का जमाना आ गयो भाया, एह
घरी अलग-अलग जगह पर अलग-अलग 'खेला होबे' के कहानी चल रहल बा। बाडर पर एगो अलगे खिस्सा नधाइल बा। किसान के माने
मतलब लोग अइसन बना देले बा कि सभे के मन अउजा गइल बा। लोगन के बुझाते नइखे कि असली
किसान के बा आ के नइखे। सोचनिहार लोग कई फाँक में बंटा गइल बा। कुछ लोग जायज आ
नाजायज के पहाड़ा पढ़ रहल बा। देश के मान-सनमान ताख पर राख़ के कुछ लोग आपन-आपन दोकान
खोल के भोंपू बजा रहल बा। कुछ लोग उहाँ अइसनो बा जे सोझा लउकत चिजुइयन का ओर से
आँख घुमा के ओकरा उपस्थिति के नकारे में जरिकों हिचकिचात नइखे। तीन गो कानून के
लेके जतने मुँह ओतने बात। कुछ लोग ओकरा बाउर बता रहल बा आ कुछ लोग नीमन। सभे अपने
नजरिया के सही ठहरा रहल बा। 'ठेका पर खेती', ई त कवनो नई बात नइखे। पहिलहुं होत रहे आ अजुवो हो रहल बा। बाकि केहु के जमीन ठेका वाला
कब्जिया लेले होखे, अइसन त आजु ले ना सुनाइल।
काल्हु तक जे एह तीनों कानूनन के नीमन बतावत ना थाकत रहे आ ओकरा के अपना
बाबूजी के इच्छा के सनमान मानत रहे आ भोंपू पर आपन चउकठा चमकावत रहे,अब सुल्फा मारके अलगे राग गावत देखात बा। सब त सब मनरखनों आपन भकोल बोल
बोल रहल बा। बुझात त इहो बा कि 2022 के तइयारी में केहुवो कवनो कोर-कसर नइखे छोड़ल
चाहत। इहवाँ बबवा आपन लठ्ठ में तेल लगा के तइयार बइठल बा कि लोग कुछों गड़बड़ करो आ
बबवा आपन लठ्ठ फेरो। बन्न-बुन्न वाला खेला एही से उत्तर प्रदेश में ना भइल। लाल
किला वाला खेला का चलते हरियरकी टोपी वाले के पुक्का फार के रोवे के पड़ गइल।फेर त
महँग-महँग गाड़ी वाला किसान लोग हरियरकी टोपी वाला के चारु ओर घूरियाए लागल।
हरियरकी टोपी वाला के दोकान चल निकलल। नेता-परेता आ रंग-रंग के भोंपू वाला लोग
उहाँ चहुंपे लागल। फेर उ एगो पंचइती के नया खेला शुरू क देलस।
एह घरी 'खेला
होबे' ढेर मसहूर हो
रहल बा। ढेर लोग एकरा में लागल बा। खूबे रेकाड बज रहल बा। लइका, बूढ़, जवान सभे एह घरी इहे गा रहल बा। बाकि कवन 'खेला होबे' ई केकरो पता नइखे। रैली से रैला तक, गली से मोहल्ला तक, गाँव से शहर तक, जिला से प्रदेश तक आ प्रदेश से देश तक इहे चल रहल बा। चलन में त एह घरी 'जय श्री राम' जरिको कम नइखे। दूनों में एगो बरियार
अंतर बा। 'खेला होबे' के कुछ लो छाती
चाकर क के बोलता, त कुछ लो चुटकी लेता बाकि 'जय श्री राम' बोलला पर कुछ लोगन के मिरचाई लाग जात
बा। बउवाय- बउवाय के लोग आपन कपारे क बार नोचे लागता। कुछ लो त इहो कहता कि 'जय श्री राम' इहवाँ ना बोलाई त फेर कहवाँ बोलाई।
खिसिआई के अइसनका लोग इहो कहि देता कि हमनी के पाकिस्तान में ना नु बोले जाएम। खैर
रउवो सभे जानतानी कि उहवाँ बोललो ना जा सकेला। बड़का बाबा त मुस्कियात कहलें कि
बुझाता कुछ लोगन के खेला खतम होखे वाला बा।
मनरखना 'खेला होबे' आ 'खेला खतम' का बीच में
अझुराइल बा। एगो चलन में त इहो बा कि मनरखना के पितिआउत भाई त दोसरा के का 'पहिरे के चाही' भा केकरा से 'मिले
के चाही' एह दूनों काम ला अपना दोकान से साटिक-फिटिक बाँटे के जोगाड़ जोड़ रहल बाड़ें।कोरोना
काल के बाद ढेर लोगन के दोकान बन्न हो चुकल बा भा बन्न होखे वाला बा,अइसना में साइड बिजनेस कइल गलत ना कहाई, बाकि बूड़े
के चानस ढेर लउकता। ई जनला का बाद मनरखना अपने
पितिआउत भाई से कुछ रिसिआइल बुझाता। बाकि डरे बोल नइखे पावत। अब डर ई कि
मनराखन के बेगर सुल्फो फूंकले लोग इहे कहेला कि लागता कि डोज़ मार के आवता। बेचारे
के हाल अबरे के मेहरी भर गाँव के भउजी लेखा हो गइल बा।
भुंवरी काकी मनरखना के कुछ काम-धाम
जोग बनावल चाहत बानी बाकि जोगाड़े नइखे लागत। अब काकी के, के
समझाओ कि हर काम अपना समय पर नीक लागेला आ मोका रोज-रोज ना मिलेला। एही बीचे कुछ
लो भुंवरी काकी के टँगरी खींचे में लाग गइल बा। ई उ लोग बा जेकरा के आजु ले भुंवरी
काकी आपन बूझत रहल बिया। मोटा भाई के डंडा आ बड़का बबवा के मंतर के आगे भुंवरी काकी के खोपड़िया चकरघिन्नी लेखा घूमे
लागल बा। ई सब समय के चक्करे नु कहल जाई कि भुंवरी काकी के घुरहु-सोमारू सभे गियान
दे रहल बा, ई देखि के मनरखनों के मन करुआइन हो गइल बा। बाकि डर
के मारे मनरखना बेचारा अपने माई से कुछ पूछ भा कहियो ना पावेला, का पता काल्हु के माई कुछ आउरो ना छीन ले। मने खेला होबे त इहों बा बाकि
अलहदा। खेला होबे आ खेला खतम के फेरा में सभे औंजाइल बा,
बाकि करो त का करो आ जनता ई दूनों देखि के चवनिया मुस्की मार रहल बा। अब त रउवो
मुस्किआईं , हम चलनी अपना राहे।
जयशंकर प्रसाद
द्विवेदी
संपादक
भोजपुरी साहित्य
सरिता
No comments:
Post a Comment