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Wednesday, February 9, 2022

ए बाबू ! सपना सपने रहि जाई

 का जमाना आ गयो भाया, अब त उहो परहेज करत देखाये लागल जे रिरियात घूमत रहल। आजु के समय में जब हिंदिये के ओकत दोयम दरजा के हो चुकल बाटे, त अइसन लोगन के का ओकत मानल जाव। हिंदियों वाला लो अपना बेटा-बेटी के अंगरेजी ईस्कूल में पढ़ावल आपन शान बुझता काहें से कि ओहू लोगन के नीमन से बुझा चुकल बा कि हिन्दी से रोजी-रोटी के गराण्टी भेंटाइल मोसकिल बा। हिन्दी के लेके जवन सपना रहे, उ ई रहे कि ई अङ्ग्रेज़ी के स्थान पर काबिज होई। बाकि अइसन कुछ भइल ना। अजुवों राजभाषा के राजभाषे बा। भलही सरकारी तंत्र कुछो गलत-सलत किताबियन में छाप के पढ़वा देवे। अपना के हिन्दी भाषी कहे वाला ढेर लोगन के आजु ले इहो नइखे पता कि हिन्दी राजभाषा ह कि राष्ट्रभाषा। मने राजभाषा आ राष्ट्रभाषा के अंतर नइखे पता।  हिन्दी दोयम दरजो से गवें गवें गारत में जा रहल बा। एकरा पाछे के कारण आजु हेरे के जरूरत नइखे। कारण सोझा बा, आजु के तथाकथित झंडाबरदार लो। एगो 'हिन्दी बचाओ मंच' बना के, सै - पचास लोगन के गैंग बना के ई लो आपन ऊर्जा लोक भाषन के नकारे में लगा रहल बा। जबकि लोकभाषावन के साहित्य बटोर के आपन बोलत बेरा सरमातो नइखे। रउवा लोगन के त कबीर, सूर ,तुलसी,मीरा,रहीम,रसखान आ विद्यापति जइसन साहित्यकारन के साहित्य से दूरी बना लेवे के चाही। बाकि अइसन रउवा सभे करियो ना सकित। लोकभाषा के साहित्य बिलगवते हिन्दी के अस्तित्वो बिला जाई, ई बाति नीमन से पता बा।

          एह मंच वालन के भा कहीं कुछ अइसने मानसिकता वालन के सभेले बेसी मिरचाई भोजपुरी से लागेले। भोजपुरी भाषिन भा भोजपुरी के साहित्यकारन के देखते अइसन लोगन के साँप सूंघ जाला। कई बेर त मानसिक संतुलनों गड़बड़ा जाला। अइसन लो नया-नया कुतर्क गढ़ के रहता रोके में लाग जाला। जबकि अइसनका लोगन के इहो पता बा कि एह घरी सभेले तेजी से विकसित हो रहल भाषा भोजपुरी बिया, लिग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया के अध्यक्ष डेवी जी  त अइसने कुछ राष्ट्रीय चैनल पर कह चुकल बाड़ें। भोजपुरी 1000 बरीस से पुरान भाषा ह, जवन हिन्दी के पहिलहूँ  रहल, अजुवो बा आ आगहूँ  रही। भोजपुरी के साहित्य पहिलहूँ लिखात रहे, अबो खूब लिखा रहल बा आ आगहूँ  लिखाते रही।       

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता 

 

अनुवाद के बाद के माने-मतलब

 का जमाना आ गयो भाया। कुछ दिन से में/से के चकरी घूमे शुरू भइल बा। बाक़िर ई चकरिया के घूमलो में कुछ खासे बा। जवन आजु ले मनराखनो पांड़े के ना लउकल। ढेर लोग कहेलन कि अइसन कुल्हि काम पर मनराखन पांड़े के दिठी हमेशा जमले रहेले। अब मनराखनो बेचारे करें त का करें। उनका के आजु ले ई ना बुझाइल कि भोजपुरी में बयार मनई आ गोल-बथान देखि के बहेले। एक्के गोल में कई सब-गोल बाड़ी स, ओहिजो हावा के गति परिभाषा के संगे बहेले। जहवाँ एक गोल के काम दोसरका गोल वालन के सुझत ना होखे उहवाँ बे गोल वालन के केहू पुछनिहार कइसे भेंटाई। हजारन बरीस पुरान भाषा के बरीस-दू बरीस के जामल गोल वाला जबरी रहनुमा बन रहल बाड़ें। कापी-पेस्ट वालन के दुअरे ई भषवा मड़िया मारेले, कुछ लो अइसने क़हत भेंटा जाला। सातवीं सदी के बाबा गोरखनाथ के बानी में भोजपुरी छछात लउकेले, तबो कुछ लोग कबीर बाबा से भोजपुरी के शुरुआत कह रहल बा आ उनकरे से जोड़ के जोर-सोर में अपने माथे पगड़ी बान्ह रहल बा, मने कुछों। कुछ लो अपना आगा-पाछा अतना नु लमहर देवार बना देले बा आ कुछ लोग बनाइयो रहल बा कि भीतरि वाला लो बहरे ना आ सके आ बहरी वाला भीतरि न जा सके। इनारे के दुगोड़वा बेंग।

            मनराखन पांड़े के भोजपुरी से/में अनुवाद के लेके एगो लमहर बात बतावत रहलन। सुखद लागल ई देखि-सुनि के कि कुछ लोग ओह बतिया के साथे एकरा भविष्य आ वर्तमान के लेके कुछ चर्चा आगु बढ़वले बा। मनराखन अगरा के ओह पोस्टवा के पढ़े लगलें बाक़िर ओहमें चरचा खाली एगो किताबि के कुछ रचना के बात के लेके भइल रहे। भोजपुरी में एह घरी कुछे साहित्यकार लो बा जे एह दिसाई कुछ कर रहल बा। अइसना में ओह पर विशद चरचा होखल जरूरी बा। अइसन कुछ लो के इहवाँ नांव लीहलो हमरा जरूरी बुझाता। जइसे गौतम चौबे,  दिनेश पाण्डेय, डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय, केशव मोहन पाण्डेय, सरोज सिंह,संतोष पटेल, डॉ राजेश माझी,जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के संगही कुछ अउर लो लगातार भोजपुरी में अनुवाद कर रहल बाड़ें। भोजपुरी के उपन्यास ग्राम देवता आ फ़ुलसूंघी के अनुवाद अङ्ग्रेज़ी में हो चुकल बा। भोजपुरी साहित्य सरिता पछिला 18 अंक से कई गो भोजपुरी अनुवाद धारावाहिक का रूप में प्रकाशितो क रहल बा। जून अंक से हिन्दी ललित निबंध संग्रह (कुबेर का अभिशाप) के निबंध के भोजपुरी भावानुवाद प्रकाशित हो रहल बा। केशव मोहन पाण्डेय के डोगरी से भोजपुरी अनूदित बाल उपन्यास 'छुट्टी' हलिए पुस्तकाकार का रूप में आइल ह। हिन्दी उपन्यास (शिखरों से आगे- डॉ अशोक लव) के भोजपुरी भावानुवाद पछिला 18 अंक से लगातार प्रकाशित हो रहल बा। चाणक्य नीति के भोजपुरी पद्यानुवाद के 14 अध्याय प्रकाशित हो चुकल बा। केदार नाथ सिंह के कई गो हिन्दी कविता के भोजपुरी भावानुवाद जवना के डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय कइले बानी, भोजपुरी साहित्य सरिता प्रकाशित क चुकल बा। बाक़िर अइसन कुल्हि काम पर लोगन के दिठी कमे जाले, भा जइबे ना करे। कुछ लो त इहाँ ले कहेला कि भोजपुरी साहित्य सरिता के नाँव देखते कुछ लो अन्हरा जालें आ डूबे उतिराए लागेलें। ई बाति अब मनराखन के संगे-संगे घुरहू पेबारू सभे के मालूम चल गइल बा। कुछ लो दलित त कुछ लोग बाभन-ठाकुर, भुईहार के गहिराह कुंठा में अझुराइल बा। एही से अइसन कुल्हि कामन पर आजु ले केहू के कवनो टिप्पणी कतों देखे भा पढ़े के ना मिलल।

            कतों केहु कवनो चिठी लिख देता त कुछ लो ओकरो में अवसर ढूँढे लागत बा। मने एह कुल्हि लछन के देखि मनराखन के मिजाज गरम हो चुकल बा। सुने में आवता कि चाची-बाची आ दुका-दुका गा रहल गवइयन के मूड़े गमछा बान्ह के आ लाठी लेके हेरे खाति निकल चुकल बाड़ें। रउवा सभे के पता होखे त मनराखन के फोन जरूर करेम काहें से कि बेगर कुरसी के 7 बरीस में उनुके कई गो पेंच ढील आ कुछ पेंच बिला गइल बा।

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

वोट माँगे अइले हो

 अयोध्या मे गोली चलववले

जरिको न सरमइले हो

एकरा के लाजो ना लागे

वोट माँगे अइले हो।

 

महजिद पर भोंपू लगववलें

मंदिर के बंद करवलें हो

एकरा के लाजो ना लागे

वोट माँगे अइले हो।

 

चाचा बाबू हिल मिल के

खूबै लूट मचवलें हो

एकरा के लाजो ना लागे

वोट माँगे अइले हो।

 

मंचो पर बाबू धकिअवले

हिंदुन के गरिअवलें हो

एकरा के लाजो ना लागे

वोट माँगे अइले हो।

 

सैफई में नाच करवले

पइसा खूब बहवले हो

एकरा के लाजो ना लागे

वोट माँगे अइले हो।

 

बदमासन के टिकस देहले

आतंकी गले लगवले हो

एकरा के लाजो ना लागे

वोट माँगे अइले हो।

 

·       जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

9/2/2022

Saturday, January 8, 2022

आपन आछो-आछो आ दोसरा के छिया-छिया (उचरत हरिनंदी के पीर)

 का जमाना आ गयो भाया,बड़बोल बोलवन के भाव-ताव के कवनो ठेहा-ठेकाना के हेरल संभव नइखे। कवनो गली-मोहला, गाँव-शहर, नगर-डगर अइसन जगह नइखे जहवाँ एहनी के प्रजाति काबिज ना होखे। सगरों कुंडली मार के बइठल बाड़न सन। सभले बेसी सभे कुछ एहनिये के चाहत बा। ओकरा खातिर कुछो करे के तइयार बाड़न सन। छीछालेदर करे से लेके रइता फइलावे तक में एहनी के आपन करतब बुझाता। अपने सनमान खाति केहुओ के आगु खीस निपोरत बेरा छाती चाकरे राखल ओहनी के सोभाव में बा भा कहीं कि खुने में मेझराइल बा। नीमन बातिन के बाउर बतावे में जरिको देरी नइखे करत सन आ खुदही बाउर करे में जरिको लजातो नइखे सन। धरम-जाति से लेके प्रदेश आ क्षेत्र तक सब आपन बतावत नइखे थाकत सन। अपने जय-जय होखे के राग आलाप रहल बाड़न सन। ओहनी के विद्वता त अधजल गगरी लेखा छलक रहल बा। नीमन चिजुइयन का ओर ओहनी के दीठिए नइखे जात। 'विष कुंभम पयो मुखम' के असली भगत लोगन के तबो कबों-कबों मजबूरी के नाम जपे के पड़ जात बा। ओहुके गिनावे में न लजात बाड़न सन आ न पिछुआत बाड़न सन

      ठाकुर रमेसर सिंह के ई सहूर देखि-बूझ के त मनराखन पांड़े के सरम आवे लागल। उ बेचारु इहे बूझत रहने के उनुका से बड़ बकलोल एह जहान में दोसर केहु नइखे, बाकि उनुकर ई भरम ठाकुर रमेसर सिंह तूर दिहलें। दाँत निपोरे से लेके हाथ पसारे आ भीख माँगि के सनमान बिटोरे भा कुरसी हथियावे में सभेले अगहीं लउकत बाड़न। अपना के बड़का भाषा विद बूझे वाला ठाकुर रमेसर सिंह के ढेर लो 'भासाई दरिदर' के तमगा से नवाज चुकल बा। दोसर भाषा के साहित्य के अनुवाद क के अपना के मौलिक बोले में उनुकर जबाब नइखे। सुने में त इहो आवेला कि ठाकुर रमेसर सिंह कवनो इस्कूल में माहटर बाड़न। बाकि माहटरई के उनुका भीरी कतना लूर बा, अब उनुका नोकरी देवे वाली सरकारो सोच रहल बिया। गारी-गुन्नर से लेके चोरी चकारी तक में सगले गुन आगर माहटर साहेब अपना हिसाब से परिभासा गढ़े में सभेले आगहीं ठाढ़ भेंटालेंखीर भा सेवई में परल माछियो के चूस के खाये वाला ठाकुर रमेसर सिंह आजु से झूठे के गगरी भर भर के ढो रहल बाड़न। दू रूपिया के खैनियो कीन-खरीद के ना बलुक मागिए खालन। बाक़िर ठकुरई के बखाने में सभे ले आगु भेंटालें। गाहे-बगाहे कबों कवनो साह जी झूठ बोलिके खैनी मंगा लेलन त उनुका उधार पचावल ठाकुर साहेब के चतरा हाथ के खेल बा। अब त मनराखन पांड़े मारे चिंता के सुखा के काँट लेखा हो गइल बाड़न कि उनुका बिरासत केहु दोसर कब्जिया रहल बा।  

      मनराखने लेखा ठाकुर रमेसर सिंह के संगे कुछ लिहो-लिहो करे वाला लोग सटल बा। उ लो उनुका भरम के बरोबर खाद-पानी दे रहल बा। कई बेर त कुछ लो रमेसर सिंह के बेंजइयो अपना कपारे ओढ़ लेता। ओकरा खाति माफ़ियों माँगे में केजरियो के पाछे ढकेल देतादोसरा के कन्ही पर मंगनी के बनूक राखि के ठाकुर साहेब बाहबाही लुटहूँ में जरिको ना पिछुआलें आ कान्ही वाला के लमचूस थमा के अपना गुरुरे मगन हो जालें। अब चाहे बनूक टूटे भा कान्ह, ठाकुर साहेब आपन बकलोलई के ढ़ोल बजा-बजा के आपन मुखौटा चमकावे में जीव-जाँगर का संगे लाग जालें। जइसे कान-कूबर के आँख आ देह वाला लो ना सोहालें ओइसहीं ठाकुरो साहेब के नीमन लोग ना सोहालें। उ त बस हर घरी आपन आछो-आछो आ दोसरा के छिया-छिया करे में अझुराइल आ सउनाइल रहेलन।    

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता