भा लोग मरे, कवनो मतलब नइखे।सभे मठाधीश लो आपन-आपन मठाधीसी चमकावे में लागल बुझाता।  

            जब से मोटा भाई अंगरेजी का क्रम के बदलने तबे से मनराखन पांडे के खोपड़िया भिन्नाइल बाटे। रोजे साँझी के अपना माई लग्गे जा के पूछे खातिर अगुताइल बाड़ें। मोका लगते नइखे एकरा चलते बउवा के कबों इहाँ त कबों उहाँ डोल रहल बाड़ें। कतों कुछ आ कतों कुछों बोल रहल बाड़ें। उनुका महतारी मुहुरत जोह रहल बानी।  अचके एकदिन मनराखन पांडे के मोका भेंटा गइल त पूछ बइठलें, माई रे! सी पहिला कइसे आ गइल ए आउर बी के? फेर मोटा भाई बी के मेटा के ए ले अइलें?

            उनुका माई कहलीं-सुन बेटवा, सी मने कैस, उहे पहिले आवेला, तोरा आजु ले इहे ना बुझाइल।

मनराखन पांडे कहलें- माई तोरा हर घरी कैस काहें पहिले सूझेला?

            सुन बेटवा! कैस पहिले ना सूझत, त तू चानी के चम्मच लेके जामल न रहते, आ हम दुनिया के सभले अमीर मेहरारून में से एगो ना नु कहाइत। बाक़िर मनरखना तू घबरइए जिन, हम आफत मचावे के जोगाड़ जोड़ देले बानी। अब इहे बूझ कि एह देश में आग लगबे करी। एह देश के हिंदुन के डी एन ए के हमरा पता बाटे, ई लोग हर घरी इहे सोचेला कि आगि बुझावल राजा के काम होला। कुछ लोग तमाशा देखी,कुछ लोग थपरी बजाई,कुछ लोग गालो बजाई आ कुछ लोग अपना-अपना घर में ढुक जाई,आगि के बुतावे खातिर केहू पजरे ना आई।हमनी के पहिलहूँ चानी कटनी सन आ आगहूँ  काटल जाई। इहाँ के परजा मूरख पहिलहूँ  रहल बिया आ अजुवो जस के तसे बिया। जेकरा के हमनी इहाँ अल्पसंख्यक कहेनी सन,ओहनी के पहिलहूँ देश के लूटने,आगि लगवने आ अबो हमरा ईसारा होते काम शुरू क दीहे सन। सुन मनरखना ! तू आपन बकलोली करत रह। एह देश का लोग तहरे पर हँसेला आ हम एह देश का लोगन के बुद्धि पर हँसिले आ देश का सोरी में मंठा डालीले। एह देश में जयचंद थोक में जामेले आ अपने सोवारथ में कबों कुछों करे खातिर तइयार रहेलें। एहु घरी कवनों कमी नइखे।   

            तबे ले मनराखन पाड़ें सपनात बाड़ें,बउवात बाड़ें आ किसिम-किसिम के मसीन बनावे आ बाति के बतंगड़ बनावे में लागल बाड़ें। मनराखन पांडे अपना मिशन के पूरा करे खातिर कबों-कबों गियान बटोरे खातिर बाहरो के चक्कर लगा रहल बाड़ें। बीच-बीच में योग आ धियानों करे खाति जात रहेलें। सुने में त इहो आवेला कि टोना-टोटका का फिराको में इहाँ-उहाँ डोलत रहेलें। गंडा ताबीज से लेके तांगसुई फांगसुई सभे के अजुमा रहल बाड़ें मनराखन। बाकि उनुका क़िसमत पर सियार के फेंकरल अबो ले कम ना भइल। अब त केहुओ कहि देवेला कि मनराखन मने गेहूँ का रास पर लेंढ़ा के बढ़ावन। बढ़ावन के त लोग बाबा कहि के गोड़ लागेला बाकि इहाँ मनराखन के लोग लेंढ़ा से बेसी ना  बुझेला। लोगन का अइसन समुझ बनला का पाछे कारनो बा, इहो सभे पता बा। जब रउवा इहाँ ले पढ़ि लेहनी त रउरा के लिखलो ले ढेर बुझा गइल होई, ई हमार बिसवास बाटे।

-जयशंकर प्रसाद  द्विवेदी      

         

धनियाँ अबो बोलावेलें

 

पाकल केसिया भइलें पुरनियाँ

धनियाँ अबो बोलावेलें।

आँखि मटकावें देखि नचनियाँ

धनियाँ अबो बोलावेलें।

 

नयनन से बान चलावें

दियना नेह के जरावें

अबहिनो बोलेलें दुलहिनियाँ

धनियाँ अबो बोलावेलें।

 

चनरमा देखि मुसुकावें

गीत प्रेम प्यार के गावें

पचपन में कहि कहि कनिया

धनियाँ अबो बोलावेलें।

 

हाथ मिलाई चलिहें ठावें

राखें अबो पलक के छावें

देखत दर्पन मचले जवनियाँ

धनियाँ अबो बोलावेलें।

 

 

·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Friday, November 20, 2020

ए छठी मइया

 

बरिसे बरिस पूजिला पाँव, ए छठी मइया

छूटित बझिनिया के नाँव, ए छठी मइया॥

 

रूनुकी झुनुकी एगो देतु बिटियवा

आइत दमाद मोरे ठाँव, ए छठी मइया।

छूटित बझिनिया के नाँव, ए छठी मइया॥

 

ठुमुकी ठुमुकी चली बिटिया अँगनवा

बनी दुनो कुलवा के छाँव, ए छठी मइया।

छूटित बझिनिया के नाँव, ए छठी मइया॥

 

बिटिया के गइले उदासी भवनवाँ

बिहँसी ससुरवा के गाँव, ए छठी मइया।

छूटित बझिनिया के नाँव, ए छठी मइया॥

 

 

·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Thursday, November 19, 2020

सूपवा बोले त बोले----!!

 

का जमाना आ गयो भाया,जेने देखी, भउका भर-भर के गियान बघारल जा रहल बा। गियान बघारे का फेरा में दरोगा, सिपाही से लेके जेब कतरा आ चोरन के सरदारो तक लागल बा लो। अपना लोक में एगो कहाउत पुरनिया लोग क़हत ना अघालें कि 'सूपवा बोले त बोले चलनियों बोले, जेम्मे बाटे बहत्तर छेद', एह घरी छेदहिया चलनियों गियान बघारे में लागल बिया। जेकरा में बहत्तर छेद बा, उहे आजु बृहत्तर देखात बा।  ई कुल्हि देख-सुन के मनराखन पांडे के खोपड़िया के चकरघिन्नी बन गइल बा।  कबों एने कबों ओने घुरियात फिर रहल बाड़ें। केकरा के नीमन आ केकरा के बाउर बोलें, उनुका बुझाते नइखे। आ बुझाव कइसे, काल्हु तलक जे मुँह लुकववले डोलत रहल ह,उहो आज दूध के धोवल बनि के मुसुकी मारि रहल बा। गियान उहो बघार रहल बा,जेकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी चोरकटई में सरनाम रहल बा। ई देखि के मन आउर खटउर हो गइल कि अबले जे उनुका तरवा चाटत रहल बा, उहो उनही के गरियावत देखात बा।    एगो मड़ई लगा के चिरकुटवा के चउधरी बने के चस्का लाग गइल बा। भलही सिवाने गोड़ राखे भर ठीहा न होखे, खेत-बारी के कवन बात करल जाव। चिरकुटवा अपना संगे 2-4 गो नीमन लोगन के हथजोरिया क के जुटा लेले बा। जेकरा केहुओ पुछनिहार ना होखेला उ लो त अपनही लिहो-लिहो क के जुट जाला। मने रंगवा सियरो हुआं-हुआं करत घुरियाइल बाड़न स। रंगवा सियरा उहे ह जवना के इहाँ के चोथल-बिटोरल आ एने-ओने से छीन-झपट के दोसरा के चिजुइयन के आपन कहे आ बरियारी सियरन के मुखिया बने के पुरान सवख ह। कतनी बेर बारीस भइला पर ओकर रंग उतर गइल बाटे, बाकि गंव लगते केनियों से रंग में नहा के फेरु दाँत चियरले आइये जाला।

            राजनीति के मौसम में रंगवा सियार त ढेर लउकेले सन आ बेंग लेखा एनी-ओनी फुदुकबो करेले सन। कब कवना के अतमा जागि जाले, पते ना लागेला। जवना पाटी में हीं-हीं दादी करत,जूठन चाटत, गुणगान करत नाही अघालें, अगिला दिने  अलगा चोला पहिर के ओह पाटी के कोसत भेंटालें, त सुननिहार तुरते कही देवेलन कि बुझाता उहवाँ टिकस ना मिलल होई आ इहाँ मिल गइल। मने जहवाँ चाटे आ लूटे के जोगाड़ उहे नीमन आ बाकी सब बाउर। ई बेमरिया राजनीति से होत पहिलही से साहित्य में पइस गइल बा आ जहां-तहाँ लउके लागल बा। एही से मनरखना के खोपड़िया गरमाइल बा। अब ई बाति मनराखने तक नइखे रह गइल, सभे लउके लागल बा। जेकरा के लोग गम्हीर बुझत रहल ह, उहो चटकारा ले ले चासनी चाट रहल बा। बाति से बाति निकरे ले त ढेर दूर तलक ले जाले। राज मिस्तिरी से कंप्यूटर के प्रोग्राम लिखवाइब त लोगन के नीमन त नहिए नु लागी। बाकि आजु-काल्हु इहे हो रहल बा। सभे आपन-आपन सांतर-बेंवत देखत बा आ अपनन के जोगाड़ लगावत बा। भलही ओकरा नकभेभनी पोंछे के सहुर होखे भा ना होखे।

            चिरकुटवा जब तक नोकरी करत रहे, लोग कहेला कि कबों  नीमन से आपन काम ना कइले होखी। गरे में भुक-भुकवा लटकवले एने-ओने घूमत रहे। अपना अधिकारी के ले-देके पटवले रहे। एह घरी चिरकुटवा रिटायर हो गइल बा, खलिहर बा। कहे वाला त इहाँ ले कहेलन कि चिरकुटवा पुरान गिरोहबाज ह। पहिले एगो गिरोह में रहे, जवना गिरोह के लोग एक दिन केकरो गरियावेलन आ अगिला दिने ओकर तरवा सुहरावेलन।  फेर मड़ई छावल  आ ओहमें पाछे से लुकारी लगा के चरचा में बनल रहला के नीमन उपाय लागल, त चिरकुटवा उहे कर रहल बा। चिरकुटवा के ढेर लोग एजेंडाबाज कहेलन आ लागबो करेला। ओकरा से अकल के बाति त मतिए करी, न पहिले रहे न अब ले भइल। एक जना त इहाँ ले क़हत रहलें कि ओकरा के अकलदाढ़ उगबे ना कइल। बाकि चिरकुटवा अपना के सभेले बेसी अक्किलदार बुझेला। अपनही लेखा कुछ अक्किलदार लोगन के जुटावेला आ फेरु दोसरा के फिरकी लेला। ओकरा चक्कर में कई बेर नीमनों लोग फँस जाला, छपिटाला आ बाद में पछतइबो करेला।

            एह घरी चिरकुटवा एगो नया एजेंडा लेके आइल बा।अपनही लेखा कुछ लोगन के जोड़ के एजेंडा चला रहल बा। चिरकुटवा के एगो नया संघतिया मंगरुवा जवन अपना के सभेले बेसी  सभ चीजु के बिदवान बुझेला,उहो ओकरा संगे लागल बा। छपास आ देखास के बेमारी ओकरा भितरी ढेर गहिराहे ले पइसल बा। एह घरी मंगरुवा के हुआं में चिरकुटवा आपन हुआं जम के मिला रहल बा। ई दूनों मिलके ओह लोगन का खिलाफ एजेंडा चला रहल बा,जे कबों मंगरुवा के घास ना डालस। एह घरी दूनों मिलके कुछ लोगन मने एगो जाति विशेष के लोगन का खिलाफ एजेंडा चला रहल बा भा कहीं कुछ लोग एहनी दूनों से मिल के आपन-आपन भड़ास निकाल रहल बाड़न।अपने मनही अपना के सबसे बड़का सोचनिहार बूझ रहल बाड़न। ई साबित करे के कोसिस हो रहल बा कि बस एही जात के लोग साहित्य के चोरी करेला भा नीमन से ना परोसेला आ बाकि सभे दूध के धोवल बा। सावन के आन्हर बरहो महीना हरियरी देखेलन,ओहनी के आउर कुछ ना लउके मने सावन फागुन के मिलन समारोहवा तक ले।  रेफरेंस के बाति बढ़-चढ़ के करे वाला लो, दोसरका के लिखलका बाँचे में ना लजालें आ ओकर रेफरेंसों ना देवेलन बाकि गियान जरूर बघारेलन। कई गो लमहर लिखनिहार गजलगो दु-चार गो शबद बदलिके गुरुजी आ बाबूजी बनल फिरेलन बाकि केकरो के ना लउकेलन, विशेषकर मंगरुवा आ चिरकुटवा के त एकदम्मे ना लउकेलन। अइसनका ढेर दुलरुवा जी ,बाबूजी,भइया जी, बबुआ जी आ बहिन जी लोग बा,जे चिरकुटवा के लउकबे ना करे। अब बताईं भला मनरखना के खोपड़िया गरम होखी कि ना। अब ई बतिया रउरा करेजा में धक्क ले लागल होखे भा लागे, त पहिले आपन करेजा सँभारी आ फेर सभे ई कुल्हि देखत-सुनत आ गुनत-गिनत आ आपन कपार पीटत रहीं,मनराखन धइलें आपन रसता।

 

·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 

               (सम्पादक)

भोजपुरी साहित्य सरिता