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Tuesday, May 8, 2018

अथक लड़ाई आउर धीरज के परीक्षा लेत भोजपुरी भाषा


अपना देश भारत मे हिन्दी के बाद सबसे जियादा लोगिन के मातृभाषा भोजपुरी कई दशक से अपने अस्तित्व के लड़ाई लड़ रहल बिया । चालीस के दशक से जवने भाषा के मान्यता के आवाज उठ रहल बा आउर ओकरे अस्तित्व के अनदेखी हो रहल बा , उहो एगो मिशाले बा । भोजपुरी भाषा के जनम आउर ओकर इतिहास 1000 बरिस से ढेर पुराना ह । एकर समय समय पर प्रमान सरकार के दीहल जा चुकल बा , बाकि हर बेरी कवनो कवनो बहाना से मान्यता के बाधित कइल गइल बा । कबों केहु बोली बा , केहु ब्याकरण नइखे , गद्य नाही बा , किताब नइखे लिखाइल आदि - आदि कहके भाषा के विकास के रसता मे काँटा बोवे के काम कइलस । ई कुल्हि करे वाला लोग भोजपुरिए बा , केहू दोसर नइखे । अबहियों कुछ लोगिन के मरोड़ उठत बा उहो हिन्दी के नाँव पर । उ लोगिन के हिसाब से भोजपुरी के जदि संविधान के आठवीं अनुसूची मे सामिल कर दिहल जाई , त हिन्दी कमजोर हो जाई । हमरे आज तक नाही बुझाइल कि अब तलक ई लोग हिन्दी के चबात रहने ह का , काहें नाही हिन्दी के मजगुती देवे खाति काम कइलन । कादों मुफुत के मलाई चाभत – चाभत चरबिया गइल बा लोग भा कुंभकरनी नीन मे आजु ले रहल ह लोग ।

       भोजपुरी भाषा के साहित्य गहिराहे बले भरल पूरल बा । ब्याकरण , गद्य , कविता, कहानी , लघुकथा , व्यंग , शोध आलेख , लोक संगीत के संगे आउर बहुत कुछ बा जवना के कुछ तथाकथित लोग अनदेखी क रहल बा । आजु ले जेतना साहित्यिक काम भोजपुरी मे भइल बा उ कुल्हि लोग अपनही कइले बा , बिना कवनो सरकारी सहजोग के । ई काम आजों चल रहल बा , अनवरत चल रहल बा । अगहु चलत रही , अबाध चलत रही बाकि अब अपने भाषा के अनदेखी के बिरोध होखी , सम्मान के मांग होखी , अधिकार के मांग होखी । जवन अब हो रहल बा । भोजपुरी के ढेर पत्र पत्रिका निकल रहल बानी सन । सरकार से कर्मठ भोजपुरिया लोग अपने माई भाषा के सनमान खाति तन मन धन से जूझ रहल बा, भाषा बिरोधियन के उनुकर जगह बता रहल बा । बिना जनले , पढ़ले जवन लोग आजु ले बेमतलब के कुछहू बोलत रहल ह , ओकरो अब ककहरा पढ़ावल जा रहल बा । राष्ट्रीय स्तर पर अब भोजपुरी भाषा के मान्यता के आंदोलन ज़ोर पकड़ रहल बा ।   

       अब त सरकारो के जागहीं के परी , काहें कि लोकसभा आउर राज्य सभा मे मांग उठे लागल बा । कुछ  राज्य सरकार भोजपुरी के मान्यता खाति केंद्र से निहोरा कर चुकल बानी स , कुछ करे खाति तइयार हो रहल बानी स । पढ़ल लिखल लोग के शरम दूर हो रहल बा , अब उहो बेझिझक भोजपुरी बोल रहल बा , लिख रहल बा । दिन पर दिन संख्या बढ़ रहल बा , एकरा के सोसल मीडिया पर देखल जा सकेला । समाज मे ढेर लोग बा जेकरे दिन मे ना लउकत , ओहनियों के रसता देखावल जा रहल बा । भोजपुरी मे कई गो वेव पोर्टल शुरू हो चुकल बा आउर आए दिन शुरू हो रहल बा । नवहा भोजपुरी से जुड़ रहल बाड़ें , जवन भोजपुरी भाषा खाति ढेर शुभ बा । उत्तर प्रदेश मे नवगठित सरकार क्षेत्रीय भाषा के लेके पहिले दिन से जागरूक बा , ओकरे खाति दिशा निर्देश जारी हो चुकल बा । अब जबले केंद्र सरकार भोजपुरी भाषा के संविधान के आठवीं अनुसूची मे सामिल ना कर देही , ई आंदोलन दिनो दिन तेज होत रही ।     


·         जयशंकर प्रसाद द्विवेदी