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Thursday, October 21, 2021

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर

 संसार मे अइसन कम लोग होखेला,जेकरा हाथ से कीर्ति काम  होला।कुआँ ,पोखरा,मंदिर,विद्यालय आदि बनवावल सबका कल्याण खातिर होला।भगवान जेकरा हाथे सब करावल चाहेंल,उहइ अइसन कुल काम करे बदे अग्रसर होखेला।ओहि के जीवन मे ख्याति मिलइले,ओकर लोक परलोक संवर जाला।धन दौलत बहुत लोगन के पास होखेला,बाकी कुल काम खातिर भुलाइके भी ना सोंचेला अइसने कीर्ति स्थापना करावे बदे भगवान पूज्य बड़े पिताजी के अपना निमित्त बनउल।उनका हाथ से श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर निर्माण पंच देवन स्थापना हो गइल। किशोरावस्था मा बड़का बाबूजी बाबूजी दूनौ जने मिलके इतना बड़ कीर्तिमान स्थापित कई दिहलस।सुबह शाम पूजा भोग आरती,साल भर मा होखे वाला भगवदीय उत्सवन के मनावल उनका दिनचर्या बन गइल।

बंश कीर्ति बढावेवाली, अच्छा संस्कार देवे वाली,सुख समृद्धि,आरोग्यता प्रदान करे वाली सुकृति पूरा प्रभाव हमरा जीवन पर पड़ल।जीविकोपार्जन खातिर अर्थ प्रदान करे वाली पद प्रतिष्ठा हमरा के मिलल,एकरा   अलावे भगवान हमका अइसन सद्गुण दिहलें जवना से खुद आनंदित रहि के दूसरे लोगन के भी आनंद दे रहल बानी मैया सरस्वती महान कृपा बा।सारस्वत वैभव हमरा के संस्कार में मिलल बा।परिणामस्वरूप श्री ब्रह्मेश्वर नाथ मंदिर स्थापना आउर वर्ष पर्यंत होवे वाला उत्सवन पर प्रकाश डाले वाली रचना हमरा मानस पटल मा समाइल उभर के एक लघु पुस्तक रूप ले लिहलस।एक रा प्रकाशित करावे मुख्य उद्देश्य केवल बस केवल बनशानुगत एकर अनुकरण हॉट रहे।अगली पीढ़ी एके जाने,संस्कार मा उतारे, आजीवन निर्वाह करत रहे,इह सार्थक प्रयास बा।येहि मा अपनो जीवन सफलता बाटे।

उल्लेख

बैसाख शुक्ल सप्तमी दिन शनिवार,तदनुसार दिनांक 25 अप्रैल 2015,दोपहर समय रहल,मन मा भाव जागल कि श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर स्थापना उत्सव चित्रण आपन  रचना के माध्यम से कइल जाय।जैसई कलम उठल श्री गणेशाय नमः लिखाइल,ठीक ओहि समय 11: 45 बजत रहल कि भूकंप गइल।मन कांप उठल,तन सिहर गइल।मन मा अनेक भाव उठै लागल।भगवान शिव कृपा मानके लिखल शुरू कइली।कुछ प्रारंभिक अंश इहां उद्धृत कइल जात बा, जवना से रउवा सभे के जानकारी होई।नीचे लिखल जरूर पढ़ीं---

दोहा

उन्नीस सौ पंचानबे संबत माधव मास।

शुक्ल पक्ष तिथि सप्तमी,भृगुवासर दिन खास।।1।।

पार्वती शिव साथ मे श्री गणेश हनुमान।

सिंहासन पर राजते शालिग्राम भगवान।।2।।

प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण कर,नन्हकू जोड़े हाथ।

मंदिर की स्थापना श्री ब्रह्मेश्वरनाथ।।3।।

ग्राम बरहुंआ में बसा दूबे बंश महान।

है चकिया तहसील में जिला चंदौली जान।।4।।

नन्हकू पुरुसोत्तम  हुये, रामसकल सुत श्रेष्ठ।

दूबे पुरुषोत्तम अनुज नन्हकू भ्राता ज्येष्ठ।।5।।

पूर्ण हुई मनकामना दोनों के हिय हर्ष।

सदा मनाते रहे यह उत्सव प्रतिवर्ष।।6।।

नित्य नियम से अर्चना, सुबह शाम का भोग।

संध्या वंदन आरती करती सदा निरोग।।7।।

धन्य हुआ कुल आपका कीर्ति हुई ललाम।

पूज्य पिता के चरण को छूकर करूँ  प्रणाम।।8।।

अकस्मात इच्छा हुई मन मै उठा तरंग।

कांप उठी धरती सकळ, फड़क उठे सब अंग।।9।।

यह कैसा संकेत है मन मे प्रश्न अनेक।

अंदर से उत्तर मिला,शिव का शुभ  अभिषेक।।10।।

पुलक प्रकट धरती समझ,शारद का वरदान।

लाल भाल में चल पड़ी,रचना यह अनजान।।11।।

छंद:--अनजान यह रचना सुखद,शुभ कीर्ति मंगलदायिनी।

प्रभु आशुतोष भरोस करि,पायो भगति अनपायिनी।।

शिव भजन सेवा यजन में,बचपन से मन रमता रहा।

कुल कीर्ति का यह विशद यश,यह दास कछु गायन चहा।।

सोरठा:---

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर यह सुंदर सुखद।

करौं विशद गुन गाथ,माथ नाइ कर जोरि करि।।

भौगोलिक स्थिति

सुरम्य वनस्थली जहाँ प्रकृतिं मनोरम छटा बिखेर रहल बा,अइसने सुघर उपत्यका में हमार गाँव बरहूँआ जवने नाम ब्रह्मपुर भी बाटे बसल ह। जिला चंदौली चकिया तहसील जहवाँ चकिया से इलिया तक पक्की सड़क बनल बा,जवन बिहार तक गइल बा,चकिया से पूरब 4कि0मी0 दूर पर लबे रोड पर गाँव पड़ेला।इहां से रचिके दूर लतीफशाह बांध बाटे,जवना से नहर जाल बिछल बा।इहाँ के धरती शस्य स्यामला बाटे।कर्मनाशा नदी भी बह रहल बा,जवने से लाख लाख आबादी भरण पोषण होइ रहल बा,एसे एकर पौराणिक नाम कुकर्म नाशा बाटे।दक्षिण और गोलवा अउर देवरी पहाड़ खड़ा बा। इहाँ हमनी पुरखा पुरनिया पवनी परजुनियाँ संग लइके कांतिथ मिर्जापुर जहवाँ परवा गॉंव बाटे उहवें से आके बसलन,येहि से हमनी के परवा दूबे कहैल।

येहि कुल मा श्रीमान बद्री दूबे भइलन,उनका पुत्र श्री रामसकल दूबे दुइगो संतान भइलें।जेठरा श्री नन्हकू दूबे,लहुरा श्री पुरुषोत्तम दूबे।जेठरा  पुत्र बचपन से ही साधु स्वभाव वाला, पूजा पाठ मा विशेष रुचि रखे वाला रहलें।अपना शादी विवाह ना कइलें।पुरुषोत्तम दूबे दुइगो पुत्र हमनी हीरालाल द्विवेदी ,अमरनाथ द्विवेदी बानी जा।

बड़का बाबूजी प्रबल इच्छा भइल कि अपना गृह परिसर में भगवान शंकर जी मंदिर बनवाईब।सच्ची लगन अउर दृढ़ संकल्प परिणाम भइल कि जवानी में ही प्राण प्रण से लागिके निर्माण सामग्री,ढोका पत्थर पटिया गाटर जुटावे शुरू कइले आउर मिस्त्री मजदूर युद्ध स्तर पर लगा के जबले मंदिर बनवा नाही लिहेस सांस ना लिहल।पूरा पत्थर पहाड़ घरहि मा गंज गइल।उनका मुँह से सुनले बानी कि जब पत्थर परमिट करावे जांय अधिकारी लोग कहें कि पंडित जी खूब ढोई आपके कौनो रोक ना बाटे।कोई पकड़े कह देईं ,जवन हनुमानजी कहले रहलें।

*मोहि नाही बाँधे कर लाजा।

कीन्ह चहउँ मैं प्रभु कर काजा।।*

मेहनत अइसन रंग लियाईल कि मंदिर ,चारी ओर ओसारी आगे चौतरा सुंदर बनकर तैयार हो गइल। फिर मूर्ति मगावल गइल,हनुमान जी मूर्ति बड़ सा शिलाखंड में गढ़ल गइल।ओह जमाने मे बनारस से कारीगर मूर्ति उकेरे ऑइल रहें। गर्भगृह मा षट्कोणीय अरघा बनल जवना मा शिव लिंग स्थापित भइल।ऊंची चौकी पर सिंहासन मा शालिग्राम,श्री हनुमान जी,पार्वती अम्बा आउर गणेशजी मूर्ति पधरावल गइल।अरघा के सामने नंदी जी बैठावल गइल।दूर दूर से प्रकांड कर्मकांड के विद्वान बुलवा के षोड्सोपचार विधिवत पूजन संकल्प दुनो भाई लिहल,फिर बिधि बिधान से स्थापना सम्पन्न भइल।प्राण प्रतिष्ठा के बाद कुल गुरू महाराज रुद्राष्टक स्तुति कइलें,आउर नित्य इहे स्तुति गावे गुरु मंत्र दिहेस।एकर उद्धरण" उत्सव प्रकाश" से देखीं सभे:---

चौपाई:--ब्रह्मपुरी यह मंदिर सोहा।

नाथ ब्रह्मेश्वर छबि मन मोहा।।

अरघा अति सुंदर पाषाना।

षष्ठपहल षटकोण विधना।।

बाम भाग गिरिजा गृह सोहा।

मूरति मधुर लेत मन मोहा।।

जय जय जय जगदम्ब भवानी।

महिमा जासु जाई बखानी।।

श्री गणेश तेहि निकट विराजें।

मंगल मूरति सिन्धुर साजें।।

अरघा मध्य सोह शिव लिंगा।

जल टपकत तब उठत तरंगा।।

डमरू और त्रिशूल सुहावा।

नंदी नित शिव दर्शन पावा।।

सिंहासन अति दिव्य मनोहर।

शालिग्राम प्रभु राजत ऊपर।।

तेहि समीप ठाढ़े हनुमाना।

रुद्र रूप शंकर भगवाना।।

दोहा:-^--

प्रनवउँ पवनकुमार प्रभु इष्टदेव हनुमान।

करहुँ सदा मंगल सबहि" लालदास "के प्रान।।

बाबूजी दृढ़ संकल्प पूरा भइल।भगवान शिव नाम श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जइसन आख्या से संबोधित कइल गइल।ओहि समय संबत 1995 चलत रहल।बैसाख महीना शुक्ल पक्ष सप्तमी दिन शुक्रवार रहल।येहि शुभ मुहूर्त में स्थापना महोत्सव सम्पन्न भइल।आज  संबत 2078 चल रहल बा।एकर मतलब मंदिर बनले कुल 83 बरिश बीत गइल। बाबूजी लोगन के स्वर्गवासी भइलें भी लगभग 42- 43 साल हो गइल।मंदिर ओसारी मा शिलालेख लगल बा।दो पत्थर जवना पर संस्कृत भाषा आउर हिंदी मे लिखावट बाटे।संस्कृत श्लोक हमनी पूर्वज रामस्वरूप  दूबे जी रचले  रहलें, अइसन सुने में आवेला।।

शिलालेख छाया चित्र नीचे देखीं सभे:---

तब से लइके आज ले मंदिर स्थापना दिवस वार्षिकोत्सव रूप में मनावल जात बा।जब ले लोग I रहन धूम धाम से मनावत रहें,उनका बाद हमनी मनावत आवत बाटी।ब्रह्मेश्वरनाथ कृपा बाबूजी पूण्य दूनों मिलल हम इंजीनियर पद पर सरकारी सेवा मा नियुक्त भइली। मंदिर जीर्णोद्धार करवली,बड़ा सा हाल बनवली ।श्री हनुमानजी जन्मोत्सव कार्तिक महीना में दीपावली पर बड़े धूम धाम से मनल। मानस पाठ, प्रवचन,संगीत आउर कविसम्मेलन तीन दिन बृहद कार्यक्रम भइल।दूर दूर से आके नामचीन कलाकार भाग लिहलें।कई साल ले आयोजन  खूब सुघर भइल।"उत्सव प्रकाश" मा एकर एक झलक देखी सभे:---

छंद :--

कार्तिक चतुर्दशी कृष्ण की,प्रतिबर्ष जब जब आवहीँ।

अति हर्ष अरु उल्लास से हनुमज्जयन्ति मना वहीं।।

करि विविध भाँती सृंगार पूजा भोर आरति गावहीं।

संगीतमय मानस परायण करहिं पाठ सुनावहीं।।

दोहा :----मानस पाठ अखंड करि गावहिं मंगल साज।

अहो रात्रि का जागरण करता विप्र समाज।।

चौपाई

प्रति संबत अस होइ अनंदा।

जूटहिं  बहु गायक कवि वृंदा।।

गायक दिन संगीत सुनावहि।

सकल ग्राम बासी सुख पावहिं।।

रात होइ जब कवि सम्मेलन।

कवि रचना सुनि सुनि विहँसे जन।।

हास्य व्यंग के छंद सुनाते।

गीत गजल सबके मन भाते।।

मुक्तक चार चारू कवि देता।

भोजपुरी पुनि मन हर लेता।।

जन्म महोत्सव सोहर गावहि।

प्रभु पद पंकज शीस नवावहि।।

जिन्ह कर रचना अधिक सराही।

बार बार ते अवसर पाहीं।।

संतत बहइ काव्य के धारा।

कहत सुनत होइहिं भिनुसारा।।

दोहा:---

त्रय दिवसी यह कार्यक्रम होइ रहे हर साल।

"लालदास "को सुख मिले, पुरजन होत निहाल।।

शिव रात पर्व जब आवेला ब्रह्मेश्वरनाथ खूब प्राकृतिक श्रृंगार कइल जाला। बाबा विवाह होखेला,रामायण गवाला।"उत्सव प्रकाश" से एगो सुघर छंद मा चित्रण देखीं:--

छंद :---

माथे महामनि मौर राजत, बौर जौ बाली भली।

बिच बीच कुसुम धतूर के,मंदार कुसुमंन के कली।।

भस्मी विराजत अंग पर,सिर सोह गंगा निर्मली।

शिव बाम भाग विराज गौरी हिम सहित मैना लली।।

करि धूप दीप अनेक विधि,नैवेद्य विविध लगावहीँ।

आरति एकादश वर्तिका सजि करत अति सुख पावहीं।।

एहि भाँति पाणिग्रहण के शुभ साज सकल जुटावहीँ।

शंकर विवाह सजाई मंदिर,"लालदास" रचावहीँ।।

दोहा:--

फागुन कृष्ण त्रयोदशी कहें जिसे शिव रात।

प्रति संबत उत्सव करहिं,हर्षित पुलकित गात।।

हमार आगिल पीढ़ी भी इहे संस्कार पवले बा।उहो लोग अपने कमाई से मंदिर गर्भ गृह सुघर सङ्गमर्मर पत्थर लगवा के  खूब सूरत बनवा दिहलें। साथे साथे लागि के सब त्यौहार पर गाँव जालें ,बड़का लड़िका खूब मन लागेला। हमार उत्साह बढ़ावत रहेंल।मन लगा के मेहनत कइके हमार लिखल रचना भी प्रकाशित करावत रहेल।अब हमनी के काशी में रहिला नित्य नियम से पूजा  करे खातिर एगो पुजारी नियुक्त कइल बाटे, जवन सुबह शाम राग भोग कै रहल बाटें।उनका महीनवारी पगार दिहल जाला।

भगवान श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जी कृपा हमनी के पूरे परिवार पर बरिश रहल बा।सब सुखी सम्पन्न बाटे।कुलिये त्यौहार पर टोला बड़ छोट सबही शामिल होला, मिलजुल के गाई बजाई,भरपूर आनंद उठावेला।।

एह बार मंदिर वार्षिक श्रृंगार करइ खातिर जब गॉंव गइली उत्सव प्रकाश से स्थापना के विषय मे कुछ रचना फेसबुक पर डाल दिहलीं, जवना के पढ़ी के हमरे परिवार के छोट भाई जवन भोजपुरी साहित्य में लब्ध प्रतिष्ठित बाटें, हालइ में भिखारी ठाकुर सम्मान से सम्मानित कइल गइल ,जयशंकर बाबू बहुत खुश भइलें। हमरा के बिचार दिहलें कि भैया श्री ब्रह्मेश्वरनाथ मंदिर के संस्मरण प्रकाशित होखे के चाही,रउवा एकरा के विस्तार देहीं।आज जे पी द्विवेदी के ,के नइखे जानत,उनके सत्प्रेरणा से हम संस्मरण लिखली ताकि अगली पीढ़ी ओके पढ़े  जाने समझे परिवार में संस्कार बनल रहे। एह विषय मा हम से उनका घंटा भर फोन पर बात बिचार भइल,अपना  धरोहर के उजागर करे बड़ ललक उनका मन मे भरल बा। हम उनके एह भावना कदर करत बानी बहुत बहुत धन्यबाद देत बानी।

हमरे कुल में एक से बढ़िके एक विद्वान कर्मकांडी कथाकार संगीतकार, कवि आलोचक रहल बानी,आज भी बाटें।ई माटी विद्वान कवि कोविद कलाकारन के जननी बा।हमका विश्वास बा कि अगिली पीढ़ी भी अपना धरोहर उजागर करी,पुरखन के कीर्ति मा चार चाँद लगाई।संतान उहे धन्य होले जवन अपने कुल के कीर्ति आगे बढ़ावत रहे।जइसन की बाबा तुलसीदास अपना  "रामचरितमानस '"मा उत्तर कांड में लिखले बान:--

सो कुल धन्य उमा सुनु जगत पूज्य सुपुनीत।

श्री रघुबीर परायन ,जेहि कुल उपज विनीत।। दोहा संख्या:127

 गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कहले बानी:--

" जातो येन जातेन जाति बंशः समुन्नति

अब  अंत मा श्रुति फल के रूप मे भगवान श्री ब्रह्मेश्वरनाथ जी से प्रार्थना कइले बानी कि अइसही  हमरे परिवार सब लोग उनका सेवा मा लागिके निरंतर सुखी रहस।।

दोहा:--

सम्मिलित संध्या आरती,नित्य चरन चित देहिं।

चरनामृत का पान करि बाल भोग जे लेहिं।।

तिन्ह के गृह सुख संपदा ,सदा होहि शुभ कर्म।

रहित ताप संताप से,सहित सबहिं सदधर्म।।

श्री ब्रह्मेश्वरनाथ के मंदिर उत्सव गान।

"लालदास "रचना सुखद करहिं श्रवन पुट पान।।

गृह परिसर में "लाल" के शिव मंदिर विख्यात।

नारी सुत बांधव सहित भजन करौं दिनरात।।

इति शुभम


हीरालाल द्विवेदी "लाल"

ग्राम -बरहूँआ  पो0- सैदुपुर ,चकिया,चन्दौली।उ0प्र0

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