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Saturday, January 8, 2022

आपन आछो-आछो आ दोसरा के छिया-छिया (उचरत हरिनंदी के पीर)

 का जमाना आ गयो भाया,बड़बोल बोलवन के भाव-ताव के कवनो ठेहा-ठेकाना के हेरल संभव नइखे। कवनो गली-मोहला, गाँव-शहर, नगर-डगर अइसन जगह नइखे जहवाँ एहनी के प्रजाति काबिज ना होखे। सगरों कुंडली मार के बइठल बाड़न सन। सभले बेसी सभे कुछ एहनिये के चाहत बा। ओकरा खातिर कुछो करे के तइयार बाड़न सन। छीछालेदर करे से लेके रइता फइलावे तक में एहनी के आपन करतब बुझाता। अपने सनमान खाति केहुओ के आगु खीस निपोरत बेरा छाती चाकरे राखल ओहनी के सोभाव में बा भा कहीं कि खुने में मेझराइल बा। नीमन बातिन के बाउर बतावे में जरिको देरी नइखे करत सन आ खुदही बाउर करे में जरिको लजातो नइखे सन। धरम-जाति से लेके प्रदेश आ क्षेत्र तक सब आपन बतावत नइखे थाकत सन। अपने जय-जय होखे के राग आलाप रहल बाड़न सन। ओहनी के विद्वता त अधजल गगरी लेखा छलक रहल बा। नीमन चिजुइयन का ओर ओहनी के दीठिए नइखे जात। 'विष कुंभम पयो मुखम' के असली भगत लोगन के तबो कबों-कबों मजबूरी के नाम जपे के पड़ जात बा। ओहुके गिनावे में न लजात बाड़न सन आ न पिछुआत बाड़न सन

      ठाकुर रमेसर सिंह के ई सहूर देखि-बूझ के त मनराखन पांड़े के सरम आवे लागल। उ बेचारु इहे बूझत रहने के उनुका से बड़ बकलोल एह जहान में दोसर केहु नइखे, बाकि उनुकर ई भरम ठाकुर रमेसर सिंह तूर दिहलें। दाँत निपोरे से लेके हाथ पसारे आ भीख माँगि के सनमान बिटोरे भा कुरसी हथियावे में सभेले अगहीं लउकत बाड़न। अपना के बड़का भाषा विद बूझे वाला ठाकुर रमेसर सिंह के ढेर लो 'भासाई दरिदर' के तमगा से नवाज चुकल बा। दोसर भाषा के साहित्य के अनुवाद क के अपना के मौलिक बोले में उनुकर जबाब नइखे। सुने में त इहो आवेला कि ठाकुर रमेसर सिंह कवनो इस्कूल में माहटर बाड़न। बाकि माहटरई के उनुका भीरी कतना लूर बा, अब उनुका नोकरी देवे वाली सरकारो सोच रहल बिया। गारी-गुन्नर से लेके चोरी चकारी तक में सगले गुन आगर माहटर साहेब अपना हिसाब से परिभासा गढ़े में सभेले आगहीं ठाढ़ भेंटालेंखीर भा सेवई में परल माछियो के चूस के खाये वाला ठाकुर रमेसर सिंह आजु से झूठे के गगरी भर भर के ढो रहल बाड़न। दू रूपिया के खैनियो कीन-खरीद के ना बलुक मागिए खालन। बाक़िर ठकुरई के बखाने में सभे ले आगु भेंटालें। गाहे-बगाहे कबों कवनो साह जी झूठ बोलिके खैनी मंगा लेलन त उनुका उधार पचावल ठाकुर साहेब के चतरा हाथ के खेल बा। अब त मनराखन पांड़े मारे चिंता के सुखा के काँट लेखा हो गइल बाड़न कि उनुका बिरासत केहु दोसर कब्जिया रहल बा।  

      मनराखने लेखा ठाकुर रमेसर सिंह के संगे कुछ लिहो-लिहो करे वाला लोग सटल बा। उ लो उनुका भरम के बरोबर खाद-पानी दे रहल बा। कई बेर त कुछ लो रमेसर सिंह के बेंजइयो अपना कपारे ओढ़ लेता। ओकरा खाति माफ़ियों माँगे में केजरियो के पाछे ढकेल देतादोसरा के कन्ही पर मंगनी के बनूक राखि के ठाकुर साहेब बाहबाही लुटहूँ में जरिको ना पिछुआलें आ कान्ही वाला के लमचूस थमा के अपना गुरुरे मगन हो जालें। अब चाहे बनूक टूटे भा कान्ह, ठाकुर साहेब आपन बकलोलई के ढ़ोल बजा-बजा के आपन मुखौटा चमकावे में जीव-जाँगर का संगे लाग जालें। जइसे कान-कूबर के आँख आ देह वाला लो ना सोहालें ओइसहीं ठाकुरो साहेब के नीमन लोग ना सोहालें। उ त बस हर घरी आपन आछो-आछो आ दोसरा के छिया-छिया करे में अझुराइल आ सउनाइल रहेलन।    

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता    

Friday, December 17, 2021

उचरत हरिनंदी के पीर

 

अहम् के आन्हर सोवारथ में सउनाइल

         

          का जमाना आ गयो भाया, आन्हरन के जनसंख्या में बढ़न्ति त सुरसा लेखा हो रहल बा। लइकइयाँ में सुनले रहनी कि सावन के आन्हर होलें आ आन्हर होते ओहन के कुल्हि हरियरे हरियर लउके लागेला। मने वर्णांधता के सिकार हो जालें सन। बुझता कुछ-कुछ ओइसने अहम् के आन्हरनो के होला।सावन के आन्हर अउर अहम् के आन्हरन में एगो लमहर अंतर होला। अहम् के आन्हरन के खाली अपने सूझेला, आपन छोड़ि कुछ अउर ना सूझेला। ई बूझीं कि अहम् के आन्हर अगर सोवारथ में सउनाइल होखे त ओकर हाल ढेर बाउर हो जाला। ओकर सोचे-समुझे के अकिल बिला जाले। मतिए मरा जाले।अइसन आन्हरन खाति केहु आ कतनों नीमन काज कइले होखे भा ओहनी ला आपन करेजों काढ़ि के दे दिहले होखे,उनुका कतनों मान-सनमान कइले होखे, उनुका रसूख ला हरमेसा ठाढ़ रहल होखे, तबो अहम् में आन्हर लो मोका पवते ओहू  बेकती के इजत बिगारे में अझुराइए  जालन। अहम् में आन्हर लो अपना के सभे ले लमहर विदवान बुझेला लो। ई त सभे पता होला कि अहम् में आन्हर लो के लगे आपन कतना अउर का-का बा। भर जिनगी अहम् में आन्हर लो एने-ओने ताक-झाँक क के भा कुछ जोगाड़-सोगाड़ से जवन किछु जुटावेला, ओहके एह श्रीष्टि के सबसे उत्तम मानेला। भलहीं ओकर कीमत दुअन्नीओ भर के ना होखे।

          साहित्यो में अहम् में आन्हर लो के तादात कम नइखे। इहवों अइसनका लो अपना संगे चमचा  बेलचा, चेला-चपाटी आ भकचोन्हरन के गोल बना के रहेला। ओहनी के गोल के अइसनका लो एकके इसारा पर लिहो-लिहो करे में लागि जाला। कवनों भल मनई जे आपन जिनगी साहित्य के सुसुरखा में लगा देले होखे, अपना लेखनी का संगही तन-मन-धन से साहित्य के समरिध करे में कवनों कोर-कसर न छोड़ले होखे, ओहुओ के इजत पर रइता फइलावे बेरा अहम् में आन्हर लो  बेसरम हो जाला। कुइयाँ के बेंग लेखा अपना के शक्तिमान बुझे वाला एह लो का लगे आपन जमा का होला, ई सभे के जाने के चाही। दोसरा के लिखल पुरान साहित्य के अनुवाद उहो गूगल बाबा से पूछ-पाछ के, दोसरा के लिखलका में थोड़-बहुत हेर-फेर क के, दोसरा के लिखलका पर आपन नाँव चेंप के जवन हासिल होला, उहे एह लोग के मौलिक होला। अइसनका लो दोसरा के लिखलका बांचत बेरा जरिको ना लजाला । ओहिके नगाड़ा पीटत ई लोग डोलत रहेला आ अपना के ओह भाषा-साहित्य के पुरोधा बतावे में जीव-जाँगर से जुटि जाला। उनुका एह काम में उनुकर चमचा-बेलचा, चेला-चपाटी आ कुल्हि भकचोन्हर लागल देखालें। जरतुहाई अइसन लो के नस-नस में हिलोरा मारत रहेला। मोका लगते अपना मुखौटा चमकावे में कवनों स्तर  तक चहुंप जाला लो ।

          ई प्रजाति अजबे किसिम के होले। एह प्रजाति का चलते उनुका हाँ में हाँ मिलावे वाला उनकरे लेखा लोगन के कुछो अक-बक करे के मोका भेंटात रहेला। अहम् में आन्हर लो के सार्थक आ समरिध काम लउकबे ना करेला। अपने गुन गावे आ अपने पीठ थपथपावे में अइसन लो के समय बीतत रहेला। मने 'सभले बेसी सभे कुछ चाही' के मंतर के जाप आठो पहर कइल इहाँ सभन के सोभाव में भेंटाला।

          मनराखन पांड़े आ भुंअरी काकी के अइसनके लोगन के धाह लाग गइल बाटे।  उहो लो आ उनुका चमचा-बेलचा लो आंउज-गाँउज बोल-बाल रहल बा। मनराखन त अतना कुछ बोल रहल बाड़ें कि उनुका मनई होखलो पर कुछ लो सवाल उठा रहल बा। एगो खास तरह के बेरा में मनराखन के बोल आ करतूत दूनों देखे जोग होले। सुने में आवता कि उहे वाली बेरा नगिचा रहल बा।  हाथी आ टोंटिओ बकलोलई में ढंग से अझुरा गइल बानी। एने-ओने कुछ चिरई-चुरमुन अपने चकर-चकर में लागल बाड़ें। मने एह घरी बकलोलई के बोलबाला बा। सभे एह घरी अपने के कुछ खास देखावे में लागल बा। अहम् में अन्हरन के त बागे नइखे मिलत। अइसन कुछ देख-सुन के कुछ लो मुस्कियो मार रहल बा। अब देखीं, रउवो सभे के मुस्कियाये के मन हो रहल होखे, त मन के मति मारीं। जी भर के मुसकियाईं। अब हमरा चले के बेरा  हो गइल बा, फेर हलिये भेंट होखी।   

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

Tuesday, December 14, 2021

अक्कल दाढ़

 भरल दुपहरी,छुटल कचहरी

अचके काहें टुटल सिकहरी

बबुआ दुअरे बाड़न ठाढ़।

निकसल नाही अक्कल दाढ़॥

 

जेकर नावें  छुटत पसीना

थथमल काहें चाकर सीना

देखS दुसमन रहल दहाड़।

निकसल नाही अक्कल दाढ़॥

 

रावत कब दुसमन के भावत

उनुका तिनगी नाच नचावत

घात भइल ले घर के आड़।

निकसल नाही अक्कल दाढ़॥

 

भित्तरघात भइल होखे जे

आपन उहाँ जुड़ल होखे जे

घर के होखे, भेज तिहाड़।

निकसल नाही अक्कल दाढ़॥

 

सेना के  जे दिहल चुनौती

उनुकर सगरे पुरल मनौती

बहरे उनुका, सोर उखाड़।

निकसल नाही अक्कल दाढ़॥

 

समरिध समरथ काहें बिसरल

काहें घरवाँ मातम  पसरल

जयचन्दन के मार-पछाड़।

निकसल नाही अक्कल दाढ़॥

 

·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 http://www.bhojpurisahityasarita.com/2021/12/15/%e0%a4%85%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%95%e0%a4%b2-%e0%a4%a6%e0%a4%be%e0%a5%9d/

Tuesday, October 26, 2021

अँधेर पुर नगरी....!

            का जमाना आ गयो भाया,सगरी चिजुइया एक्के भाव बेचाये लगनी स। लागता कुल धन साढ़े बाइसे पसेरी बा का। कादो मतिये मराइल बाटे भा आँखिन पर गुलाबी कागज के परदा टंगा गइल बा,जवना का चलते नीमन भा बाउर कुल्हि एकही लेखा सूझत बाटे। मने रेशम में पैबंद उहो गुदरी के। मने कुछो आ कहीं। मलिकार के कहलका के आड़ लेके आँखि पर गुलाबी पट्टी सटला से फुरसते नइखे भेंटत। मलिकार कहले बाड़े, ठीक बा, बाक़िर समय आ जगह का हिसाब से कुछो कहल आ कइल जाला। अपना लालच में मलिकारो के बदनाम करे के कवनो मोका बांव नइखे जाये देवे के, बस अपना आँखिन पर गुलाबी पट्टी सटा जाये के चाही। बेचारी हरिनंदी (हिंडन नदी) एहनी लोगन का चलते हर घरी पीरे में जी रहल बाड़ी।अइसने कुल्हि करतूतन का चलते दुबराय के काँट हो गइल बाड़ी आ उनुका जल के हाल जनि पुछीं महाराज, छुवाते खजुहट ध लेवेला। एह जुग में विसेश्रवा रिसि रहतें त नहइते कहाँ आ कवन जल दूधेश्वर नाथ के चढ़वतें? उजरी काकी के सहर के पहिलका नागरिक बनते दिन पलट गइल, चीन्हलो बन्न क देले बाड़ी, सरकारी ऑफिस में बइठला में तौहीन बुझाये लागल, त केराया पर ऑफिस लियाइल बा। सरकारी ऑफिस में बइठ के गुलाबी कागज के पट्टी साटे में कुछ दिकत होत रहे। अब जवन पइसा सहर के विकास में लागे के चाहत रहे, उ पइसा केराया में जा रहल बा उहो केकरा जेब में, बूझत रहीं। अब गुलाबी पट्टियो सटला में कवनो दिकत नइखे। साटीं, साटीं, खूब साटीं, जइसे मोट परत भइल सूझल बन्न हो जाई, फेरु त मुँहकुरिये ढहा जाये से केहुओ नइखे बचा सकत।

            एह घरी मनराखन पांडे के नाकि के तागत ढेर बढि गइल बुझता, उहो सूंघ लीहलें आ भोरही से बउवाये लगलें। तनि हई देखS उजरी काकी के हो, ई त दोसरो के जमीन कब्जिया के ओहपर आपन मोहर लगावे खाति अकुलाइल बाड़ी। खाली मोहरे लागवे भर के बाति होखत तबो एगो बाति रहित। इहाँ त ओकरा के बेचे खाति पहिलही से रेहड़ी-पटरी वालन से बयाना अपने करिंदन से पकड़वा रहल बाड़ी।अरे भाई उ जगहिया त एगो मार्केट के पार्किंग खाति बा। फेरु उहाँ के लो आपन वाहन खड़ा करे खाति कहवाँ जइहें ? उनुका ई बुझाते नइखे। आ बुझइबो करी त कइसे बुझाई, ओहुओ में उनुका हिस्सा पहिलही से तय हो चुकल बा। अब अइसन कुछ होखी त मार्केट वाला लो स्टे लेबे करी त ओहमें गरीबे-गुरुबा नु पेराई। फेरु ओहनी के भरमा के आपन काम निकरिहें भा ओहनी उसुकइहें जवना से कि उहाँ के माहौल बाउर होखी। वाह रे ! सहर के पहिलका नागरिक उजरी काकी। सहर तहरा के पा के नीमन से अघा रहल बा हो।

            मनराखन के एगो चेला बतवलस कि अइसन खेला ई उजरी काकी एक-दू जगह आउर क चुकल बाड़ी। उजरी काकी के एगो करिंदा ह बखोरना। असल में एह कुल्हि में बखोरने के दिमाग चलेला। उ उजरी काकी के समुझा-बुझा के आ गुलाबी माला पहिरा के खूबे माल कमा चुकल बा। बखोरना उजरी काकी के संगे मिल के रेहड़ी पटरी वालन के बसावे के नाँव पर कियोस्क दोसरा के दिया गइल आ फेरु रेहड़ी-पटरी वालन से केराया असुला रहल बा। मने जियलका त छोड़े के नइखे मुअलको हजम करे के भरपूर इंतजाम। कुछ अइसने खेला इहवों खेले के फेरा में बखोरना उजरी काकी के मिला के क रहल बा। ई दूनों मिल के नगर आयुक्तों के लपेटले बाड़ें स। मने बनूक त एहनी के बा आ कन्हा सरकारी।मने उहो सहर का बीचो-बीच। मनराखन पांडे बेचारु ठीके नु क़हत बाड़ें 'बरियरा चोर सेंध में गावे'। ई कुल्हि खेला हरिनंदी के सहर में चल रहल बा। मने ऐतिहासिक नदी के सहर के ऐतिहासिक खेला। जय हो बाबा दूधेश्वर नाथ के, रउवो साक्षी बानी। हमनी का संगे रउवो खेला देखीं ए बाबा।   

 

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता                         

Thursday, October 21, 2021

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर

 संसार मे अइसन कम लोग होखेला,जेकरा हाथ से कीर्ति काम  होला।कुआँ ,पोखरा,मंदिर,विद्यालय आदि बनवावल सबका कल्याण खातिर होला।भगवान जेकरा हाथे सब करावल चाहेंल,उहइ अइसन कुल काम करे बदे अग्रसर होखेला।ओहि के जीवन मे ख्याति मिलइले,ओकर लोक परलोक संवर जाला।धन दौलत बहुत लोगन के पास होखेला,बाकी कुल काम खातिर भुलाइके भी ना सोंचेला अइसने कीर्ति स्थापना करावे बदे भगवान पूज्य बड़े पिताजी के अपना निमित्त बनउल।उनका हाथ से श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर निर्माण पंच देवन स्थापना हो गइल। किशोरावस्था मा बड़का बाबूजी बाबूजी दूनौ जने मिलके इतना बड़ कीर्तिमान स्थापित कई दिहलस।सुबह शाम पूजा भोग आरती,साल भर मा होखे वाला भगवदीय उत्सवन के मनावल उनका दिनचर्या बन गइल।

बंश कीर्ति बढावेवाली, अच्छा संस्कार देवे वाली,सुख समृद्धि,आरोग्यता प्रदान करे वाली सुकृति पूरा प्रभाव हमरा जीवन पर पड़ल।जीविकोपार्जन खातिर अर्थ प्रदान करे वाली पद प्रतिष्ठा हमरा के मिलल,एकरा   अलावे भगवान हमका अइसन सद्गुण दिहलें जवना से खुद आनंदित रहि के दूसरे लोगन के भी आनंद दे रहल बानी मैया सरस्वती महान कृपा बा।सारस्वत वैभव हमरा के संस्कार में मिलल बा।परिणामस्वरूप श्री ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर स्थापना आउर वर्ष पर्यंत होवे वाला उत्सवन पर प्रकाश डाले वाली रचना हमरा मानस पटल मा समाइल उभर के एक लघु पुस्तक रूप ले लिहलस।एक रा प्रकाशित करावे मुख्य उद्देश्य केवल बस केवल बनशानुगत एकर अनुकरण हॉट रहे।अगली पीढ़ी एके जाने,संस्कार मा उतारे, आजीवन निर्वाह करत रहे,इह सार्थक प्रयास बा।येहि मा अपनो जीवन सफलता बाटे।

उल्लेख

बैसाख शुक्ल सप्तमी दिन शनिवार,तदनुसार दिनांक 25 अप्रैल 2015,दोपहर समय रहल,मन मा भाव जागल कि श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर स्थापना उत्सव चित्रण आपन  रचना के माध्यम से कइल जाय।जैसई कलम उठल श्री गणेशाय नमः लिखाइल,ठीक ओहि समय 11: 45 बजत रहल कि भूकंप गइल।मन कांप उठल,तन सिहर गइल।मन मा अनेक भाव उठै लागल।भगवान शिव कृपा मानके लिखल शुरू कइली।कुछ प्रारंभिक अंश इहां उद्धृत कइल जात बा, जवना से रउवा सभे के जानकारी होई।नीचे लिखल जरूर पढ़ीं---

दोहा

उन्नीस सौ पंचानबे संबत माधव मास।

शुक्ल पक्ष तिथि सप्तमी,भृगुवासर दिन खास।।1।।

पार्वती शिव साथ मे श्री गणेश हनुमान।

सिंहासन पर राजते शालिग्राम भगवान।।2।।

प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण कर,नन्हकू जोड़े हाथ।

मंदिर की स्थापना श्री ब्रह्मेश्वरनाथ।।3।।

ग्राम बरहुंआ में बसा दूबे बंश महान।

है चकिया तहसील में जिला चंदौली जान।।4।।

नन्हकू पुरुसोत्तम  हुये, रामसकल सुत श्रेष्ठ।

दूबे पुरुषोत्तम अनुज नन्हकू भ्राता ज्येष्ठ।।5।।

पूर्ण हुई मनकामना दोनों के हिय हर्ष।

सदा मनाते रहे यह उत्सव प्रतिवर्ष।।6।।

नित्य नियम से अर्चना, सुबह शाम का भोग।

संध्या वंदन आरती करती सदा निरोग।।7।।

धन्य हुआ कुल आपका कीर्ति हुई ललाम।

पूज्य पिता के चरण को छूकर करूँ  प्रणाम।।8।।

अकस्मात इच्छा हुई मन मै उठा तरंग।

कांप उठी धरती सकळ, फड़क उठे सब अंग।।9।।

यह कैसा संकेत है मन मे प्रश्न अनेक।

अंदर से उत्तर मिला,शिव का शुभ  अभिषेक।।10।।

पुलक प्रकट धरती समझ,शारद का वरदान।

लाल भाल में चल पड़ी,रचना यह अनजान।।11।।

छंद:--अनजान यह रचना सुखद,शुभ कीर्ति मंगलदायिनी।

प्रभु आशुतोष भरोस करि,पायो भगति अनपायिनी।।

शिव भजन सेवा यजन में,बचपन से मन रमता रहा।

कुल कीर्ति का यह विशद यश,यह दास कछु गायन चहा।।

सोरठा:---

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर यह सुंदर सुखद।

करौं विशद गुन गाथ,माथ नाइ कर जोरि करि।।

भौगोलिक स्थिति

सुरम्य वनस्थली जहाँ प्रकृतिं मनोरम छटा बिखेर रहल बा,अइसने सुघर उपत्यका में हमार गाँव बरहूँआ जवने नाम ब्रह्मपुर भी बाटे बसल ह। जिला चंदौली चकिया तहसील जहवाँ चकिया से इलिया तक पक्की सड़क बनल बा,जवन बिहार तक गइल बा,चकिया से पूरब 4कि0मी0 दूर पर लबे रोड पर गाँव पड़ेला।इहां से रचिके दूर लतीफशाह बांध बाटे,जवना से नहर जाल बिछल बा।इहाँ के धरती शस्य स्यामला बाटे।कर्मनाशा नदी भी बह रहल बा,जवने से लाख लाख आबादी भरण पोषण होइ रहल बा,एसे एकर पौराणिक नाम कुकर्म नाशा बाटे।दक्षिण और गोलवा अउर देवरी पहाड़ खड़ा बा। इहाँ हमनी पुरखा पुरनिया पवनी परजुनियाँ संग लइके कांतिथ मिर्जापुर जहवाँ परवा गॉंव बाटे उहवें से आके बसलन,येहि से हमनी के परवा दूबे कहैल।

येहि कुल मा श्रीमान बद्री दूबे भइलन,उनका पुत्र श्री रामसकल दूबे दुइगो संतान भइलें।जेठरा श्री नन्हकू दूबे,लहुरा श्री पुरुषोत्तम दूबे।जेठरा  पुत्र बचपन से ही साधु स्वभाव वाला, पूजा पाठ मा विशेष रुचि रखे वाला रहलें।अपना शादी विवाह ना कइलें।पुरुषोत्तम दूबे दुइगो पुत्र हमनी हीरालाल द्विवेदी ,अमरनाथ द्विवेदी बानी जा।

बड़का बाबूजी प्रबल इच्छा भइल कि अपना गृह परिसर में भगवान शंकर जी मंदिर बनवाईब।सच्ची लगन अउर दृढ़ संकल्प परिणाम भइल कि जवानी में ही प्राण प्रण से लागिके निर्माण सामग्री,ढोका पत्थर पटिया गाटर जुटावे शुरू कइले आउर मिस्त्री मजदूर युद्ध स्तर पर लगा के जबले मंदिर बनवा नाही लिहेस सांस ना लिहल।पूरा पत्थर पहाड़ घरहि मा गंज गइल।उनका मुँह से सुनले बानी कि जब पत्थर परमिट करावे जांय अधिकारी लोग कहें कि पंडित जी खूब ढोई आपके कौनो रोक ना बाटे।कोई पकड़े कह देईं ,जवन हनुमानजी कहले रहलें।

*मोहि नाही बाँधे कर लाजा।

कीन्ह चहउँ मैं प्रभु कर काजा।।*

मेहनत अइसन रंग लियाईल कि मंदिर ,चारी ओर ओसारी आगे चौतरा सुंदर बनकर तैयार हो गइल। फिर मूर्ति मगावल गइल,हनुमान जी मूर्ति बड़ सा शिलाखंड में गढ़ल गइल।ओह जमाने मे बनारस से कारीगर मूर्ति उकेरे ऑइल रहें। गर्भगृह मा षट्कोणीय अरघा बनल जवना मा शिव लिंग स्थापित भइल।ऊंची चौकी पर सिंहासन मा शालिग्राम,श्री हनुमान जी,पार्वती अम्बा आउर गणेशजी मूर्ति पधरावल गइल।अरघा के सामने नंदी जी बैठावल गइल।दूर दूर से प्रकांड कर्मकांड के विद्वान बुलवा के षोड्सोपचार विधिवत पूजन संकल्प दुनो भाई लिहल,फिर बिधि बिधान से स्थापना सम्पन्न भइल।प्राण प्रतिष्ठा के बाद कुल गुरू महाराज रुद्राष्टक स्तुति कइलें,आउर नित्य इहे स्तुति गावे गुरु मंत्र दिहेस।एकर उद्धरण" उत्सव प्रकाश" से देखीं सभे:---

चौपाई:--ब्रह्मपुरी यह मंदिर सोहा।

नाथ ब्रह्मेश्वर छबि मन मोहा।।

अरघा अति सुंदर पाषाना।

षष्ठपहल षटकोण विधना।।

बाम भाग गिरिजा गृह सोहा।

मूरति मधुर लेत मन मोहा।।

जय जय जय जगदम्ब भवानी।

महिमा जासु जाई बखानी।।

श्री गणेश तेहि निकट विराजें।

मंगल मूरति सिन्धुर साजें।।

अरघा मध्य सोह शिव लिंगा।

जल टपकत तब उठत तरंगा।।

डमरू और त्रिशूल सुहावा।

नंदी नित शिव दर्शन पावा।।

सिंहासन अति दिव्य मनोहर।

शालिग्राम प्रभु राजत ऊपर।।

तेहि समीप ठाढ़े हनुमाना।

रुद्र रूप शंकर भगवाना।।

दोहा:-^--

प्रनवउँ पवनकुमार प्रभु इष्टदेव हनुमान।

करहुँ सदा मंगल सबहि" लालदास "के प्रान।।

बाबूजी दृढ़ संकल्प पूरा भइल।भगवान शिव नाम श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जइसन आख्या से संबोधित कइल गइल।ओहि समय संबत 1995 चलत रहल।बैसाख महीना शुक्ल पक्ष सप्तमी दिन शुक्रवार रहल।येहि शुभ मुहूर्त में स्थापना महोत्सव सम्पन्न भइल।आज  संबत 2078 चल रहल बा।एकर मतलब मंदिर बनले कुल 83 बरिश बीत गइल। बाबूजी लोगन के स्वर्गवासी भइलें भी लगभग 42- 43 साल हो गइल।मंदिर ओसारी मा शिलालेख लगल बा।दो पत्थर जवना पर संस्कृत भाषा आउर हिंदी मे लिखावट बाटे।संस्कृत श्लोक हमनी पूर्वज रामस्वरूप  दूबे जी रचले  रहलें, अइसन सुने में आवेला।।

शिलालेख छाया चित्र नीचे देखीं सभे:---

तब से लइके आज ले मंदिर स्थापना दिवस वार्षिकोत्सव रूप में मनावल जात बा।जब ले लोग I रहन धूम धाम से मनावत रहें,उनका बाद हमनी मनावत आवत बाटी।ब्रह्मेश्वरनाथ कृपा बाबूजी पूण्य दूनों मिलल हम इंजीनियर पद पर सरकारी सेवा मा नियुक्त भइली। मंदिर जीर्णोद्धार करवली,बड़ा सा हाल बनवली ।श्री हनुमानजी जन्मोत्सव कार्तिक महीना में दीपावली पर बड़े धूम धाम से मनल। मानस पाठ, प्रवचन,संगीत आउर कविसम्मेलन तीन दिन बृहद कार्यक्रम भइल।दूर दूर से आके नामचीन कलाकार भाग लिहलें।कई साल ले आयोजन  खूब सुघर भइल।"उत्सव प्रकाश" मा एकर एक झलक देखी सभे:---

छंद :--

कार्तिक चतुर्दशी कृष्ण की,प्रतिबर्ष जब जब आवहीँ।

अति हर्ष अरु उल्लास से हनुमज्जयन्ति मना वहीं।।

करि विविध भाँती सृंगार पूजा भोर आरति गावहीं।

संगीतमय मानस परायण करहिं पाठ सुनावहीं।।

दोहा :----मानस पाठ अखंड करि गावहिं मंगल साज।

अहो रात्रि का जागरण करता विप्र समाज।।

चौपाई

प्रति संबत अस होइ अनंदा।

जूटहिं  बहु गायक कवि वृंदा।।

गायक दिन संगीत सुनावहि।

सकल ग्राम बासी सुख पावहिं।।

रात होइ जब कवि सम्मेलन।

कवि रचना सुनि सुनि विहँसे जन।।

हास्य व्यंग के छंद सुनाते।

गीत गजल सबके मन भाते।।

मुक्तक चार चारू कवि देता।

भोजपुरी पुनि मन हर लेता।।

जन्म महोत्सव सोहर गावहि।

प्रभु पद पंकज शीस नवावहि।।

जिन्ह कर रचना अधिक सराही।

बार बार ते अवसर पाहीं।।

संतत बहइ काव्य के धारा।

कहत सुनत होइहिं भिनुसारा।।

दोहा:---

त्रय दिवसी यह कार्यक्रम होइ रहे हर साल।

"लालदास "को सुख मिले, पुरजन होत निहाल।।

शिव रात पर्व जब आवेला ब्रह्मेश्वरनाथ खूब प्राकृतिक श्रृंगार कइल जाला। बाबा विवाह होखेला,रामायण गवाला।"उत्सव प्रकाश" से एगो सुघर छंद मा चित्रण देखीं:--

छंद :---

माथे महामनि मौर राजत, बौर जौ बाली भली।

बिच बीच कुसुम धतूर के,मंदार कुसुमंन के कली।।

भस्मी विराजत अंग पर,सिर सोह गंगा निर्मली।

शिव बाम भाग विराज गौरी हिम सहित मैना लली।।

करि धूप दीप अनेक विधि,नैवेद्य विविध लगावहीँ।

आरति एकादश वर्तिका सजि करत अति सुख पावहीं।।

एहि भाँति पाणिग्रहण के शुभ साज सकल जुटावहीँ।

शंकर विवाह सजाई मंदिर,"लालदास" रचावहीँ।।

दोहा:--

फागुन कृष्ण त्रयोदशी कहें जिसे शिव रात।

प्रति संबत उत्सव करहिं,हर्षित पुलकित गात।।

हमार आगिल पीढ़ी भी इहे संस्कार पवले बा।उहो लोग अपने कमाई से मंदिर गर्भ गृह सुघर सङ्गमर्मर पत्थर लगवा के  खूब सूरत बनवा दिहलें। साथे साथे लागि के सब त्यौहार पर गाँव जालें ,बड़का लड़िका खूब मन लागेला। हमार उत्साह बढ़ावत रहेंल।मन लगा के मेहनत कइके हमार लिखल रचना भी प्रकाशित करावत रहेल।अब हमनी के काशी में रहिला नित्य नियम से पूजा  करे खातिर एगो पुजारी नियुक्त कइल बाटे, जवन सुबह शाम राग भोग कै रहल बाटें।उनका महीनवारी पगार दिहल जाला।

भगवान श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जी कृपा हमनी के पूरे परिवार पर बरिश रहल बा।सब सुखी सम्पन्न बाटे।कुलिये त्यौहार पर टोला बड़ छोट सबही शामिल होला, मिलजुल के गाई बजाई,भरपूर आनंद उठावेला।।

एह बार मंदिर वार्षिक श्रृंगार करइ खातिर जब गॉंव गइली उत्सव प्रकाश से स्थापना के विषय मे कुछ रचना फेसबुक पर डाल दिहलीं, जवना के पढ़ी के हमरे परिवार के छोट भाई जवन भोजपुरी साहित्य में लब्ध प्रतिष्ठित बाटें, हालइ में भिखारी ठाकुर सम्मान से सम्मानित कइल गइल ,जयशंकर बाबू बहुत खुश भइलें। हमरा के बिचार दिहलें कि भैया श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर के संस्मरण प्रकाशित होखे के चाही,रउवा एकरा के विस्तार देहीं।आज जे पी द्विवेदी के ,के नइखे जानत,उनके सत्प्रेरणा से हम संस्मरण लिखली ताकि अगली पीढ़ी ओके पढ़े  जाने समझे परिवार में संस्कार बनल रहे। एह विषय मा हम से उनका घंटा भर फोन पर बात बिचार भइल,अपना  धरोहर के उजागर करे बड़ ललक उनका मन मे भरल बा। हम उनके एह भावना कदर करत बानी बहुत बहुत धन्यबाद देत बानी।

हमरे कुल में एक से बढ़िके एक विद्वान कर्मकांडी कथाकार संगीतकार, कवि आलोचक रहल बानी,आज भी बाटें।ई माटी विद्वान कवि कोविद कलाकारन के जननी बा।हमका विश्वास बा कि अगिली पीढ़ी भी अपना धरोहर उजागर करी,पुरखन के कीर्ति मा चार चाँद लगाई।संतान उहे धन्य होले जवन अपने कुल के कीर्ति आगे बढ़ावत रहे।जइसन की बाबा तुलसीदास अपना  "रामचरितमानस '"मा उत्तर कांड में लिखले बान:--

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।

श्री रघुबीर परायन ,जेहि कुल उपज विनीत।। दोहा संख्या:127

 गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहले बानी:--

" जातो येन जातेन जाति बंशः समुन्नति

अब  अंत मा श्रुति फल के रूप मे भगवान श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जी से प्रार्थना कइले बानी कि अइसही  हमरे परिवार सब लोग उनका सेवा मा लागिके निरंतर सुखी रहस।।

दोहा:--

सम्मिलित संध्या आरती,नित्य चरन चित देहिं।

चरनामृत का पान करि बाल भोग जे लेहिं।।

तिन्ह के गृह सुख संपदा ,सदा होहि शुभ कर्म।

रहित ताप संताप से,सहित सबहिं सदधर्म।।

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ के मंदिर उत्सव गान।

"लालदास "रचना सुखद करहिं श्रवन पुट पान।।

गृह परिसर में "लाल" के शिव मंदिर विख्यात।

नारी सुत बांधव सहित भजन करौं दिनरात।।

इति शुभम


हीरालाल द्विवेदी "लाल"

ग्राम -बरहूँआ  पो0- सैदुपुर ,चकिया,चन्दौली।उ0प्र0