का जमाना आ गयो भाया , सबही
के जीभ मे खजुली उपरियाए लागल बा। तनि हई न देखी ! अब चलनियों बउवा रहल
बानी सन आ कुछहू बोल – बोल के अतिराइल घूमत बानी सन। सबही कुछ ना कुछ बोले खाति
मुँह बवले बा, भलही उनुका खुललके मुँह मे माछी पइठ जास। फेर त
खोंखत-खोंखत सांस उपरिये नु जाई । जेकरे अपने मेहरी के सोझे बकार न फूटत होखस, उहो लामा-लामा फेंक रहल बा। अपना के लमहर
बोलवाइया बूझ रहल बा, भलही उ केहू आउर के लिखल होखस, उहो चटकारा ले- ले के आ मुड़ी झार झार के बोल रहल बा। उ लोग
राजस्थान के आन्ही मे बालू मे मुड़ी गोत के बड़का
बकता के पोछिंडा लेखा ओकर मुक़ाबला करे के दंभ बान्ह रहल बाड़ें ।ओहनी के
मालूम बा कि इहवाँ कुछहू बोलला के कवनों मतलब नइखे, कतों कुछ निकलतों होखे त दोसरा पर बला टाल के आपन छुट्टी बूझ लेला लोग। ओइसहू
इहवाँ बस बोलला से मतलब बा, करे के त कुछ हइए नइखे ।
फेर कुछों बोलत रहीं महाराज ! का फरक पड़े वाला बा। 70 बरिस मे जहवाँ के सोच ना
बदलल होखे ,उहवाँ मनई बदल जाई, ई संभव नइखे। इहे त लोकतन्त्र के सुघरई ह, कुछहू बोल के आ फेर माफी माँग ल, हो गइल काम । अरे भइया ! ई लोकतन्त्र ह, इहवाँ सभे कुछ माफ आ ना त पूरा साफ। आइसन लोग
दोसरा पर अछरंग लगा के फूट लेवेला ।
हमरा
त आज ले ई बुझाइल कि जे गरीबन के नांव के नेतागिरी करत बा, उ भला हेतना अमीर कइसे हो गइल ? गरीबवा बेचारा आउर गरीब हो गइलन सन। फलनवाँ जात
पिछड़ल बा कहि कहि के अपने धनकुबेर बनल लोग चारा,कोइला कुछहू ना छोड़ेला। बाकि उनका जात के लोग सोचलो ना चाहेला , न देखबे करेला ,समझला के त दूर के बात बा । केहू हमरा आ के इ समझावो कि मड़ई से महल के जतरा 10
बरिस मे , कइसे होखेला । बेगर कवनों नोकरी भा धंधा के
करोड़पति बने के लूर का हवे भाई, केहू बताओ। बुद्धू बकसवा
पर आके जे जे कुछहू आ केनियों फेंकत रहेला, ओहू लोग से पूछ रहल
बानी। फेर एह बड़ –बड़ स्कूल आ विश्व विद्यालयन के जरूरत का बा ?जब कुल बुद्धि आ दिमाग अनपढ़ के लग्गे होला,त फेर पढ़े लिखे क टंटा के जरूरत का ह ? मनराखन पांडे बनि के देस आ समाज तूरल जा सकेला, जोरल ना। साँच के सोझा लियावे के बा, आपन भविस मति देखीं, बस सोझा काम करे मे मन लगाईं । बेताज बादशाह
बने से कोई ना रोक सके। जबरी बनब त लोग बहरिया देही। आज लोगन के राउर साथ पसंद बा
कि ना , झूठिया देखावत रहीं आ सोची कि लोग उहे देख रहल
बा , त ई सोझ भरम ह । जनता के मरम बूझी । दिनही मे
सपनाए वाला इतिहास ना लिखे । जागीं ,कुछ ठोस करी फेर ध्रुव तारा बने के सोची । आलू
के फैक्टरी लगा के केहू ध्रुवतारा ना बन पावेला ।
आजु
के समय मे जेकरे जर के पते नइखे, उहो बरगदे बनल चाहता। कइसे
बनबा भाई ? पहिले बरगद वाला गुन त अपना मे हेर लs, कोने अँतरे जरि मनी होखे त ।मुंगेरी लाल लेखा
सपनाइले से का होई । एक दोसरा के चरित्र पर कनई बीगले से स्तर मे कवनों सितार न
जड़ा जाई । आजु के पहिले हर चीजन से खेलवाड़ भइल बा, जवन आज सभे के दिख रहल बा । राज करे खाति सझुराइल बतियों जान बूझ के अझुरावल
गइल बा । झूठ के थुन्ही आ बड़ेर पर राखल पलानी के दिन अंधड़ के रोक पाई, ज़ोर के झझोर लगते उधिया जाई ।
गज़ब
बा भाई, मलिकार के खुस करेला उनके अवतारी बना रहल बा
लोग । खाली बोलिए के ना चुपाता लोग, ओकर बड़का-बड़का बैनर
टाँगते घूम रहल बा लोग । नयकी बहुरिया के चाम –चूम त होखबे करेला । होइयो रहल बा, उनुके पाँव पड़ला के गुणगान सगरों सुनाता ।
भगवान भला करिहें, अइसन लोगन के जेकरे आँखि पर हरियरकी मोटकी
पट्टी बन्हाइल बा । चमचा – बेलचा लोग के ई जनमजात गुन होखेला अरधना, पूरा मन लगा के कर रहल बा लो । एह देश आ इहाँ
के रहवइयन के का काहल जाव, कतहूँ मुड़ी पटके लागेला, अइसन लो के केहुवो समझा ना सकत । मंतरी का
संतरी का, मौलवी का फकीर का, ओझा-गुनिया का । बाबा लोग के त बाते निराली ह, आज कल सबज़ी रोप – बो के प्रवचन दे रहल बा लोग ।
एगो
आउर बाबा बाड़ें जे सफाई अभियान चला रहल बाड़ें। कुछ लोग – बाग, अरे दोसरका बाबा के गोल वाला लोग कह रहल बा कि
हमनी के एनही ठीक बानी सन। बताईं भला, कुकुरो अपना पोंछी
से झार-झूर के बइठे लन स, बाकि ई लोग के त लोटे के
आदत नु बा । कतहूँ लोट जाई लोग। कुछहु खाति लोट जाई लोग । सगरों बस पिचिर–पिचिर
करत रही भा इंजन लेखा धुआं छोड़त रही। ई कूल्हि देख के एगो नैतिकता नाँव के चिरई
बेचारी जवार छोड़ के केने चल गइल, केकरो पता नइखे। गरमी होखे
भा जाड़ा चिरई चुरमुन के पीये खाति पानी त चहबे करेला नु, जब पानी पीये जोग ना होखे त, चिरई-चुरमुन बेचारा कहाँ जइहन ?
एह
देश के राजधानी त राजधानी, ओकरे अगल-बगल देख लेही भा
कवनो मे गलती से नहा लेही भा एक चुरुवा पानी पी लेही, फेर AIMS भा APOLO मे शरण मिलल पक्का बा। कतों हम पढ़ले रहनी कि
बादशाह अकबर रोज एक लोटा यमुना जी के पानी पियत रहे, आज होखते त बुझात। पहिले त एकही गो राजा रहत रहलें, त पानी पीये जोग रहे आ अब 565 गो रहत बाड़ें।
कूल्हि मिलन के रोज एक – एक लोटा यमुना जी के पानी पियवले के दरकार बा। जमुना जी त
जमुना जी दिल्लियो साफ न हो जाय तब कहेम। सफाई के काम मे जेतना लोग लागे सबके एक
लोटा रोज पानी पियाई, फेर देखी जेतना करिया उज्जर नदी सफाई योजना के
बा, सब बहरियाए लागी।
अब तनि हरिनंदी यानि हिंडन के बात कर लीहल
जाव, इ कुल देख-दाख के आउर सरकार भा अधिकारी लोगन के
करतूत से हिंडन (हरनंदी) नदी नाला बन चुकल बा। जब कवनो नदी पूरा शहर के मलबा अपने
पेट मे बरियाई लीही त इहे होखी। हिंडन नदी कबों गाजियाबाद शहर के मोक्षदायिनी रहल बाड़ी, ओहू मे एगो ऐतिहासिक नदी, तबों हेतना अनदेखी। जनम, मिरतुक से लेके पूजा-फरा तक ले जेकरे घाट आउर
पानी के परयोग होत रहल होखे, ओकर पानी आज हाथो धोवे
लायक नइखे बाचल।एह घरी विसेश्रवा ऋषि रहतें त का करतें।
लगले हाथ आजु के देश हो रहल चुनाव आउर ओकरे नतीजन पर नजर डालत चले के, इहवों जेकर लाठी ओही भैंस बिया। दोसर केहू त बस टुकुर टिकुर ताकते रह जात
बा । गोवा, मेघालय, त्रिपुरा आ अब
कर्नाटक, फिरो देखी सभे नाटक। आपन आपन तरक आपन आपन तरकस।
कवने नैतिकता के बात जोहत ह एह देश के लोग आ केकरा से। जइसन नागनाथ, ओइसे साँपनाथ, आउर कुल्हि नाथन के बातों बेमानी बा।
हाँका लोग लोकतन्त्र के भैंस मातिन, देत रहा लोग दुहाई ओही
लोकतन्त्र के आ राजभवन के विवेक के। राज भवन मे जवन विवेक बसल बा, उहो तहरे सभे के बसावल बा।
एही महिनवा मे मने मई महिना (5 मई 1818) एगो
दार्शनिक आउर समाजवाद के सूत्र देवे वाले कार्लमार्क्स के जनम दिन आनि कि 200वी
जयंती सगरी दुनिया मे मनल। उनुका दर्शन मे से एह घरी सड़ांध आ रहल बा, काहें कि उ दर्शन फेल हो चुकल बा। जब एह दर्शन पर आधारित सरकार दुनियाँ
के एगो कोना मे आइल रहे जवना के बोल्शेविक क्रान्ति के नाम से जानल जाला, उहवाँ अधिनायकवाद के बोलबाला हो गइल रहे आ सरकार बिरोधीयन के खूब हत्या
भइल रहे। शायद हिटलर लेखा लेलिन, स्टालिन आ माओ मानवता के
लमहर दुसमन बन गइल लोग । एह मे सर्वहारा वर्ग के बेसी दमन भइल । बाकि भारत मे
अजुवो एह विचारधारा के कुछ लोग ढो रहल बा, ई लोग के भारत के
अखंडता फूटलो आँख ना सोहाला । ओकरा चक्कर मे एह विचार धारा वाला लोग देश द्रोह के
स्तर तक पहुँच चुकल बा । जेकर बानगी इहाँ के लोग कई बेर देश चुकल बा । जेएनयू के
घटना ओकर ताजा उदाहरण बा ।
चलत चलत अपने देश के उच्च शिक्षा पर एगो
सरसरी नजर डालल जरूरी बुझाता। अइसने एगो उच्च शिक्षा संस्थान के जिकिर तनिका पहिले
आइल ह।अइसन कुल्हि संस्थान आन्हर कुइयाँ लेखा बुझालें भा चक्रव्यूह लेखा बा। जवना
मे जाये के रहता त बा बाकि निकले के रहता ....? इहवाँ के
स्थिति थोड़ ढेर “सभे कुछ माफ आ ना त जिनगी पूरा साफ” के
ढर्रे पर चलत रहेले भा कबों कबों ठहरल बुझाले। कबों कबों त इहों बुझाला कि डिगरी
बाटें वाला कारख़ाना खुलल बा जवन केंद्र आ राज्य सरकारन के संरक्षण मे चल रहल
बा।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी