का जमाना आ गयो भाया,बात करे के परिपाटी फेर से उपरिया रहल बा। बुझाता मौसम आ गइल बा,मोल-भाव करे के बा, त बतकही करहीं के
परी। बिना बतकही के बात बनियो ना सकत। ई चिजुइए अइसन ह कि एकरे बने-बिगरे के खेला
चलत रहेला। बात बन गइल होखे भा बात बिगर गइल होखे, दुनहूँ हाल मे बात के बात मे बात आइये जाले। हम
कहनी ह कि एह घरी मौसमों आ गइल बा,बाकि इहाँ त बेमौसमों के लोग-बाग मन के बात करे
मे ना पिछुआलें। जब बात उपरा गइल बा त एकरा के कहि के भुलवाइलो जा सकेला आ मनो परावल जा सकेला। अब ई अलग बात बा कि मन
परवलो पर मन
मे न आवे भा कवनों नया बात गढ़ा जाय। कई लोग बतावेला
कि बात के कई गो सवादो होला, नीमन बात,बाउर बात,खट्टी बात,मीठी बात, करुई बात आउर जाने कतने तरह के बात होलीं स,सभेके उकेरे लागब त
बरीस बीत जाई।
एगो बरीस त बीतिए रहल बा,त दोसरका बरीस कुंडी
खटका रहल बा। अइसना मे एगो के बिदाई करे के बा त दोसरका
के सुवागत करे के बा। बिदाई भा सुवागत दूनों मे
कुछ न कुछ बात होखबे करी, होखहूँ के चाही। इहे त एगो तरीका बा जवना मे बन्न रहता खुलि जाला भा
खुलल रहता बन्न हो जाला। सब कुछ नीमन-नीमन होखो, एकरा ला बात त करहीं के परी। फेर बात भलहीं कसोतर शुरू मे लागे बाकि बाद मे ओहमें मिठास आइये जाई। जब बात के बात निकलिए गइल बा, त मन के बात के बहाने
हिसाबों-किताब के बात उठबे करी,भलहीं उ बतिया मीठ लगे भा तीत। सवाद त
चाहे-अनचाहे लेवहीं के परी,भलहीं सवाद लेवे के फेरा में चाहे मुँह मे मिसरी के डली परो भा नीम के करुआइन रस परो, दूनों हाल मे रसपान करहीं के परी। बात चाहे उ प्रधान सेवक के होखो,राउर होखो भा हमार
होखो,कुछ लोग त चटकारा लेबs करिहें, कुछ लोग अइसनो मिलिहें जे मीन-मेख निकारे मे अझुराइल होखीहें। अब बात
उठल बा त मीन-मेख निकलबे करी,ओकर लेखा-जोखा उतिराइबे करी। मीन-मेख निकाले वाला लोग पहिलही दिन से
गिद्ध लेखा आँख गड़वले बा, त कूल्ही बातन के तिक्का-बोटी करबे करी।
बात के बात में अब ई
बतावल जरूरी हो गइल बाटे कि एगो कहाउत ह ‘केहू खाति बैंगन
पथ्य आ केहू खाति बैरी’ एकर धियान राखल जरूरी बाटे। एही से मन के बात के समुझल आ समुझावल जा
सकेला। आवे वाले बरीस मे जेकर सुवागत करे खाति सभे लोग अगराइल बाटे,ढेर लोगन के मन के
बात करहीं के परी,पोथी-पतरा उलटे-पलटे के परी आ हिसाब-किताब देवे के परी। ई कुल्हि
जनता-जनार्दन के कतना सोहाई,पता नइखे। तबो हिसाब-किताब त परोसहीं के परी आ परोसलो जाई, ई केकरा के केतना सोहाई,कहल ना जा सकत बाटे।अब जब हिसाब-किताब
के बात शुरू होइए गइल बा त नीमन आ बाउर दूनों सोझा आई। कवनों खाति परसंसा मिली त
कवनों खाति टँगरी खींचल जाई। एक-एक बात कई-कई तरह के बाद-बिवाद लेके पसरी,कुछ लोग
ठीक मनिहें,त कुछ लोग बाउर कहिहें। बस गोलबंदी शुरू,बाकि जरूरत गोलबंदी के नइखे,जरूरत बा नीमन चीजु के
लेके आगु बढ़े के,बीच मे अझुराइल मतलब सब गुड़-गोबर। कइल-धइल
कुल्हि बेकार। हर बरीस के अनुभव कुछ न कुछ सीख दे के आगु बढ़ेला,एह बरीस के इहे सीख सही, सिर-माथे लगावल जाई। जवन
बिरवा अंखुवाइल,ओहमे पतई निकले शुरू भइल बा, त ओकर बढ़ल आ हरियाइल समय के जरूरत बाटे,ओकरा के बढ़े
के चाही,लहलहाये के चाही।ओकरे खाति जवन खाद-पानी चाही, ओकर जुगाड़ लगावे के परी।
बात शुरू भइल बाटे त बात मे दम होखे के चाही,बात मे दूर
तक ले जाये के तागत होखे के चाही,ओकरे रंग-रूप के बारे मे
सोचल भा सोच के प्रतिक्रिया दीहल हर जगह जरूरी ना होखस, कुछ
लोग इहो मानेला। एकरा खाति अलग-अलग लोगन के अलग-अलग तर्क हो सकेला,बाकि तर्क से सहमत होखल सभके ला जरूरी ना माने के चाही, मानलों ना जा सकेला। अस्तित्व भा अस्मिता के खाति जवन चिंता के बात लोगन
के मन मे बाटे,ओकरा के प्रस्तुति ओही से जुड़ल जरूरी मानल
जाला, बाकि इहो जरूरी नइखे कि एकरो सभे केहू मानो।कहल त इहाँ
तक जाला कि धरोहर भा इतिहास बरियार भइला से सम्प्रेषण के तागत ना आवेले,कुछ लोग कवनों आउर कमी गिना सकेला,बाकि ओकरे अस्मिता
के झूठलावल संभव नइखे, कुछ लोग एह सोच के बा, त बा। बाकि ओह लोग के आपन सोच दोसरा पर जबरी थोपल उचित त मानल नाही जा
सकत।ओकरा ला कवनों तरह मनभेद के जगह कतों बनल भा बनावल उचित मानल अनुचित कहाई।
मतभेद तरीका पर बा,अस्मिता पर ना, सोच
पर ना।सोच सार्थक बा तबे नु ओकरा जमीन आ आसमान दूनों मिलल।
जवना क्षेत्र मे बात के मूल रूप मे राखल भा राखे वालन के नीमन
नजर से समाज देखल पसन्न ना करस,उहाँ पहिले एकरा खाति जगह बनावल जरूरी बा। उचित
जगह से उचित मान-सम्मान के बात राखल ओकरा स्वरूप से जुड़ के ओकरे सुघरई के संगे आज
परोसल जरूरी हो चुकल बा। जवन गलती पहिले भइल बा, जवन परिभाषा
पहिले गढ़ाइल बा,ओकरा के तूरल आ ओह घेरा से बाहर झाँकल सगरी
ऊर्जा के संगे जरूरी लागत बा। शायद हमनी के कुछ अइसन लोगन के मोका दे रहल बानी जा,जे फेर से कवनों नया सवाल उठा सको?भलहीं उहो लोग
अपने समाज से होखस,विभीषण के उपस्थिति के नकारल ना जा सकेला।
आजु हमनी के जवने बाति के सबसे ढेर कमी महसूस होले ओकर जिकिर एह बाति के
बात मे करल जेयादा जरूरी बुझता। भोजपुरी भाषा, जवने के
साहित्य,व्याकरण,गद्य,कविता भा गीत के धरोहर के संगे साहित्य के भंडार बरियार बा,तबो भोजपुरिया लोग आपुस मे मिलला पर अपने भाषा मे बतियावल नीमन ना बुझेला,सरम करेला।दिल्ली भा ओकरे नीयरे जब कवनों लमहर कार्यक्रम होला त ओहू मे कवनों
ना कवनों बहाना लेके दोसर भाषा के प्रयोग कहीं न कहीं आपने कमी उकेरल बा। अइसने मे
नोबल पुरस्कार के उदाहरण के का मायने बा,हमरा समुझ के परे बा, बाकि ई बात ढेर लोग कहेला। भोजपुरी के एगो आउर पहिचान बाटे प्रतिरोध,हमरे बिचार से आजु हमनी के सबसे बेसी जरूरत एकरे बा।ई हमार आपन निजी विचार
ह, ई हम केकरो पर थोपत ना बानी। बाकि नवके बरिस मे हम बरियार
ढंग से कहल चाहब ‘भोजपुरी मे बात करे के’, त चलीं बात करे के।
·
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
No comments:
Post a Comment