का जमाना आ गयो भाया,बेगर जनले बुझले ढ़ेर लोग कउवा का पाछे दउड़ लगा रहल बा।ओह लोगन के केहु कहि देले बा कि तहार कान कउवा ले गइल। कुछ लोगन के ई एगो खेला बुझा रहल बा, एही से सगरे देश के खेला के मैदान बूझि के मनमरजी के खेल मनमरजी वाला लोग खेल रहल बाटे। आधा-तीहा मन से त केहुओ नइखे खेलत, सभे पूरा मन लगा के खेल रहल बाटे। गीता-कुरान के गियान में बूड़त-उतिरात लोगन के बस हाय-धुन खेलवे लउकत बाटे। कुछ लोग कुछ आउर तरह के खेला में लागल बाटे, हर नीमन खेला के बिगारे वाला खेला। खेला त खेला होला, कुछ लोग अपना हिसाब से ओकर परिभाषा गढ़े वाला खेल खेले में अझुराइल बाटे। कुछ लो ओह लोगन के अझुरावे वाला खेलवो खेल रहल बाटे। मने किसिम-किसिम के खेला पूरा दम-खम का संगे खेलल जा रहल बाटे। एह कुल्हि खेलवन के खेले वाला लो खेलाड़ियो खुदही बाटे, आ अंपायरो खुदही बनल बाटे। देखनिहार लो कबों खेला त कबों एक-दोसरा के सूरत निहार रहल बाटे।
अलगा-अलगा गोल वाला लो एकही खेला के
अलगा-अलगा ढंग से खेल रहल बाटे। खेला हो रहल बाटे, त हल्ला-हंगामा होखबे
करी, कुछ लो गुत्थम-गुत्था होखबे करिहें, आ बात बढला पर कुछ फुकबो-तापब करबे करिहें, आखिर
ओकरा बेगर उनुका खेलाड़ी कही के। एही से कुछ लो अपना के खेलाड़ी सिद्ध करे में लागल
बाटे। अलगा-अलगा गोल वालन के तुर्रा ई कि उहे एह खेला से अस्मत बचा रहल बाड़ें। दिन
आ समय बदल-बदल के एक्के खेला उहो अपना गोल के खेलाड़ियन के बहका-बहका के खेलवा रहल
बाटे लो आ दोसरा गोल के लंगड़ी मारे में कवनो कोर-कसर नइखे छोड़त। हर गोल वाला लो
अपना खाति दू-चार गो तीमारदारो रखले बाटे,जे रात-दिन
तीमारदारी में लागल बाटे। हर गोल के मेठ लो तीमारदारन के दिल-दिमाग के अपना हिसाब
बना के रखले बाटे। उहो लो नून के हक अदा करे में कवनो कोर-कसर नइखे उठा राखत।
उनुका एह काम से देश जरे भा लोग मरे, कवनो मतलब नइखे।सभे
मठाधीश लो आपन-आपन मठाधीसी चमकावे में लागल बुझाता।
जब से मोटा भाई अंगरेजी का क्रम के
बदलने तबे से मनराखन पांडे के खोपड़िया भिन्नाइल बाटे। रोजे साँझी के अपना माई
लग्गे जा के पूछे खातिर अगुताइल बाड़ें। मोका लगते नइखे एकरा चलते बउवा के कबों
इहाँ त कबों उहाँ डोल रहल बाड़ें। कतों कुछ आ कतों कुछों बोल रहल बाड़ें। उनुका
महतारी मुहुरत जोह रहल बानी। अचके एकदिन मनराखन
पांडे के मोका भेंटा गइल त पूछ बइठलें, माई रे! सी पहिला कइसे आ गइल
ए आउर बी के? फेर मोटा भाई बी के मेटा के ए ले अइलें?
उनुका माई कहलीं-सुन बेटवा, सी
मने कैस, उहे पहिले आवेला, तोरा आजु ले
इहे ना बुझाइल।
मनराखन पांडे कहलें-
माई तोरा हर घरी कैस काहें पहिले सूझेला?
सुन बेटवा! कैस पहिले ना सूझत, त तू
चानी के चम्मच लेके जामल न रहते, आ हम दुनिया के सभले अमीर
मेहरारून में से एगो ना नु कहाइत। बाक़िर मनरखना तू घबरइए जिन, हम आफत मचावे के जोगाड़ जोड़ देले बानी। अब इहे बूझ कि एह देश में आग लगबे
करी। एह देश के हिंदुन के डी एन ए के हमरा पता बाटे, ई लोग
हर घरी इहे सोचेला कि आगि बुझावल राजा के काम होला। कुछ लोग तमाशा देखी,कुछ लोग थपरी बजाई,कुछ लोग गालो बजाई आ कुछ लोग
अपना-अपना घर में ढुक जाई,आगि के बुतावे खातिर केहू पजरे ना
आई।हमनी के पहिलहूँ चानी कटनी सन आ आगहूँ
काटल जाई। इहाँ के परजा मूरख पहिलहूँ
रहल बिया आ अजुवो जस के तसे बिया। जेकरा के हमनी इहाँ अल्पसंख्यक कहेनी सन,ओहनी के पहिलहूँ देश के लूटने,आगि लगवने आ अबो हमरा ईसारा
होते काम शुरू क दीहे सन। सुन मनरखना ! तू आपन बकलोली करत रह। एह देश का लोग तहरे
पर हँसेला आ हम एह देश का लोगन के बुद्धि पर हँसिले आ देश का सोरी में मंठा
डालीले। एह देश में जयचंद थोक में जामेले आ अपने सोवारथ में कबों कुछों करे खातिर
तइयार रहेलें। एहु घरी कवनों कमी नइखे।
तबे ले मनराखन पाड़ें सपनात बाड़ें,बउवात
बाड़ें आ किसिम-किसिम के मसीन बनावे आ बाति के बतंगड़ बनावे में लागल बाड़ें। मनराखन
पांडे अपना मिशन के पूरा करे खातिर कबों-कबों गियान बटोरे खातिर बाहरो के चक्कर
लगा रहल बाड़ें। बीच-बीच में योग आ धियानों करे खाति जात रहेलें। सुने में त इहो
आवेला कि टोना-टोटका का फिराको में इहाँ-उहाँ डोलत रहेलें। गंडा ताबीज से लेके
तांगसुई फांगसुई सभे के अजुमा रहल बाड़ें मनराखन। बाकि उनुका क़िसमत पर सियार के
फेंकरल अबो ले कम ना भइल। अब त केहुओ कहि देवेला कि मनराखन मने गेहूँ का रास पर
लेंढ़ा के बढ़ावन। बढ़ावन के त लोग बाबा कहि के गोड़ लागेला बाकि इहाँ मनराखन के लोग
लेंढ़ा से बेसी ना बुझेला। लोगन का अइसन
समुझ बनला का पाछे कारनो बा, इहो सभे पता बा। जब रउवा इहाँ
ले पढ़ि लेहनी त रउरा के लिखलो ले ढेर बुझा गइल होई, ई हमार
बिसवास बाटे।
-जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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