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Friday, January 29, 2021

अबरे के मेहरी, भर गाँव के भउजी

 का जमाना आ गयो भाया, कोरोनवाँ आइल त आइल संगही बरियार बेरोजगारी,लूट-खसोट,गिरहकटई चोरी-चकारी इसन अपने संघतियनों के घलुहा में लेके आ गइल बा। एकही के निभावल भारी बुझात रहल , अब घलुहा के कइसे निपटाओ मनई। ई ना त बुझे लायक बाति बा, न बुझाते बा। बुझइयो जाव त एकरा से पार कइसे पावल जाव,कवनों रसते नइखे।ढेर लोग भर भर के फेंक रहल बा आ मनई लपेटे में लागल बा। केकरा पर बिसवास करो आ केकरा पर ना करो, एकर निरनय लीहल आसान नइखे। इहाँ त चोरो आ घघोटो वाला खेला के संगे 'मारे बरियरा रोवहूँ न दे' वाला खेला चल रहल बा। जेके देखा उहे अब त अबरे के मेहरी बुझ लेले बा। जेकरे में कवनों गूदा नइखे उहो आँख देखा रहल बा। आंखे देखावे तक बाति रहत, तबों गलीमत रहित, इहाँ त कूदब-फानब मचवले बा आ चोरन क सरदार सुर्ती के संगे ताल ठोंक रहल बा। आउर त आउर जेकरा घरे दाना नइखे उहो दानी बने के ढोंग रचा रहल बा। रउवा त जनते बानी कि जब सुर्तियो के ढेर ठोंक दियाला बरियार झाँक चढ़ि जाले आ छींक शुरू हो जाले। जब ढेर छींक आवे लागेले त मनई बउराय जाला आ अकबकाये लागेला। अइसना में दोसरो के चिजुईयन के आपन बतावे लागेला। जेहर-जेहर ओकर दीठी जाले कुल्हि ओकरे बुझाये लागेला। इहे हाल एह घरी चोरन के सरदार के भइल बुझाता।चारों-ओरी 'इहो हमार', 'इहो हमार' के हुहकारा मचवले बा। दरोगा जी कतनों आँखि तरेरत बाड़न बाकि ओकरा पर कवनों असरे नइखे होत।

       सरदरवा के मउसियाउर भाई मने मनराखन अनही बिलबिला आ बउवा रहल बाड़ें। रोटी के हक निभावे के फेरा में आपनों जमीन गवें-गवें गवाँ रहल बाड़े। बाकि जे सुल्फा के बिना भरपूर डोज़ के बेगर बहरे ना निकसत उ बिना डबल डोज़ के बोली कइसे ? एह घरी मनराखन खूब बोल रहल बाड़ें, मतलब बुझीं, काहें? रंगीला चाचा काल्हु पान कचरत क़हत रहलें कि जेकर पचासा पार हो गइल होखे आ हरदी से भेंट ना होखे, बउवाई ना त का करी? रंगीला चाचा के अनुभव के सभे दाद देवेला बाकि मनराखन के माई के बुझाय तब नु। बाते बात में चाचा बोल पड़ले कि ई मनरखना के हर बाति के सबूत चाहेला, इहे हाल रहल त कहिओ अपने माइयो से सबूत माँगे लागी।

       एहनी सभन के हाल देखत-देखत मोटा भाई के पेट फूले लागल त उ बाबा लगे पहुंचले। उनुका आवत देखि बाबा मोछिए में मुसकियाये लगलें। ई बाति मोटा भाई के खोपड़ियों के घूमा देहलस बाकि मोटा भाई शांत होके बाबा  के उपदेस लेवे के फेरा में उहाँ पहुंचल रहलें। आखिर मोटा भाई मुसुकी के राज बाबा से पुछे के हिमत जुटा के पुछे ला मुँह खोललें, बाबा उनुके चुप करावत बस अतने कहलें, 'बेटा तेल देखो आ तेल की धार देखो' विश्राम के मुद्रा में चल गइलें। तब बाबा के एगो चेला मोटा भाई के कान में फुसफुसा के बोलल, भाई! बाबा आपन वाला कुल्हि काम दरोगा जी के अर्हा देले बाड़ें। एही से दरोगवा गुर्रा-गुर्रा के सभे धमका रहल बा आ बाबा मुस्किया रहल बाड़ें।

       अइसहूँ एह घरी सावन चलत बा,कुछ लोगन के अनही हरियरी देखाले, बुझाता मनराखनों के कतौ हरियरी लउके लागल बा।बाकि बाबा त बाबा हउवें, हरियरियो पर कीटनाशक छिड़कवा देले बाड़ें कादों, एही से उनुका मुसुकी गहिराह लउकत बा। बाकि जवन चोरन के सरदार बा नु ओकर आदत सौ सौ जुत्ते खाय तमासा घुस के देखे वाली बीमारी के शिकार हउवे, कतनों लतियावल जाई, बाकि आदत ना नु छूटी।बाबा ओकर नाक छेदे में लाग गइल बाड़ें, अब त विना नत्थी पहिरवले माने वाला नइखे। जवन एकाध गो आउर सरदरवा के चेला-चाटी चूँ-चपड़ कर रहल बाड़ें, ओहनी के कनेठी बाबा कब लगा दिहे,केहू के पता नइखे। अइसहूँ बाबा एह घरी मोछ-दाढ़ी पर हाथ फेर रहल बाड़ें, कब ओह चेलन-चपाटन पर हाथ फेर दीहें,पता नइखे। बाकि बेगर हाथ फेरले बाबा माने वाला नइखे। हम त ओह शुभ घरी के बाट जोह रहल बानी, उवों देखत रहीं, नीमने होखी।

-जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

                   

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