का जमाना आ गयो भाया , जेने देखी ओने लाइने लाइन लउकत बा। सभे केहू लाइन मे ठाढ़ ह, चुप्पी सधले आ भीतरे भीतर अदहनियाइल। कतना बेबस लउकत बा मनई, तबों दम बन्हले, हुलास आउर जजबा से भरल-पूरल। आगु
आवे वाला दिन नीमन दिन होखी एकर बाट जोह रहल बा। कथनी आउर करनी मे उपरियात थोर
बहुत नीमन पल के हेरे के भागीरथ परयास करत आम आदमी, तभियो जय
जय क रहल बा। वाह रे , जमाना ! ई का हो रहल बा , काहें
हो रहल बा, कुल्हि ओर अटकलन के बजार गरम बा। कबों-कबों त
अफवाहन के झोंका आवेला आउर झकझोर के चलि जाला। पहिली बेर गरीब तबका के लोगन के चेहरा
पर मुसुकी देखाइल ह आउर अमीरन के माथा पर
शिकन। काहें से कि जवन धन कतों त आलमारिन, तिजोरियन आ
बिस्तरबंदन मे अलसायल पड़ल रहल ह, गवें-गवें गतिमान होवे लगल बा। सुनात बा कि लोगन के मुखौटा बदल रहल ह, अरे उहे करिया धन । सरकारो त गिद्ध नीयन दीठी लगवले खाड़ रहल आउर रहहूँ के
चाही।
गरीबन क तथाकथित नेता लोग बेयाकुल होके कबों बिरही त कबों
भैरवी राग मे कुछ अलाप रहल बाटें। का बताईं ! अइसन लोगन से सुनवइया दूर परा रहल
बाड़ें। कबों एहमे से कुछ त भ्रष्टाचार आउर
कालाधान के खिलाफ बड़ बड़ मंचन से भोपू पर
चिग्घाड़त रहल लोग। सबसे अलग आउर व्यवस्था परिवर्तक होखे के दंभ भरत रहल लोग, आज समर्थक बन के बइठ गइल बा लोग। अइसनका लोग कबों विरोध दिवस त कबों भारत
बंद करावे मे जुटल रहेला। ई लक्षन त अधकपारिन मे पावल जाला। एही से एह घरी मे
चाणक्य के इयाद आवाल सोभाविक बा। इयाद अवते कटहिया मुसुकी ओठ पर तइरय लागेले, इहों त सोभाविक ह। लाइन मे लागल भा लगावल दूनों कमजोरने खाति होला, पहिलहू होत रहे, अजुवो हो रहल बा। धनी मानी लोग कबो
लाइन मे ना लागेला। आजु से पहिले केहू देखलों ना होखी। बाकि एह घरी सभे लाइन मे
लागल दीख रहल बा। पहिलहू राकस तेज बुद्धि के होत रहने, अजुवों
बाड़े। अइसन लोग आपन दिमाग जरूर चलावेला, दिमाग चलल त ओकर
असरों लउके लागल, अंजान लोगन के खाता मे, लाइन मे, जन-धन खाता मे। एह बात से ई पता चलल कि हथौड़ा
के चोट गरम लोहा पर सही जगहा पर लागल बा। बाकि चोट जेतना बरियार लागे के चाहत रहे, ओतना बरियार ढंग से ना लागल। एकरा पेनी मे सेंध बैंक वाला लोग छुछुनर बनि
के खुबे लगवलस। बाकि कहल जाला कि मूस मोटइहें लोढ़ा होइहें,
पेंड ना। उहे हाल इहों भइल। कुल्हि बरगद चरमरा के लुढ़क गइल भा लरक गइल बाटे। कुछ महिसासुर
लेखा कवनों मायावी रूप अख़्तियार करत होखिहे, करत रहें, महिसोसुर मउवत से कहाँ बाचल, फेर ई लोग कइसे बाची।
मने महिसासुर मर्दिनी के अवतार त होखबे करी, उ जरूरी बा।
लोगन के ई खूब बुझा रहल बा अब बाचल मोसकिल बा।
आशा-निराशा के जंगल राज
मे आदमखोर सगरों छिपल बाटें। सेल से जेल तक, महल से अटारी तक, सधारन मनई त सधारने बा, जोरगर लोगन के हाल-बेहाल हो रहल बाटे । कब के कहवाँ संगे बइठ के चाह
पीही आ कब ठोक दीही, कहल ना जा सकेला। रामराज के परिकल्पना के रोजे धूर-माटी मे घिसिरावल
जाता, तबों ई कहल सुनल जाता –“सब ठीक बा”। कमजोर होखे भा बाहुबली सभे के
थरहरी डोल रहल बा। कवने बात के नीमन कहाव आ कवने बात के बाउर, शोध के विषय बन
चुकल बा। मोका-मोका आ जुगाड़-जुगाड़ के खेलवाड़ चल रहल बा। सफलता के पैमाना बस जुगाड़
बा। केतनों आफत कटले होखी, जुगाड़ होखे के चाही,राउर मस्त आ जिनगी के गाड़ी जबरजस्त चलत रही। तनिकों केहरो गड़बड़ बुझाय
त एगो अदालत मे केस डाल देही, जज वोकिल आ अदालत मिलके एकाध जनम त काटी दिहें। सरग भा नरक मे फैसला
सुनावे के जाई?
लक्ष्मीनरायन के काल्हों
जय-जय बोलात रहे, आजों जय-जय बोला रहल बा। राज-साज-समाज कवनों होखे,
थोरिको फरक नइखे पड़े के। उनका से बड़ जोगाड़ू कवनों जुग मे केहू नइखे भइल,फेर एह जुग मे कइसे केहू हो जाई। मंतरी से लेके संतरी तक उनका सोझा सभे
मुड़ी नवा रहल बा, त मुलाज़िम लोग कवने खेत के मुरई बा लोग। ई
त जुग-जुग से चलल आ रहल बा – “खेत खइलस गदहा, मार खाई
जोलहा”। कुछ लोग धरती पर खाली नुक्ता-चीनी करे आवेलन, एहू
जुग मे कुछ लोग आइल बा।
पीयर
पीपर पहिर के चमके वालन के ऊपर कहियों बाँस-बल्ली घहरा सकेले, एकरो खातिकुछ कहल सुनल गइल बा। बेनामी संपत्ति त
सुरसा लेखा समाज के रोजे गटक रहल बिया। एकरो दवाई कइल ढेर जरूरी हो गइल बा। तभिए
आम मनई अपना खाति छत बदे सोचियों पाई। बाकि ई कुल्हि तभिए संभव हो पाई, जब एकरा के
इंस्पेक्टर राज के नजर न लगो, एकरो पर धियान देवे के जरूरत बा। सरकार के ई
कुल्हि बात पर बेगार चुकले धियान देवे के परी। एकरा खाति समुचित परबन्ध करल आ ओकरा
पालन करावल जरूरी ह । अब गवें गवें 2019 के गोटी लोग बिछावे मे जुट चुकल बा। एही
के झलक संसद के अविश्वास प्रस्ताव के बहस के बेरा लउकल। झूठ-साँच, तिगड़म के संगे अइसनों हरकत होखी जवना से आम मनई
के सिर झुक जाई। पक्ष अपने काम के गिनाई आ विपक्ष आरोप के पुलिंदा, मने जनता के फेर से भरमावे के सागरी उपाय दूनों
ओरी से होखी। जवने भ्रष्टाचार के खतम करे के बात से शुरू भइल 2014 मे सरकार, केतना सफल भइल भा असफल भइल, एकरो आकलन होखे के चाही। आम लोग खाति आजों
भ्रष्टाचार जस के तस बा। एकर बानगी कवनो विभाग मे जा के देखल जा सकेला। भाषाई सवाल
आजों अनुत्तरित बा। भोजपुरी भाषा आजों अपने सनमान के राह देख रहल बा। आठवीं
अनुसूची भोजपुरी ला आजों सपना बा। महगाई आजो जस के तस बा,किसान आजो आत्महत्या कर रहल बा। शिक्षा एतनी महगा
हो गइल बा कि का काहल जाव। धरम-संप्रदाय,जाति के खेला गहिराह
हो रहल बा। कहे के मतलब ई बा कि ढेर आफत मुँह बावले ठाढ़ बाड़ी सन। एहनी से पार पावल
जरूरी बा,ना त देश आ समाज दूनों क नीमन होखल मोसकिल बा।
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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
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