भरल दुपहरी,छुटल कचहरी
अचके काहें टुटल सिकहरी
बबुआ दुअरे बाड़न ठाढ़।
निकसल नाही अक्कल दाढ़॥
जेकर नावें छुटत
पसीना
थथमल काहें चाकर सीना
देखS दुसमन रहल दहाड़।
निकसल नाही अक्कल दाढ़॥
रावत कब दुसमन के भावत
उनुका तिनगी नाच नचावत
घात भइल ले घर के आड़।
निकसल नाही अक्कल दाढ़॥
भित्तरघात भइल होखे जे
आपन उहाँ जुड़ल होखे जे
घर के होखे, भेज
तिहाड़।
निकसल नाही अक्कल दाढ़॥
सेना के जे दिहल
चुनौती
उनुकर सगरे पुरल मनौती
बहरे उनुका, सोर
उखाड़।
निकसल नाही अक्कल दाढ़॥
समरिध समरथ काहें बिसरल
काहें घरवाँ मातम
पसरल
जयचन्दन के मार-पछाड़।
निकसल नाही अक्कल दाढ़॥
· जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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